दिल्ली की राऊज एवेन्यू लेबर कोर्ट ने नई दुनिया (जागरण प्रकाशन लिमिटेड) के धनंजय कुमार के फेवर में मजीठिया वेज बोर्ड की 10,38,192 रुपए 9% ब्याज सहित अवार्ड पारित किया है. साथ ही 35000 लिटिगेशन खर्च देने का जजमेंट पास किया है.
मजीठिया के रिकवरी मामले में दिल्ली से एक बडी खबर आ रही है। यहां पर जागरण प्रकाशन लिमिटेड को नोएडा के बाद एक और झटका लगा है। यहां के आईटीओ में स्थित राउज एवेन्यू लेबर कोर्ट ने 13 जुलाई 2023 को जागरण प्रकाशन लिमिटेड के समाचार पत्र नई दुनिया में कार्यरत रहे धनंजय कुमार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 10,38,192 रुपये का अवार्ड पारित किया है।
इसके साथ ही अदालत ने कंपनी को इस राशि पर 9 फीसदी ब्याज देने का भी आदेश दिया है। अदालत ने साथ ही लिटिगेशन के रूप में कंपनी को एक महीने के भीतर धनंजय को 35 हजार रुपये देने का भी आदेश दिया है।
दिल्ली में कार्यरत धनंजय कुमार नोएडा और दिल्ली में जागरण प्रकाशन लिमिटेड के खिलाफ मजीठिया की रिकवरी मामले में केस लगाने वाले सबसे पहले दो साथियों में से एक थे। जागरण प्रकाशन लिमिटेड ने धनंजय को अपना कर्मचारी मानने से इनकार किया था। इसके अलावा कंपनी ने न्यायिक क्षेत्राधिकार पर भी सवाल खड़े किए थे।
धनंजय के मामले में डीएलसी ने सबसे आरआरसी जारी की थी, जिसे कंपनी ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और केस को 17-2 के तहत लेबर कोर्ट रेफर करने की मांग की थी। जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने डीएलसी को मामले को 17-2 के तहत लेबर कोर्ट रेफर कर दिया था।
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शिवा शंकर पाण्डेय
July 21, 2023 at 2:43 pm
बहुत ही बढ़िया रहा। धनंजय कुमार जी का संपर्क फोन नंबर मिलेगा क्या ?
शिवा शंकर पाण्डेय
July 21, 2023 at 3:38 pm
21 अगस्त 1997 से दैनिक जागरण इलाहाबाद में उप संपादक के पद पर कार्यरत रहा। 29 सितंबर 2003 को शाम कंपनी ने एक लेटर देकर बताया कि 30 सितंबर 2003 को हमारा अनुबंध खत्म हो रहा हैl लिहाजा, 1 अक्टूबर से सेवा समाप्त। सच्चाई यह है कि दैनिक जागरण से हमारा कोई अनुबंध ही नहीं था। दैनिक जागरण की इस तिकड़म भरी चाल का हमने विरोध कर नौकरी जारी रखने का अनुरोध किया। अंत में कोर्ट का सहारा लिया। दैनिक जागरण ने कोर्ट में कहा, इन्हें पहचानते ही नहीं। हमने 13 दस्तावेजी सबूत पेश किए। 19 साल बाद ट्रिब्यूनल में जागरण ने फिर झूठ बोला – दैनिक जागरण में थे लेकिन अनुबंध पर केवल दो साल के लिए टेंपरेरी नियुक्ति थी। ट्रिब्यूनल के सवाल पर जागरण निरुत्तर हो गया। ट्रिब्यूनल ने जागरण से पूछा – दो साल के टेंपरेरी वाले आदमी से छह साल डेस्क इंचार्ज का कार्य कैसे ले सकते हैं ? ट्रिब्यूनल ने किसी कर्मचारी को अनुबंध पर रखने को अवैध करार किया।साथ। ही यह भी कहा कि याची दुबारा नौकरी पाने का अधिकार रखता है। चूंकि याची रिटायर्ड करने की उम्र पर पहुंच चुका है, इसलिए दुबारा नौकरी पर नहीं रखा जा सकता। ऐसे में याची को दो लाख रुपए कम्पनसेशन दिया जाए। ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि तीन सप्ताह में दो लाख रुपए भुगतान न करने पर 2 प्रतिशत ब्याज देना पड़ेगा। डेढ़ साल से ज्यादा गुजर गए दैनिक जागरण ने अभी तक भुगतान ही नहीं किया। साढ़े उन्नीस साल कोर्ट कचहरी की भागदौड़, वकील की फीस आदि में ही पचास हजार से ज्यादा खर्च आया। ट्रिब्यूनल ने मूल्यांकन किस रेट से किया जो महज दो लाख रुपए हुआ ? याची ने अपने मुकदमे में दैनिक जागरण की कर्मचारियों के प्रति मनमानी, श्रम एक्ट का उलंघन का हवाला देते हुए बगैर किसी ठोस वजह के नौकरी से हटाकर बेरोजगार करने का बेस बनाते हुए पुन: नौकरी पर रखने और समस्त देयों का बकाया भुगतान करने की मांग अदालत से किया था।