इंदौर से एक बड़ी खबर आ रही है। यहां नई दुनिया अखबार में एक्जीक्यूटिव मार्केटिंग के पद पर कार्यरत दिव्या सेंगर के रायपुर में हुये ट्रांसफर पर सिविल कोर्ट द्वारा रोक लगाने के बाद हाईकोर्ट गए जागरण प्रबंधन के सहयोगी अखबार नयी दुनिया प्रबंधन को भयंकर हार का सामना करना पड़ा है। हाईकोर्ट ने साफ़ कह दिया कि निचली अदालत द्वारा ट्रांसफर पर लगाई गई रोक पूरी तरह सही है।
दिनांक 27 मार्च को मध्य प्रदेश जबलपुर की खंडपीठ इंदौर में एक याचिका की सुनवाई हुई। मामला कुछ यूं है कि मजीठिया वेतन प्राप्त करने के आवेदन पर दिव्या सेंगर नामक एक्जक्यूटिव मार्केटिंग का नई दुनिया प्रबंधन ने दुर्भावनापूर्वक ट्रांसफर कर दिया था। इसके बाद दिव्या अधीनस्थ न्यायलय चली गईं जहां से उन्हें स्थगन मिल गया। इससे असंतुष्ट नई दुनिया प्रबंधन हाईकोर्ट की शरण में रिट की बैसाखी का सहारा ले कर पहुंच गया। लेकिन हाईकोर्ट में नईदुनिया प्रबंधन और उसके उच्च अधिकारीगण को मुँहकी खानी पड़ी। इन लोगों द्वारा इंदौर के सबसे मंहगे वकीलों की फौज खड़ा करने के बावजूद हाईकोर्ट ने स्टे खारिज करने से मना कर दिया।
दिव्या सेंगर नामक नईदुनिया कर्मचारी की ओर से मनीष पाल एडवोकेट इंदौर के तर्कों से सहमत होकर उक्त याचिका पहली सुनवाई पर ही स्थगन आदेश पर स्थगन नहीं देते हुए डिस्पोस्ड कर दी गयी। खुद एडवोकेट मनीष पाल ने इस खबर की पुष्टि की है। नयी दुनिया अखबार प्रबंधन की ओर से मानद वरिष्ठ एडवोकेट एस सी बगड़िया और वरिष्ठ एडवोकेट गिरीश पटवर्धन ने कंपनी का पक्ष रखा।
आपको बता दें कि मजीठिया वेज बोर्ड के तहत वेतन-बकाया मांगने के कारण नयी दुनिया की इंदौर कार्यालय की दिव्या सिंह सेंगर का स्थानांतरण इंदौर से १४ जनवरी को छत्तीसगढ़ के रायपुर कर दिया गया और रिलीविंग आदेश 18 जनवरी को जारी कर दिया गया.
दिव्या सिंह सेंगर के अधिवक्ता मनीष पाल के द्वारा माननीय सिविल न्यायालय की शरण में जाकर स्थगन व स्थाई निषेधाज्ञा हेतु एक वाद प्रस्तुत किया गया और अदालत को बताया गया कि वादिनी दिव्या सेंगर को मजीठिया वेतन बोर्ड के लाभों के लिए श्रम आयुक्त के समक्ष ३० दिसंबर २०१६ की शिकायत प्रस्तुत करने के बाद दुर्भावना के कारण उसका ट्रांसफर किया गया।
माननीय न्यायालय द्वारा वादी अधिवक्ता मनीष पाल के तर्कों से सहमत होते हुए वाद का संतुलन प्रथम दृष्टया वादी के पक्ष में होना मानते हुए दिव्या के विरुद्ध स्थान्तरण और रिलीविंग आदेश पर अंतिम आदेश होने तक स्थगन दे दिया गया। इसके संबंध में आदेश दिनांक तीन फरवरी २०१७ को पारित किया. लेकिन अखबार प्रबंधन दिव्या को अदालती आदेश के बाद भी अखबार में ज्वाईन कराने के मूड में नहीं दिख्रा।
बार बार दिव्या अखबार के दफ्तर गयी मगर अदालती आदेश के बाद भी उन्हें पुराने स्थान पर ज्वाईन नहीं कराया गया और बहाना बनाया गया कि मुख्यालय से आपके बारे में आदेश प्राप्त नहीं हुआ है। इसके बाद दिव्या सेंगर के अधिवक्ता मनीष पाल ने इंदौर में नयी दुनिया अखबार के प्रबंधन और प्रधान संपादक के खिलाफ अदालत की अवमानना की शिकायत की जिसके बाद अदालत ने अखबार प्रबंधन और प्रधान संपादक को नोटिस भेजा। इसी बीच नयी दुनिया प्रबंधन इस स्टे पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट पहुंचा मगर वहां भी उसको राहत नहीं मिली और अखबार प्रबंधन को मुंह की खानी पड़ी।
शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
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