आज के अखबारों में छपी अमृतसर रेल हादसे की खबर पर आप मेरी पोस्ट, ‘अमृतसर रेल हादसे का दोषी तलाश रहे हैं अखबार वाले‘ पढ़ चुक होंगे होंगे। हादसे की खबर और आज उसका फॉलो अप हिन्दी के अखबार या अखबारों में पढ़ने के बाद इस विषय पर टेलीग्राफ में आज प्रकाशित इस खबर को पढ़िए। कहने की जरूरत नहीं है कि मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित खबर का यह अनुवाद पाठकों को अंग्रेजी और हिन्दी की रिपोर्टिंग का अंतर बताने के लिए है।
इससे आपको पता चलेगा कि एक खबर लिखते हुए कितनी बातें हो सकती हैं और कैसे उन सभी पहलुओं को छूते हुए अच्छी खबर बनाई जा सकती है जबकि कई बार आधी-अधूरी बातें शीर्षक बनकर या प्रमुखता से छप जाती हैं और भ्रम तो फैलाती ही हैं, सूचना देने का बुनियादी कार्य भी नहीं करती हैं।
एक शहर में 59 लोगों की मौत के बाद उनका सामूहिक संस्कार हृदय विदारक तो होगा ही और इसकी खबरें भी छपेंगी ही। पर यह कितने परिपक्व अंदाज में छपता है उसका अपना महत्व है। रोते बिलखते परिजनों और शवों की फोटो छापना एक बात है और इसके बगैर किसी ऐसी तस्वीर से सबका दर्द बयां कर देना बिल्कुल अलग। सामूहिक दाह संस्कार की फोटो कई अखबारों में है पर टेलीग्राफ की यह फोटो, उसका कैप्शन और फोटो के ऊपर लगा शीर्षक, “”रावण के बाद सामूहिक चिताएं जल रही हैं” – तक अभिनव, संयमित और संतुलित है। प्लेसमेंट और पोजिशनिंग भी। हालांकि, उसका संबंध अखबार की डिजाइन से ज्यादा है।
अखबार ने हिन्दी अखबारों से अलग, इस खबर का शीर्षक लगाया है, “पटरी पर त्रासदी के आरोपों से बचने की कोशिश”। अमृतसर डेटलाइन से प्रेस ट्रस्ट के हवाले से प्रकाशित इस खबर में कहा गया है, अमृतसर के पास रावण दहन के दौरान एक ट्रेन से कुचलकर 59 लोगों की मौत के बाद अधिकारियों ने कहा कि पटरी के किनारे आयोजित दशहरा कार्यक्रम की सूचना रेलवे को नहीं दी गई थी ना ही स्थानीय निकाय से अनुमति मांगी गई थी। जोडा फाटक इलाके के निवासियों ने जोर देकर कहा कि रावण का पुतला जलाने का यह आयोजन इसी जगह पर कम से कम 20 साल से हो रहा था। पर अमृतसर की म्युनिसिपल कमिश्नर सोनाली गिरि ने कहा, कार्यक्रम का आयोजन करने के लिए किसी को भी अनुमति नहीं दी गई थी। किसी ने भी अनुमति के लिए आवेदन नहीं दिया था। उन्होंने कहा कि शुक्रवार शाम का आयोजन गए साल के मुकाबले बड़े पैमाने पर किया गया था। भीड़ पटरियों तक पहुंच गई थी और पटाखों की आवाज में ट्रेन के हॉर्न की आवाज दब गई।
मारे गए लोगों में ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूर थे। 57 लोग जख्मी हुए हैं। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी ने कहा, आयोजन की सूचना रेलवे को नहीं दी गई थी और जोर देकर कहा कि त्रासदी रेलवे के लेवल क्रॉसिंग (समपार) पर नहीं हुई है। बीच के हिस्सों में ट्रेन अपनी निर्धारित रफ्तार से चलती है और उम्मीद नहीं की जाती है कि पटरियों पर लोग होंगे। ऐसी जगहों पर रेलवे का कोई कर्मचारी तैनात नहीं रहता है। लोहानी ने कहा कि चालक ने अगर इमरजेंसी ब्रेक लगाया होता तो बड़ी दुर्घटना हो सकती थी। अमृतसर पुलिस ने कहा कि कार्यक्रम के लिए एक अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किया था पर आयोजकों से कहा गया था कि उन्हें स्थानीय निकाय और प्रदूषण विभाग से भी अनुमति लेना चाहिए, जो उन्होंने नहीं लिया।
पुलिस ने कहा कि इस कार्यक्रम का आयोजन सौरभ मदान ने किया था जो कांग्रेस पार्षद विजय मदन के पति हैं। पूर्व विधायक और पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं। अनजान लोगों के खिलाफ एफआईआर लिखाई गई हैं। अखबार ने लिखा है कि, शनिवार को सुबह तक पटरियों को शवों और शवों के हिस्से हटाकर साफ कर दिया गया था और इसके बाद कुछ लोगों ने पटरियों पर धरना दिया और राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ नारे लगाए। इलाके में तनाव बढ़ गया क्योंकि पुलिस ने इसे बैरीकेड कर दिया था और उन्हें खदेड़ने की कोशिश की। एक प्रदर्शनकारी ने पूछा, सरकार ने उपयुक्त सुरक्षा क्यों नहीं सुनिश्चित की? पटरियों के पास ऐसा कार्यक्रम क्यों होने दिया गया?
(शहर में) अस्पतालों के बाहर कई रिश्तेदार रो रहे थे। 18 साल के अपने बेटे मनीष को खो चुके विजय कुमार ने बताया कि कैसे आधी रात के बाद व्हाट्सऐप्प पर आई एक फोटो ने उनके बेटे की तलाश खत्म की। उनका छोटा बेटा आशीष कार्यक्रम से सुरक्षित लौट आया था। हालांकि मनीष के अवशेष तलाशने के लिए एक अस्पताल से दूसरे में जाना भी त्रासद रहा। एक पैर और एक हाथ मिला पर वह उनके बेटे का नहीं था। उन्होंने कहा, मेरा बेटा नीली जीन्स में था पर यह नहीं। ये (हिस्से) उनके बेटे के नहीं थे। कुमार गुरू नानक अस्पताल के बाहर रो रहे थे। अंदर, 30 साल की सपना जो सिर में चोट के कारण दाखिल हैं, ने बताया कि वे व्हाट्सऐप्प कॉल पर अपने पति को रावण दहन लाइव दिखा रही थीं तभी यह त्रासदी हुई। उन्होंने कहा, जब पुतला जलाया गया तो लोग मंच से दूर और पटरी की ओर बढ़ने लगे।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक, संजय कुमार सिंह की टिप्पणी और अनुवाद। संपर्क : [email protected]