Surya Pratap Singh : बाराबंकी में सत्ता की चौखट पर आशाराम ने फ़ासी लगाई. बैंकों और सूदखोरों के तगादे से त्रस्त किसान आशाराम ने शनिवार देर रात बाराबंकी में डीएम आवास के सामने पेड़ से फांसी लगाकर जान दे दी. रविवार सुबह मॉर्निंग वॉक पर निकले लोगों व एडीएम पीपी पॉल ने पुलिस को सूचना दी. आशाराम ने डीएम के नाम संबोधित दो पेज के सूइसाइड नोट में सूदखोरों के दबाव की बात लिखने के साथ ही सीएम से अपने अंतिम संस्कार में शामिल होने का आग्रह भी किया है.
किसान के सुइसाइड नोट का कुछ अंश इस प्रकार है: “कुछ पैसे मैंने विजय यादव से लिए थे, इस पर उन्होंने मेरी जमीन का इकरारनामा करवा लिया। यह पैसा सुरेश चन्द्र मिश्रा ने विजय को दे दिया है। सुरेश चन्द्र मिश्रा अब पैसा चाहते हैं। न दे पाने पर मुझे अपनी जमीन का बैनामा करना पड़ेगा। मैं अब जीना नहीं चाहता हूं।”
डीएम का गैर जिम्मेदाराना बयानः ”किसान आशाराम शराबी था।”
प्रश्न: यदि शराबी था तो कर्जदार मान कर आत्महत्या का आधार देकर शासन से मुआवजा क्यों माँगा?
प्रदेश की सच्चाई:
1. वर्तमान ओला ब्रष्टि से उ. प्र. में ३०० से ज्यादा किसानो की मौत हो चुकी है. अभी तक रु. 7 लाख प्रति किसान को दिए जाने के वादे के विरुद्ध एक भी किसान को मुआवजा नहीं.
2. वे कहते हैं कि किसी किसान ने ओला ब्रष्टि के नुकसान से आत्महत्या नहीं की. क्या उसे शौक था ऐसा करने का.
3. 89% किसान ऐसे हैं जो साहूकार, बैंक या अन्य संस्थायों के कर्ज से दबा है. राहत के कोई उपाय नहीं किये गए. बैंक और साहूकार का कर्जा माफ़ नहीं. केवल फसली ऋण ही defer किया गया.
4. रु. 4500 करोड़ के नुकसान के सापेक्ष, किसानों को मुआवजे के नाम पर ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ वह भी आधा अधूरा.
5. 75-80% आबादी रोजी रोटी के लिए खेती पर निर्भर है, ऐसी खेती का धंधा जो इतना जोखिम भरा है, छोटे किसानों को फसल बीमा सुरक्षा क्यों नहीं. जो भी बीमा सुरक्षा है वह केवल बड़े किसानों के लिए है, जिन्होंने KKC (किसान क्रेडिट कार्ड) बनवा रखा है.
यूपी कैडर के वरिष्ठ आईएएस सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से.
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