इस लेख में आज हम गोदी मीडिया की बात करेंगे। मीडिया तो हमने बहुत सुना था पर ‘गोदी मीडिया’ और फेक समाचार शब्द का चलन मोदी के पिछले पांच सालों के कार्यकाल की देन है। हमें याद करना होगा जब भाजपा के अध्यक्ष ने एक टीवी चैनल को अपना साक्षात्कार देते हुए यह स्वीकार किया था कि ‘‘चुनाव के समय मोदी जी के द्वारा 15 लाख रुपये देश के सभी नागरिकों के बैंक खातों में आ जायेगें – यह एक जुमला था’’ उसी प्रकार अच्छे दिन आयेंगे का वादा, तेल और डालर के कीमतों की बात हो या सेना के दो सर वापस लाने की बात। कालेधन से लेकर युवकों की रोजगार की बात, किसानों की समस्या से लेकर महिलाओं की सुरक्षा, चुनाव समाप्त होते ही सब बातें गायब हो चुकी थी और पाकिस्तान से दो-दो हाथ करने के दम भरने वाले 56 इंची के सीना वाले मोदीजी अपने प्रधानमंत्री पद के शपथ समारोह में सबसे पहले तात्कालिक पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को निमंत्रण भेज देते हैं और देश को बिना बताये छुप कर पाकिस्तान चले जाते हैं। उसी प्रकार कश्मीर के चुनाव के समय मोदीजी ने जिस राजनीति दल को देशद्रोही कह कर संबोधित किया था उसी राजनैतिक पार्टी के साथ सरकार इस शर्त पर बना लेते जिसका परिणाम हमने देखा कि किस प्रकार ऊरी, पठानकोट या पुलमावा में सेनाओं की हत्या की गई । पुनः से कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं को बल मिला। आतंकवादियों को एक नई जान फूंक डाली मोदी की सरकार ने।
मोदी के कार्यकाल में पुनः सेना के सर काट करे ले गए। कश्मीर की खुली सड़कों पर सेना के जवानों को जूतों से पीटा गया, सेना के हाथों को इस कदर बांध दिया कि गोदी मीडिया इन सब बातों को देशभक्ति, राष्ट्र भक्ति की संज्ञा देते नहीं थक रहीं थी और एक नये तरीके के राष्ट्रवाद की परिभाषा गोदी मीडिया के द्वारा गढ़ी जा रही थी जो देश के 60-70 प्रतिशत आबादी को जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख- इसाई सभी समुदाय के लोग शामिल है जो (भापजा व संघ के नहीं) मोदी के विचारों से सहमत नहीं वे लोग देशद्रोही हैं। भले ही वह सेना का जवान हो या खेतों में काम करता किसान ही क्यों न हो।
इससे पूर्व हम गोदी मीडिया पर बात करें हम मीडिया के स्वरूप चर्चा कर लेते हैं। मीडिया से अभिप्रायः जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविजन, सोशल मीडिया जिसमें इंटरनेट के द्वारा संचालित समाचार मीडिया भी है। इन सबमें छह ककार ‘कब, कहां, क्या, किसने, क्यों, कौन और कैसे’ का उत्तर जानने की जिज्ञासा हर समय बनी रहनी चाहिये। यह मीडिया का मूल मंत्र है। किसी भी प्रस्तुति के दो हिस्से होते हैं पहला है ‘समाचार’ और दूसरा है ‘विचार’। समाचार में विचारों का समावेश पत्रकारिता में कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता। विचारों की प्रस्तुति अलग होती है इसे मिलाकर समाचार नहीं बनाया जा सकता । उदाहरण के तौर पर कोई घटना के चित्रण में उसका विवरण, शब्दों के चयन से उसकी प्रस्तुति, घटनास्थल के चित्र व प्रतिक्रियाएँ ही उस घटना के आधार भूत और मूल तत्व हैं । यदि इसमें पत्रकार या संपादक कोई भी अपनी बात को जोड़ता है तो वह किसी भी रूप में स्वीकार योग्य नहीं है। हाँ! कई बार जनहित में छोटी सी छोटी घटना को बड़ी घटना बना देना या देश के हित में बड़ी से बड़ी घटना को छोटी बना देना पत्रकारिता में आजादी है। जैसा कि अन्ना आंदोलन जो कोई जन आंदोलन नहीं था यह मीडिया द्वारा प्रायोजित आंदोलन था जो छोटे-छोटे समूह की बातों को इस प्रकार दिखा रहे थे मानो देश में भूचाल पैदा हो जाएगा। जबकि जयप्रकाश जी का आंदोलन जन आंदोलन था। इस फर्क को हमें समझना होगा।
परन्तु इन दिनों मीडिया का एक बड़ा धड़ा / वर्ग पत्रकारिता को फेक न्यूज का माध्यम बना लिया है। खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया में इसके पांव तेजी से फैल चुके हैं। अब वे ही ऐंकर न्यूज चैनलों में चल रहें है जो झूठ का साथ देने और अपने सम्मान को गिरवी रख कर रोजीरोटी के जुगार में लगे हैं। चाहे वह रजत शर्मा, सुमित अवस्थी, अर्नब गोस्वामी, रोहित सरदाना, बरखा दत्त, अंजना ओम कश्यप, श्वेता सिंह या सुधीर चौधरी ही क्यों न हो। इन दिनों ये पत्रकार स्पष्ट रूप से खुद को गोदी मीडिया का पर्यायवाची बना चुके हैं। इनका काम ही सिर्फ झूठ को इस प्रकार फैलाना कि वह सच लगे। अर्थात गोदी मीडिया- झूठ, छद्म राष्ट्रवाद, नकली देश भक्ति व विपक्ष को हर बात में कमतर कर आंकना इनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। इनका बस एक ही धर्म बचा है- मोदी भक्ति। यही मोदी भक्ति इनके कार्यों को गोदी मीडिया बना देती है।
मीडिया का प्रथम धर्म होता है कि वह उन छः ककारों की खोज करे जो समाचार की प्रमाणिकता है परन्तु गोदी मीडिया की पत्रकारिता का इन मूल सिद्धांतों से कोई लेना देना नहीं, उल्टे जो इन छः ककारों बात करता है उन्हें वे देश विरोधी करार देते नहीं थकते। मसलन पुलमावा में 42 भारतीय सैनिकों की अतांकवादियों के द्वारा हत्या कर दी गई व उसके बाद भारतीय सेना ने बालाकोट एयर स्ट्राइक किया। सवाल तब खड़ा हुआ जब रात की इस घटना को लेकर सरकारी तंत्र की तरफ से एक फेक सूचना प्रसारित की गई कि इसमें 350 आतंकवादी मारे गए और मस्जिद को नेस्तनाबूद कर दिया गया। गोदी मीडिया ने इसे प्रमाणित करने के लिये एक वीडियो गेम्स का सहारा लिया और उसे इस प्रकार प्रसारित व प्रचारित किया मानो वही वीडियो गेम सच्ची घटना की तस्वीर है।
जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक जन सभा में कहा कि 250 आतंकवादियों को मौत के घाट सुला दिया गया तब जाकर विवाद शुरू हुआ और सेना की तरफ से इसका खंडन आया कि उनका काम लाश गिनना नहीं है। दुनियाभर के पत्रकारों ने घटनास्थल का दौरा करते हुए उस मस्जिद को देखा कि जिसके नेस्तनाबूद कर देने की बात का दावा भारत की गोदी मीडिया कर रही थी, वहां सैकड़ों बच्चों को पढ़ते देखा गया। अर्थात किसी व्यक्ति को सत्ता में पुनः स्थापित करने के लिये उसके पक्ष में अफ़वाहों को फैलाना, दूसरों के सवालों पर उसे देशद्रोही करार कर देना और खुद को देश भक्त साबित करना वह भी झूठ के बल पर। जो मीडिया का काम कदापि नहीं है। कौन देश भक्त है या कौन देशद्रोही यह कानून का काम है परन्तु इन दिनों वे मीडिया और उनके चंद ऐंकर बाजारवाद के गिरफ़्त में इस प्रकार कैद हो चुके हैं कि उनको सपने में भी मोदी ही मोदी का भूत दिखता है पता नहीं कब किसकी ज़ुबान फिसल जाए और उनका भी हाल पुण्य प्रसून बाजपेयी या इनके जैसे कई खुद्दार पत्रकारों के साथ किया जा रहा है इनके साथ भी ना हो जाए।
कोलकाता निवासी लेखक शंभू चौधरी स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं. इनसे संपर्क 09831082737 या [email protected] के जरिए कर सकते हैं.
रामवीर
April 15, 2019 at 6:05 pm
बरखा दत्त का नाम डाल कर उसको पाक साफ करना चहाते हो क्या !ये वही पत्रकार हैं।जो upa की जब goverment थी तब कश्मीर में टाइगर के साथ बाइक पर रिपोर्टिंग करती थी।और अब आप इसे इन सब के साथ जोड़ रहे हो।
रामवीर
April 15, 2019 at 6:13 pm
और हो सकता है।तुम्हें पत्रकारिता का ज्ञान ज्यादा हो,एक जानकारी और दे दु ,वो समय भूल गये क्या जब न्यूज़ चलाने से पहले परमिशन लेनी पड़ती थी, की क्या दिखाये ओर क्या नही।
और आज खुल कर किसी के बारे में लिखो ।
अमित कुमार
April 24, 2020 at 8:08 am
सुनो ये जो भक्ति दिखा रहे हो न इससे काम चलने वाला नहीं मीडिया को किसी पार्टी का ना होकर निष्पक्ष होना चाहिए तभी सरकार के गुण दोष पता चलेंगे और यदि किसी देश की मीडिया निष्पक्ष नहीं होती तो तो ये उस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है |
जय हिन्द
Rajkm
April 21, 2019 at 9:07 pm
Apni pahchan to de dete
Presstitutes or Designer journalist
Chatukar journalist
Mukesh Machkar
January 31, 2020 at 8:11 pm
भक्तों की जल रही है… कोई बरनॉल लाओ जल्दी से…
Pradeep Sharma
April 17, 2020 at 3:57 pm
Jal to unki rahi hai jinki chal nahi rahi hai.
Rahul kumar
April 21, 2020 at 11:48 pm
Hehehehehe