पत्रकारों पर आये दिन हो रहे हमले इस देश को शायद गर्त की तरफ धकेलने का काम कर रहे हैं. इस बात को हम झुठला नहीं सकते कि अगर ऐसे ही पत्रकारों पर हमले होते रहे तो एक दिन लोकतंत्र खतरे में होगा. साथ ही अत्याचार और भ्रष्टाचार बहुत आसानी से फल फूल रहा होगा और ये देश उस वक्त मूक दर्शक बन के सब कुछ चुप चाप देख रहा होगा. आखिर ये लोग कौन हैं इनके हौसले इतने बुलंद कैसे हैं कि ये लोग हर आवाज उठाने वाले लोगों को मार देते हैं. सवाल यह भी उठता है कि बिना किसी सह के ये लोग ऐसा अंजाम कभी नही दे सकते. दरअसल पत्रकारों पर हमले वही लोग करते या करवाते हैं जो इन बुराइयों में डूबे हुये हैं. ऐसे लोग दोहरा चरित्र जीते है वजह साफ होती है कि ऐसे लोग मीडिया पर हमला क्यों करते हैं, वजह है अपना फायदा या अपनी भड़ास निकालने के लिए..
हाल ही में पत्रकार गौरी लंकेश को गोलियों से भून दिया गया देश के बुध्दिजीवियों ने तरह तरह की बातें की. नेताओं के भी बयान सामने आये लेकिन परिणाम शून्य रहा. खैर सच हमेसा कड़वा होता है सच लिखने के एवज में ही गौरी लंकेश को अपनी जान गंवानी पड़ी. जब गौरी लंकेश के हत्या का विरोध करने के लिए पत्रकारों का समूह प्रेस क्लब दिल्ली पहुंचा तो वहां एक घटना और घटी वो दु:खद थी वहां दो पत्रकारों ने मिलकर साथी पत्रकार भड़ास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह के साथ मारपीट की. जिसमें वह घायल हो गये.. इतना हो जाने के बावजूद भी यशवंत सिंह ने हिंसा करना उचित नहीं समझा यहां भी उन्होने कलम से ही जवाब देना उचित समझा और वही किया.
अब आप को हमला करने वाले इन पत्रकारों (गुण्डो) के बारे में अवगत करा दूं, एक है भूपेन्द्र सिंह भुप्पी और दूसरा है अनुराग त्रिपाठी. इन दोनों ने पहले प्रेस क्लब के अन्दर यशवंत सिंह से बातचीत की फिर बाहर निकलते ही उन पर हमला कर दिया. हमले में यशवंत सिंह को काफी चोटें आयी और उनका चश्मा भी टूट गया. आप को बता दें कि ये दोनो हमलावर अपनी ऐसी ही करतूतों की वजह से ही मीडिया जगत में नहीं टिक पाये हैं. इन दोनों का उल्टे सीधे काम करना ही पेशा बन गया है जो ये पत्रकारिता के जरिए अंजाम दे रहें है. इनकी पत्रकारिता को तत्काल प्रभाव से रद्द कर देना चाहिए ताकि आगे से यह ऐसी करतूत ना कर सकें.
अब आप को यशवंत सिंह के बारे में बताते हैं.. पेशे से पत्रकार हैं, पिछले कई वर्षो से भड़ास4मीडिया नामक बेवसाइट चलाते हैं. जहां मीडिया राजनीति और समाज से जुड़ी बुराइयों के बारे में लिखते हैं. यहां सवाल एक बार फिर यही उठ रहा है कि आखिर सच्चाई लिखने वाले पत्रकारों को क्यों मारा पीटा जाता है. क्या हमारे देश का चौथा स्तम्भ अब सुरक्षित नहीं रहा. हर बार दिखावे के तौर पर रिपोर्ट तो दर्ज की जाती है मगर उसका असर देखने को नहीं मिलता है. आखिर इसकी जवाबदेही कौन देगा कि जब भी पत्रकार प्रभावशाली लोगों के खिलाफ मुहिम छेड़ते हैं तो उन्हे उसकी कीमत जान देकर क्यों चुकानी पड़ती है.
यशवंत सिंह पर हमला हुआ लेकिन उसमें पुलिस प्रशासन ने अपनी क्या भूमिका निभाई… इसकी जवाबदेही कौन देगा… जब पत्रकारों की सुनवाई नहीं है तो आम जनता तो बहुत दूर की बात हो गयी. पुलिस प्रशासन क्या अब इसकी जिम्मेदारी लेगा कि अब यशवंत सिंह पूरी तरह से सुरक्षित हैं.. वन्दन करता हूं यशवंत जी आपका कि आज भी आपने अहिंसा को जिन्दा रखा है. आज गांधी जी की वो बात फिर याद आ गयी “अहिंसा परमों धर्म:”
लेखक हर्षित हर्ष शुक्ला युवा पत्रकार हैं.