यूनुस खान-
औद्योगिक क्रांति के बाद से धरती का तापमान बढ़ता चला जा रहा है। नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्पेस स्टडीज़ के मुताबिक 1880 से अब तक धरती का औसत तापमान कम से कम 1.1 डिग्री सेल्सियस यानी 1.9 डिग्री फ़ेरनहीट बढ़ा है।
मोटे तौर पर इसकी वजह रही हैं ग्रीन-हाउस गैसें। साल 2018 और साल 2021, 2024 से पहले धरती के इतिहास के सबसे गरम साल रहे थे। आपको बता दें कि तापमान के ये आंकड़े जमा करने का काम सन 1850 में शुरू हुआ था। लेकिन हालात किस तरह लगातार बिगड़ते जा रहे हैं इसकी मिसाल हैं सन 2023 के आंकड़े।
साल 2023 मानव इतिहास का सबसे गर्म साल रहा है। बीते साल धरती का औसत तापमान बीसवीं सदी के औसत से 1.18°C (2.12°F) बढ़ा है। 2023 का हर महीना सबसे ज्यादा गरम रहा है।
सवाल ये है कि एक या दो डिग्री ग्लोबल वॉर्मिंग की हमें चिंता क्यों करनी चाहिए। ये तो छोटा-सा आंकड़ा है ना। नहीं। इसे इस तरह समझिए। हमारे समुद्रों, वायुमंडल और धरती को एक डिग्री गरम करने के लिए बड़ी तादाद में हीट चाहिए। इतिहास गवाह है कि धरती के तापमान में एक या दो डिग्री गिरावट से छोटा-सा हिम-युग/ आइस एज आ गया था।
पाँच डिग्री की गिरावट बीस हज़ार साल पहले हुई थी तो उत्तरी अमेरिका में बर्फ की मोटी परत जम गयी थी। UN कहता है—‘हमारी नाजुक धरती एक धागे से लटकी है।
धरती का एक डिग्री तापमान बढ़ने से धरती का ज़्यादा पानी भाप बनेगा। धरती का पानी घटेगा। वायुमंडल में सात प्रतिशत ज़्यादा भाप होगी। इससे कई हिस्सों में सूखे और अकाल की स्थिति आ जायेगी। पहाड़ों पर ज़्यादा बर्फ पिघलेगी। जंगलों की आग बढ़ेगी। फ्लैश फ्लड आया करेगी। समुद्रों का जल स्तर बढ़ेगा और मुंबई या न्यूयॉर्क जैसे तटीय शहर डूब जायेंगे। क्या कर रहे हैं हम?