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सियासत

हिंदी बोले तो भिखमंगों की जुबान!

Sumant Bhattacharya : ओहहह मेरी हिंदी……. हिंदी का मतलब है, भिखमंगों की जुबान। हिंदी भाषी होने का मतलब है कूढ़मगज होना। जुगाड़बाजी में यकीन, भाई भतीजावादी या जातिवादी तेवर का जांबाज इंसान होना.। हिंदी में शिक्षा हासिल करने की आखिरी मंजिल हे बेरोजगारों की लंबी कतार में खुद का शुमार करवाना। हिंदी बौद्धिक होने पर आयातित ज्ञान और विदेशी बौद्धिक चोंचलों का हिंदी समाज में उल्टी करने में दक्ष होना। फिर भी मैं हिंदी बोलता हूं, हिंदी में गरियाता हूं, हिंदी में रोजी तलाशता हूं, हिंदी में जुगाड़ बैठाता हूं, हिंदी में जातीय और सांस्कृतिक अस्मिता की हुंकारी भरता हूं,..हिंदी में मोहब्बत के नगमें लिखता हूं, प्रेमिका से इश्क का इजहार हिंदी में ही करता हूं, क्योंकि मैं हिंदीभाषी हूं और हिंदी के कूप में जीने के लिए अभिशप्त हूं। आओ मित्रों हिंदी दिवस की रस्म अदायगी करते हैं आज मिलजुल कर हम सब हिंदी भाषी।

कई हिंदी-अंग्रेजी अखबारों व न्यूज चैनलों में काम कर चुके पत्रकार सुमंत भट्टाचार्य के फेसबुक वॉल से.

<p>Sumant Bhattacharya : ओहहह मेरी हिंदी....... हिंदी का मतलब है, भिखमंगों की जुबान। हिंदी भाषी होने का मतलब है कूढ़मगज होना। जुगाड़बाजी में यकीन, भाई भतीजावादी या जातिवादी तेवर का जांबाज इंसान होना.। हिंदी में शिक्षा हासिल करने की आखिरी मंजिल हे बेरोजगारों की लंबी कतार में खुद का शुमार करवाना। हिंदी बौद्धिक होने पर आयातित ज्ञान और विदेशी बौद्धिक चोंचलों का हिंदी समाज में उल्टी करने में दक्ष होना। फिर भी मैं हिंदी बोलता हूं, हिंदी में गरियाता हूं, हिंदी में रोजी तलाशता हूं, हिंदी में जुगाड़ बैठाता हूं, हिंदी में जातीय और सांस्कृतिक अस्मिता की हुंकारी भरता हूं,..हिंदी में मोहब्बत के नगमें लिखता हूं, प्रेमिका से इश्क का इजहार हिंदी में ही करता हूं, क्योंकि मैं हिंदीभाषी हूं और हिंदी के कूप में जीने के लिए अभिशप्त हूं। आओ मित्रों हिंदी दिवस की रस्म अदायगी करते हैं आज मिलजुल कर हम सब हिंदी भाषी।</p> <p>कई हिंदी-अंग्रेजी अखबारों व न्यूज चैनलों में काम कर चुके पत्रकार सुमंत भट्टाचार्य के फेसबुक वॉल से.</p>

Sumant Bhattacharya : ओहहह मेरी हिंदी……. हिंदी का मतलब है, भिखमंगों की जुबान। हिंदी भाषी होने का मतलब है कूढ़मगज होना। जुगाड़बाजी में यकीन, भाई भतीजावादी या जातिवादी तेवर का जांबाज इंसान होना.। हिंदी में शिक्षा हासिल करने की आखिरी मंजिल हे बेरोजगारों की लंबी कतार में खुद का शुमार करवाना। हिंदी बौद्धिक होने पर आयातित ज्ञान और विदेशी बौद्धिक चोंचलों का हिंदी समाज में उल्टी करने में दक्ष होना। फिर भी मैं हिंदी बोलता हूं, हिंदी में गरियाता हूं, हिंदी में रोजी तलाशता हूं, हिंदी में जुगाड़ बैठाता हूं, हिंदी में जातीय और सांस्कृतिक अस्मिता की हुंकारी भरता हूं,..हिंदी में मोहब्बत के नगमें लिखता हूं, प्रेमिका से इश्क का इजहार हिंदी में ही करता हूं, क्योंकि मैं हिंदीभाषी हूं और हिंदी के कूप में जीने के लिए अभिशप्त हूं। आओ मित्रों हिंदी दिवस की रस्म अदायगी करते हैं आज मिलजुल कर हम सब हिंदी भाषी।

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उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ कमेंट्स इस प्रकार हैं…

वीना दुबे मुखर्जी मेरी हिंदी नहीं सुमन्त जी हम सब की हिन्दी ..अपनी हिंदी….
 
Ashok Tripathi इतना सब होने पर भी हमारी हिन्दी अभी जिंदा है, यही क्या कम है.
 
Navneet Mishra हिँदी के संभावित आयामोँ की नृशंस हत्या भी प्रशासनिक अदूरदर्शिता के साथ सामंजस्य बिठा कर हम ही लोगोँ ने किया है।
 
Pramod Joshi हिन्दी समाज में बौद्धिक कर्म का सम्मान अपेक्षाकृत कम है और अज्ञान का प्रसार काफी है, फिर भी हिन्दी की ताकत कम नहीं है और उसकी पैन इंडियन उपस्थिति उसे महत्वपूर्ण बनाती है।
 
विवेक देवेन्द्र सिंह हिन्द की पहचान हिन्दी से है यह भी कम नहीं……
 
Sanjaya Kumar Singh पान इंडियन उपस्थिति – एक वाक्य में दो शब्द अंग्रेजी के आ ही गए प्रमोद जोशी जी।
 
Navneet Mishra विरोध प्रकट करने पर आधुनिक बौद्धिक और तुष्टिकर्ता वर्ग कुतर्क करता है- “Its all about medium of expression.”
जब कभी इसे अपनी मूल राष्ट्रीय अस्मिता के साथ जोड़कर देखा होता तब ये लोग समझ पाते इस पीड़ा को। अपने गौरव तक को “HAPPY INDEPENDENCE DAY” कहने को बाध्य हैँ अपनी आधुनिकता की पंगुता के कारण।
 
Pramod Joshi मैने इन शब्दों को जानबूझकर लिखा है। इनकी जगह अखिल भारतीय उपस्थिति भी लिख सकता था। पैन इंडियन शब्द का इस्तेमाल प्रायः अंग्रेजी बोलने वाले करते हैं। इस मामले में हिन्दी भारी पड़ती है। हिन्दी वाक्य में यदि मैं अंग्रेजी की किसी अभिव्यक्ति को इस्तेमाल कर रहा हूँ तो सोच-समझकर ही कर रहा हूँ। महत्वपूर्ण वह मंच है जहाँ मैं लिख रहा हूँ। यदि मैं बातचीत में इसका इस्तेमाल होता तो उसे लेकर आपत्ति इतनी जल्दी नहीं आती। हमारी अस्मिता को बड़ी जल्दी ठेस लगती है।
 
Navneet Mishra अंग्रेज़ी वैश्विक भाषा है तो है पर तंत्र ही ऐसा कर डाला है कि सुबह नित्य कर्म से लेकर रात को निद्रा तक सब कुछ उसी “medium” मेँ करते हैँ जिसके समक्ष अपने पृथक स्वतंत्र अस्तित्व के संघर्ष मेँ न जाने कितने युवा शहीद हो गये।
 
Pramod Joshi अंग्रेजी की ताकत है उसका ज्ञान की भाषा बनना। भारत में वह रसूख की भाषा है। यानी अंग्रेजी बोलते ही व्यक्ति की इज्जत बढ़ जाती है। पर यह सम्मान हमारी हीनता को बताता है। इसके विपरीत अंग्रेजी को ज्ञान की भाषा के रूप में हम सम्मान नहीं देते।
 
Navneet Mishra पूर्णतया सहमत जोशी जी!
 
Pramod Joshi हिन्दी केवल जीवित नहीं बड़ी तेजी से बढ़ रही है। उसका नया विस्तार हिन्दी के हृदय क्षेत्र में न होकर परिधि में है। यह बात अब बंगलुरु, कोयम्बत्तुर, तिरुवनंतपुरम और चेन्नई में जाकर पता लगती है। एक दशक पहले और आज में भारी अंतर है। यह अंतर अगले एक दशक में और साफ होगा। पर यह हिन्दी वाचिक हिन्दी है। ज्ञान-विज्ञान की हिन्दी को हिन्दी क्षेत्र में ही बढ़ना चाहिए।
 
Sanjaya Kumar Singh मुझे लगता है कि इसका कारण यह है कि हिन्दी भाषी माता पिता के बच्चे अंग्रेजी बोल रहे हैं औऱ बंगलूर आदि शहरों में रह रहे हैं। पर इससे हिन्दी का कोई भला नहीं होने वाला। उनके बच्चे तो हिन्दी पढ़ने और बोलने से रहे।
 
Pramod Joshi अब बंगलूर में कन्नड़ बच्चे भी हिन्दी बोल रहे हैं। इससे हिन्दी बोलने वालों का विस्तार होगा। भला तो ज्ञान-विज्ञान से होता है, पर भाषा को जानने-समझने वालों की संख्या बढ़ने में खराब कुछ नहीं है।
 
Sumant Bhattacharya Pramod Joshi सर, आप यकीनन मुझसे ज्यादा भारत घूमे हैं..उपस्थिति के लिहाज से हिंदी किनके बीच है। मेहनतकश लोगों के बीचे में, मजदूरों के बीच में। जिनकी रोजी रोटी का वास्ता सीधे तौर पर बाहर से आने वाले लोगों से पड़ता है। तमिलनाडु में मैं जेमिनी ग्रुप के मालिकान से मिला, और भी तमाम धनी भद्र समाज के सदस्यों से मिला…किसी ने भी हिंदी में वार्तालाप को प्रोत्साहित नहीं किया….कुछ ज्यादा कम के लिहाज से यह बात बंगाल में भी है। मैं यह नहीं कहूंगा कि ऐसा वो अनुदार होकर करते हैं..उन्हें वाकई हिंदी की जानकारी नहीं है। ऐसे में आप हिंदी की सर्वभारतीय उपस्थिति के बारे में क्या कहेंगे।
 
Indra Rani सुमंत भाई सच तो यह है कि भारत में बहुत सी भाषा प्रचलन में हैं और सब को अपनी मातृभाषा से प्रेम है । सरकार की ढुलमुल नीतियाँ ही हिन्दी की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार हैं ।अब एक पीढ़ी की पौध अंगेजियत की पक्षधर बन चुकी ।अनपढ़ लोग भी यथासंभव कुछ अंग्रेजी के शब्दों को बोलकर गर्व महसूस करते हैं और चाहते हैं कि उनके बच्चे पब्लिक स्कूल में पढ़ें ।क्यों नहीं सरकार सबके लिए समान शिक्षा का प्रावधान कर सकती ? जिन देशों ने अपनी भाषा को ही आगे रक्खा क्या उन्होंने तरक्की नहीं की ?
 
Sumant Bhattacharya Pramod Joshi सर, मैं आपकी इस बात सं सहमत हूं कि हिंदी को अन्य भाषाओं के शब्दों को हजम कर लेना चाहिए,..अंग्रेजी भी ऐसा ही करती है और कभी हिंदी भी यही काम करती थी..पर सांस्कृत्कि दुराग्रहों ने हिंदी की श्वांस नलिका को ही काट डाला है। इस लिए पैन इंडिया शब्द को मैं स्वीकार करता हूं…..
 
Pramod Joshi तमिलनाडु का प्रवर वर्ग अपने बच्चों को हिन्दी सिखाना चाहता है। बहुत से लोगों में तमिल गौरव की भावना है। पर जो लोग हिन्दी सीखना चाहते हैं उन्हें लगता है कि बच्चों को काम-काज के लिए उत्तर भारत या किसी दूसरे इलाके में भी जाना पड़ सकता है। आज दुनिया का कोई इलाका ऐसा नहीं है जहाँ द्विभाषा या त्रिभाषा की संस्कृति विकसित न हो रही हो। कुछ समय बाद इंग्लैंड में भी केवल अंग्रेजी से काम नहीं चलेगा। वह वक्त बहुत ज्यादा दूर नहीं है।
 
Sanjaya Kumar Singh अंग्रेजी पढ़कर बहुत सारे लोग विदेश चले गए, नौकरी की यहां की संभावनाएं दूसरों के लिए बनी रहीं और वहां से वे पैसे भेज रहे हैं सो अलग। अगर सरकार हिन्दी या भारतीय भाषाएं जबरन थोपती और वे जो विदेश चले गए यहीं रहते तो भारत का क्या होता – कल्पना कीजिए।
 
Sumant Bhattacharya Indra Rani जी,,सत्ता के संरक्षण से किसी भाषा का संरक्षण तो संभव है लेकिन प्रचार प्रचार तो उस भाषा को बोलने वालों की व्यापक और सब कुछ स्वीकार कर आत्मसात करने की आदत से ही संभव है।
 
Sumant Bhattacharya Ashok Tripathi भाई..लुटियन के टीले में चढ़ते ही या कॉरपोरेट दुनिया में कदम रखते ही हिंदी का अस्थिकलश तक बाहर रखवा दिया जाता है।
 
Pramod Joshi हिन्दी जीवन में जो गरीब तबका धीरे-धीरे मध्य वर्ग में शामिल होने जा रहा है उसकी ताकत हिन्दी को बढ़ाएगी।
 
Sanjaya Kumar Singh प्रमोद जोशी जी आप सही हैं। पर मुझे डर है कि इसके बाद वाली पीढ़ी हिन्दी को छोड़ देगी। हम सब लोग गरीब तबके से मध्यम वर्ग में आए हैं और हमारे बच्चों ने हिन्दी की पढ़ाई नहीं की (कामचलाऊ हिन्दी ही जानते हैं) अपवाद की बात अलग है पर वह दिखाई नहीं देता।
 
Sumant Bhattacharya Pramod Joshi सर, एक सैद्धांतिक सवाल..माना कि पिछले 24 सालों में मध्यवर्ग 13 फीसदी से बढ़कर 35 फीसदी के करीब हुआ है, जो शहरी भी हो रहा है। भाषा यदि शिक्षा का माध्यम है और किसी भाषा के स्तर को समझने के लिए यदि शिक्षा को मानक माना जा सकता है तो आप खुद ही देखिए कि शहरीकरण के साथ किस भाषा माध्यम के शिक्षा केंद्रों को बढ़ावा मिला। ऐसे में मध्यवर्ग के इजाफे के साथ कैसे हिंदी का सीधा रिश्ता स्थापित किया जा सकता है।
 
Bhagwandas Nyati भारत में उपजा ज्ञान अनन्त हैं । कुछ अज्ञानी, लोभी, दास भाव में जीने वाले, राज द्रोही मनुष्यों की, जिन्हें अंग्रेजी से प्रेम है, उनकी बात करना व्यर्थ हैं । जानकारी अथवा ज्ञान प्राप्त करने हेतु अन्य भाषा को जानने की बात समझ में आती हैं । आज हिन्दी दिवस हैं । मुझे मेरी मातृभाषा पर गर्व हैं और मैं ह्रदय से इसका आदर करता हूँ ।
 
Vikram Dev आज हिंदी दिवस पे भी बहुतो के पास हिंदी सॉफ्टवेर नहीं है या हिंदी में लिखना नहीं चाह रहे???
 
Pramod Joshi आने वाले समय में हिन्दी का स्वरूप क्या होगा, इसपर भी विचार करना चाहिए। हम जिस प्रांजल हिन्दी की परिकल्पना कर रहे हैं वह तकरीबन सवा सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी है, बल्कि उसका उदय काल बीसवीं सदी के शुरू में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के जन्म से मानना चाहिए। साठ के दशक में उत्तर भारत के स्कूलों में हिन्दी माध्यम से पढ़ाई की लहर चली। पर भारत के नीति-निर्धारकों के सिर पर अंग्रेजी सवार थी। हिन्दी माध्यम से पढ़कर आए मेधावी छात्र कुंठित हो गए। आज भी गणित और विज्ञान का बेहतरीन ज्ञान रखने वाले छात्र जब इंजीनियरी कॉलेजों में भरती होकर आते हैं तो वे कैम्पस सिलेक्शन के समय ग्रुप डिस्कशन में अटक जाते हैं। पर जब वे चुन लिए जाते हैं तो काम के ‘फ्लोर’ पर अंग्रेजी वालों को गजों पीछे छोड़ देते हैं। यह अंतर्विरोध है। हिन्दी केवल लिखने-पढ़ते तक सीमित नहीं है। मन में बैठी है। हमें अंग्रेजी को भी पढ़ना चाहिए, पर अंग्रेजियत से बचकर। इस अंतर्विरोध का हल हिन्दी की ताकत करेगी। फिलहाल ‘पैन-इंडियन’ हिन्दी का गड़बड़झाला अलग है। हिन्दी का बौद्धिक-कर्म दूसरी बात है।
 
Sumant Bhattacharya Pramod Joshi सर,,मैं मध्य वर्ग और हिंदी के सक्षम होने के रिश्ते पर आपके विचार जानना चाह रहा हूं..जिस पर मैंने ऊपर कमेंट में जिक्र किया है। मैं वाकई समझना चाहता हूं कि हिंदी कैसे मजबूत होगी बिना शिक्षा माध्यम बने और कैसे कामयाब होगी,अंग्रेजी की ओर भागते हिंदी पट्टी के मध्यवर्ग के बूते..मुझे वाकई कोई संबंध नहीं दिखाई दे रहा है।
 
Sanjaya Kumar Singh प्रमोद जोशी जी, समस्या यही है कि हिन्दी की ‘पैन-इंडियन’ उपस्थिति के बाद भी हिन्दी के बौद्धिक-कर्म में पैसे नहीं हैं (अपवादों को छोड़कर) और इसीलिए हिन्दी खराब, कमजोर या उपेक्षित है (या इसपर चर्चा करने की जरूरत हो रही है) और इसीलिए मध्यम वर्ग में शामिल हुई नई पीढ़ी ने अपने बच्चों को हिन्दी के गड़बड़झाले से पूरी तरह मुक्त कर दिया है। (हिन्दी के प्रति यह एक तरह का अपराध है, फिर भी)।
 
Prakash Chandra Khulbe kya likhate hain sir…aap…pls keep continue writing…ye bahut achhi hindi hai jo sidhe magaj mai jaati hai….
 
Sanjaya Kumar Singh सुमंत भाई, जब तक हम मानक हिन्दी नहीं बनाएंगे, गलत लिखने बोलने वालों के कान नहीं खींचेंगे और हिन्दी के बौद्धिक कर्म में पैसे नहीं होंगे, हिन्दी को सरकारी अनुदानों के सहारे बढ़ाने की कोशिश करेंगे यही होगा। आज अच्छी और सही भाषा के लिए हिन्दी के अखबार या चैनल के पास उतने जानकार नहीं हैं जितने अंग्रेजी में होते हैं।
 
Sumant Bhattacharya Pramod Joshi सर, Sanjaya Kumar Singh भाई..क्या अच्छा हो कि कभी इस बात का अनुपातिक सर्वे सामने आए कि सिर्फ दिल्ली के सत्ता गरियारे में हिंदी में लिखे जाने वाली अर्जियों और हिंदी में दिए जाने वाले हुक्मनामों का आंकड़ा सामने आए
 
Sumant Bhattacharya Sanjaya Kumar Singh भाई,Pramod Joshi सर, आप दोनों से एक ही सवाल, क्या वजह है कि मुल्क में सबसे पिछड़े राज्यों में कमोबेश सभी राज्य वो हैं जो हिंदी भाषी हैं। क्या दोनों के बीच कोई रिश्ता दिखाई देता है आपको।
 
Sanjaya Kumar Singh सुमंत भाई, इसका बहुत मतलब नहीं है। आमतौर पर हमारे यहां हिन्दी पर अंग्रेजी वालों की चल रही है। मेरे एक क्लाइंट ने कहा कि डोमेस्टिक फ्लाइट के लिए घरेलू उड़ान लिखा जाए। मैं उसे अंतर्देशीय उड़ान लिखना चाहता था। क्लाइंट के कहने पर मैंने घरेलू उड़ान लिख दिया और शाम को सभी टीवी चैनलों पर घरेलू उड़ान ही था। कहने का मतलब यह कि किसी चैनल या अखबार में कोई ऐसा व्यक्ति होता जो उसे घरेलू उड़ान कर देता तो मैं क्लाइंट को बताता कि मैं सही था आप गलत। अब तो क्लाइंट ही मुझे हिन्दी सीखाता है। (और मैं सीख भी रहा हूं, उनके काम की हिन्दी नहीं तो धंधे से बाहर हो जाउंगा)।
 
Prakash Chandra Khulbe sir…bahas bahut ho sakati hai…par sachai yahi hai ki hindi ek sampark bhaasha hai aur ye aage hi badegi…modi ji jaise gujarati vyakti bhi ise pahchaan se jodate hai…magr hum hindi bhaashi ise tuchh samajhate hai….
 
Sanjaya Kumar Singh सुमंत भाई, मेरा मानना है कि बिहार से हिन्दी बोलने वाले जितनी पीढ़ी पहले बाहर हो गए वो आज उतने संपन्न हैं।
 
Prakash Chandra Khulbe sir agar aapne antardeshiy ki jagah par gharelu likha to ismein galat kya hai///???
 
Sanjaya Kumar Singh प्रकाश जी विमान घर में नहीं उड़ते। वहां संदर्भ देश के अंदर की उड़ानों से था और डिक्सनरी में डोमेस्टिक के लिए घरेलू होता है दिमाग अंतर्देशीय कहता है।
 
Sumant Bhattacharya Pramod Joshi सर, मैं संजय भाई की इस बात से खुद को जुड़ा पा रहा हूं कि हिंदी पट्टी में सांस्कृतिक और भाषाई पलायन हो रहा है,..हिंदी से अंग्रेजी की ओर,,और यह पलायन ऐच्छिक है.जिसमें यकीनन बाजार भी अपनी भूमिका बेहद मजबूती के साथ निर्वाह कर रहा है लेकिन उससे कहीं बड़ी ताकत के तौर पर सत्ता अंग्रेजी के साथ है। यदि ऐसा ना होता तो नेतृत्व और शिक्षा, दोनों ही स्तरों पर हिंदी पट्टी के ज्ञान के केंद्रों, अलीगढ़, इलाहाबाद, लखनऊ, काशी और पटना विश्वविद्यालयों का यह हश्र ना होता…..
 
Prakash Chandra Khulbe sanjayji mai maanta hoon aapka sandarbh…magar kai baatein samjhaane ke liye bhi hoti hain….mere jaise saamany naagrik ko antarrajyiy ki jagah par ghareilu jyada samajh aata hai…yaad hai 3 idiots….
 
Pramod Joshi क्या कारण है कि अमिताभ बच्चन को लोग उनकी हिन्दी के कारण भी पसंद करते हैं? हिन्दी दर्शक, श्रोता, पाठक की भी उसे बचाने में भूमिका है।
 
Prakash Chandra Khulbe aur english waalon ka haal bhi bahut achha nahi hai…unka star to hindi s bhi kharaab hai…poora programme 100-150 shabdon ke istemaal mai hi khatam ho jaata hai…chahe kisi ka bhi ho…including arnab da…
 
Sanjaya Kumar Singh प्रकाश जी, मैंने उदाहरण दिया है कि कैसे हिन्दी बिगड़ रही है। मशीनी अनुवाद की भाषा वन रही है। वरना राउंड दि क्लॉक को कोई कहे कि घड़ी के चारो ओर आसानी से समझ में आता है। पर यह सही तो नहीं है।
 
Prakash Chandra Khulbe sanjayji bilkul sahi…aaap log bade log hain …koi channel strat kijijye aur kariye apne man ki…
 
Sumant Bhattacharya Pramod Joshi सर, क्या आप वाकई इस बात से सहमत है कि अमिताभ बच्चन की एकमात्र ताकत हिंदी है..और मैं कहां इनकार कर रहा हूं कि हिंदी बाजार को रास नहीं आ रही है। मेरा निवेदन सिर्फ इतना है कि हिंदी मनोरंजन की भाषा, उपभोक्ता बाजार को सम्मोहित करने की भाषा के तौर पर तो स्थापित है, लेकिन रोजगार और सत्ता सम्मोहन की भाषा के तौर पर हिंदी पट्टी में भारी सांस्कृतिक-भाषाई पलायन हो रहा है, हिंदी से अंग्रेजी की ओर……
 
Sumant Bhattacharya संजय भाई…वाकई आपने बड़ी मुसीबत का जिक्र किया …अब राउंड द क्लॉक का हिंदी अर्थसार तो बेहतर यही होगा कि हम कहें—चौबीसों घंटे दिमाग खाए रहते हो यार…एक लम्हे की भी फुर्सत नहीं देता। पर जैसा आपने कहा कि भाषा का तेवर भी तो अंग्रेजी वाले ही तय कर रहे हैं..हिंदी तो सिर्फ भिखमंगों की भाषा है..उपभोक्ता को रिझाने की भाषा है….
 
Sanjaya Kumar Singh हिन्दी का पाठक या जानकार जब पैसे वाला होगा तभी हिन्दी में बाजार को संबोधित करने की जरूरत होगी वरना खरीद कर हिन्दी की किताब या पत्रिका पढ़ने वाले नहीं होंगे तो हिन्दी की पत्रिकाएं नहीं चलेंगी, उन्हें विज्ञापन नहीं मिलेंगे।
 
Sumant Bhattacharya Pramod Joshi सर, आप हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं की पत्रकारिता में रहे..क्या आप कह सकते हैं कि हिंदी के तीन मुख्य अखबार हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स और जनसत्ता को अपने ग्रुप यानि हिंदूस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस में वही रुतवा हासिल है..इनके संपादक और संपादकीय टीम को वही सहूलियत या सम्मान मिलता है जो इनके अंग्रेजी प्रकाशनों को मिलता है। यह कोई निजी सवाल नहीं है, बल्कि मेरा आशय है कि इसे समझा जाए कि क्यों नहीं संचार माध्यमों में हिंदी के प्रति प्रोत्साहन मिलता है। बाजार भी एक समय बाद हिंदी से अपना रिश्ता तोड़ लेता है।
 
Sumant Bhattacharya Pramod Joshi सर, अमिताभ को अभिनय के वैविध्य के लिहाज से पसंद किया जाता है साथ ही अमिताभ की भाषाई दक्षता सिर्फ हिंदी ज्ञान तक सीमित नहीं है, उनकी भाषा में उच्चारण की शुद्धता, आरोह-अवरोह, विराम, पूर्णविराम या अल्प विराम की लयात्मकता के साथ भंगिमा का अद्भुत संगम लोकप्रिय बनाता है….जबकि यह बात आपको शत्रुघ्न सिन्हा या जीतेंद्र या धर्मेंद्र में नहीं दिखाई देगी..हां नसीर में जरूर है…यकीनन,,भाषा के अलावा भी बहुत कुछ है जो किसी को अभिनय के शीर्ष पर पहुंचाता है। और अमिताभ ने हिंदी के अलावा अंग्रेजी और कई भाऱतीय भाषाओं में भी खुद को स्थापित किया। अमिताभ का अंग्रेजी और बांग्ला ज्ञान भी विलक्षण है। वो नायक सिर्फ हिंदी पट्टी की वजह से नहीं,,,अभिनय के व्यापक कनवॉस की वजह से बना है..ऐसा मैं सोच पा रहा हूं।
 
Sanjaya Kumar Singh आप सुनेगें तो हंसेंगे। उनके दिमाग इतने चढ़े हुए हैं कि – एक ने मुझसे कहा कि आपने पूरा मैटर कैपिटल लेटर में टाइप कर दिया है। अब ये लोग विज्ञप्तियां बनवाते हैं और अपने अखबार और चैनल वाले जस का तस चेंप देते हैं।
 
Sumant Bhattacharya संजय भाई..मुझे जहां तक याद है…यह हाल तो 15 साल पहले भी था. जब आपके अनुवाद को जस का तस अखबार वाले चेंप देते थे…यह क्षरण तो काफी पहले ही शुरू हो चुका था….क्या मैं गलत हूं।
 
Sanjaya Kumar Singh अब फर्क सिर्फ यह आया है कि पहले मैं सही हिन्दी लिखता था अब उनकी फरमाइशी लिखता हूं – क्या करूं पापी पेट का सवाल है।
 
Sumant Bhattacharya Sanjaya Kumar Singh इस अनुभव को क्या विस्तार के साथ साझा करेंगे. बहुत जरूरी है कि बाजार की लगाम को हिंदी प्रेमी भी समझे..वो समझे की उनकी उदासीनता और हाहाकारी प्रवृति कैसे हिंदी का बेड़ा गर्क कर रही है……अनुरोध है आपसे जरूर आज की तारीख में कुछ लिखे आप..हिंदी को सच्ची श्रद्धांजलि देते हुए..ताकि हिंी की मरणासन्न आत्म को थोड़ा सुकून मिले।
 
Soban Singh Bisht बेशक कुछ लोग हिंदी से मुंह सिकोड़ें लेकिन प्रधानमन्त्री ने विदेशों में हिंदी को सम्मान देकर उन्हें करारा जवाब दिया है।
 
Upadhyaya Pratibha यह भिखमंगों की जुबान 14 सितम्बर की देन है. 14 सितम्बर 1949 से पहले भी हिन्दी थी, और आगे भी रहेगी. किन्तु राजभाषा का नाम देकर इस दिन से ही हिन्दी के दुश्मन पैदा कर दिए गए. 14 सितम्बर हिन्दी विरोध के प्रचार का दिन है. http://www.dw.de/किस-हिन्दी-को-याद-करें/a-17076129

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Sumant Bhattacharya Soban Singh Bisht भाई,,प्रधानमंत्री के अंग्रेजी ज्ञान पर कोई टिप्पणी करना चाहेंगे क्या…..और घर में जिस भाषा की कोई इज्जत नहीं वो बाहर चीख कर क्या करेगा…..मोदी साहब का स्वागत है कि यदि वो सत्ता की भाषा भी हिंदी बना दें…..
 
Sanjaya Kumar Singh सुमंत भाई, बहुत उलझा हुआ है यह मामला। तात्कालिक लाभ के लिए हर कोई समझौता कर रहा है, करने को तैयार है। मुझे याद है टाटा स्टील का एक खंडन जनसत्ता में छपने के लिए अंग्रेजी में आया था। चूंकि खबर मैंने छापी थी इसलिए जनसत्ता के रिवाज के अनुसार मेरे पास आया और कहा गया कि उसका अनुवाद कर दूं उसे चौपाल में छपना था। मैंने कहा कि यह छपने के लिए नहीं है, सूचना या जानकारी के लिए है। छपने के लिए होता तो हिन्दी में आता। और वह खंडन नहीं छपा। आज क्या किसी उपसंपादक की (किसी अखबार या चैनल में) हैसियत है कि टाटा स्टील का खंडन रुक जाए (पहले तो खिलाफ खबर ही छपे) । अब मालिकान रेंग रहे हैं, विज्ञापन के लिए, अपने बच्चों की नौकरी के लिए आदि आदि।
 
Sumant Bhattacharya Sanjaya Kumar Singh भाई..मैं समझता हूं पर आपको उकसाऊंगा नहीं तो बहुत सारे सच जनता के दरबार सामने आएंगे कैसे…..कोई उकसाने वाला भी तो चाहिए ना
 
Soban Singh Bisht सुमंत जी pm ने अपनी वेबसाईट पर सुझाव मांगे हैं…हिंदी को प्रोत्साहन वाला सुझाव मैं जरुर वहां दूंगा
 
Rachana Anand Ek aad nagman sunao .. tab to jaane tumhe hindi ati bhi hai ya nahin …..
 
Sanjaya Kumar Singh एक आपबीती लिखकर रखी है – कोई प्रकाशक ढूंढ़ रहा हूं। नहीं मिला तो फेसबुक है ना। उसका एक अंश देख रहा हूं छोटा करके शायद यहां लगा सकूं।
 
Sumant Bhattacharya Sanjaya Kumar Singh स्वागत और इंतजार है आपकी की आपबीती का….सादर

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