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सुख-दुख

भारतीय रेल के लिए मोदी राज है ‘नर्क काल’, ताजा अनुभव सुना रहे वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला

Shambhunath Nath : कहीं रेलवे को बेचने की तैयारी तो नहीं!… आज रेलवे की भयानक अराजकता और रेल कर्मचारियों की लापरवाही के साक्षात दर्शन हुए। सुबह मुझे कानपुर शताब्दी (12033) पकड़कर वापस गाजियाबाद आना था। कानपुर स्टेशन से यह गाड़ी सुबह छह बजे खुलती है। कानपुर में मैं वहां जहां रुका था, वह जूही कलाँ दो के विवेक विहार डब्लू-टू का इलाका स्टेशन से करीब सात किमी होगा। सुबह पहले तो बुकिंग के बावजूद ओला ने धोखा दे दिया। वह कैब आई ही नहीं और ड्राइवर ने फोन तक नहीं रिसीव किया। तब मेरे बहनोई स्वयं मुझे छोडऩे आए। इस तरह दो लोगों की नींद में खलल पड़ा।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p><img class=" size-full wp-image-19803" src="http://www.bhadas4media.com/wp-content/uploads/2017/02/bhadas4media.com_old1_images_13aug_00000000shambhuji.jpg" alt="" width="650" height="321" /></p> <p>Shambhunath Nath : कहीं रेलवे को बेचने की तैयारी तो नहीं!... आज रेलवे की भयानक अराजकता और रेल कर्मचारियों की लापरवाही के साक्षात दर्शन हुए। सुबह मुझे कानपुर शताब्दी (12033) पकड़कर वापस गाजियाबाद आना था। कानपुर स्टेशन से यह गाड़ी सुबह छह बजे खुलती है। कानपुर में मैं वहां जहां रुका था, वह जूही कलाँ दो के विवेक विहार डब्लू-टू का इलाका स्टेशन से करीब सात किमी होगा। सुबह पहले तो बुकिंग के बावजूद ओला ने धोखा दे दिया। वह कैब आई ही नहीं और ड्राइवर ने फोन तक नहीं रिसीव किया। तब मेरे बहनोई स्वयं मुझे छोडऩे आए। इस तरह दो लोगों की नींद में खलल पड़ा।</p>

Shambhunath Nath : कहीं रेलवे को बेचने की तैयारी तो नहीं!… आज रेलवे की भयानक अराजकता और रेल कर्मचारियों की लापरवाही के साक्षात दर्शन हुए। सुबह मुझे कानपुर शताब्दी (12033) पकड़कर वापस गाजियाबाद आना था। कानपुर स्टेशन से यह गाड़ी सुबह छह बजे खुलती है। कानपुर में मैं वहां जहां रुका था, वह जूही कलाँ दो के विवेक विहार डब्लू-टू का इलाका स्टेशन से करीब सात किमी होगा। सुबह पहले तो बुकिंग के बावजूद ओला ने धोखा दे दिया। वह कैब आई ही नहीं और ड्राइवर ने फोन तक नहीं रिसीव किया। तब मेरे बहनोई स्वयं मुझे छोडऩे आए। इस तरह दो लोगों की नींद में खलल पड़ा।

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हम घर से साढ़े पांच पर निकले थे और रास्ते भर यही सोचकर परेशान रहे कि कहीं टाटमिल चौराहे पर जाम न मिल जाए। खैर जब स्टेशन पहुंचे तो 5.48 हो रहा था। अपना सामान उठाए मैं भागता हुआ प्लेटफार्म में दाखिल हुआ तो गाड़ी का कहीं पता नहीं जबकि नियमत: उसे साढ़े पांच पर प्लेटफार्म पर लग जाना चाहिए। आखिर वहीं से यह ट्रेन चलती है। मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर आई ही छह बजे। पूरी भीड़ ट्रेन के दरवाजों पर टूट पड़ी। मगर दरवाजे अंदर से ही बंद थे। सब उनके खुलने का इंतजार करते रहे। अब एक आदमी था जिसने एक के बाद एक कोच के दरवाजे खोलने शुरू किए। तेरह कोचों वाली इस ट्रेन के दरवाजे खुलने में ही 15 मिनट लग गए। सारे लोग एकदम से भड़भड़ा कर चढऩे लगे। और ट्रेन पांच मिनट बाद चल दी। अब जो चढ़ाने आए थे वे तो ट्रेन के अंदर तथा जिनको चढऩा था वे बाहर। हंगामा हुआ ट्रेन फिर रुकी और चली।

हमारा कोच सी-7 था। गाड़ी में बैठते ही मच्छरों ने घेर लिया। वृहदाकार के मच्छर जो भनभनाते तो डिस्टर्ब करते और चुप रहते तो हाथों-पांवों में काट लेते। हमे जो इंडियन एक्सप्रेस अखबार दिया गया उसे पढऩे की बजाय हम मच्छरों का शिकार करते रहे। मगर मच्छरों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि ट्रेन में चढ़ा हर मनुष्य परेशान हो गया। औरतें, बच्चे सब तंग। तब मैने अपना रौद्र रूप दिखाया और टिकट चेक करने आए बाबू से कंप्लेंट बुक लाने को कहा। बुक आ तो गई मगर उसमें पहले से जो शिकायतें थीं उन पर ही कोई जवाब नहीं आया था। दूसरी सवारियां भी उखड़ पड़ीं तब एक सफाई कर्मी आया और फर्श पर पोछा लगा गया। फिर जो चाय आई लाई गई उसका पानी ठंडा था। फिर टीटी बाबू को बुलाकर शिकायत की गई तो वेटर ने बताया कि ब्वायलर काम नहीं कर रहा। एक तो ट्रेन वैसे भी डिले थी उस पर उसकी गति ऐसी जैसे बारात चल रही हो।

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कानपुर से इटावा आने में ही दो घंटे लग गए। उस शताब्दी से जिसकी स्पीड कम से कम 130 रखी जाती है। और कानपुर-इटावा की दूरी महज 133 किमी की है। फिर राम-राम करते ट्रेन चली तो जो नाश्ता आया वह भी ठंडा और ऊपर से मच्छरों की भरमार। टूंडला पार करने के बाद वह कर्मचारी आया जिसके कंधे पर ट्रेन की सफाई का भार था। उसने बताया कि मच्छर तो आएंगे ही ट्रेन रात को जंगल में खड़ी की जाती है। और हमारे पास हिट है नहीं। उसकी शैली से लग रहा था कि रेलवे सफाई के वास्ते जो सामान इसे मुहैया करवाता होगा उसे यह जरूर बाजार में बेच देता होगा। मजे से गुटखा खाते हुए और खूब फूला पेट लेकर वह जैसे आया था वैसे चला गया।

अलीगढ़ में स्टाप न होते हुए भी ट्रेन रोकी गई और तब कोच में एक अधिकारी आया और उसने हिट उसी कर्मचारी से मंगवाई और छिड़काव करवाया। उसके बाद ट्रेन चली मगर स्पीड वही साठ-सत्तर वाली। इस तरह जिस गाजियाबाद में हमें साढ़े दस पर पहुंच जाना था उस पर हम साढ़े बारह पर उतरे और एक बजे घर आए। समझ में नहीं आता कि रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने शताब्दी में तमाम तरह के सुविधा शुल्क लगाकर कानपुर तक का किराया लगभग 11 सौ रुपये कर दिया है मगर न तो कोई सुविधा बढ़ाई न खानपान की गुणवत्ता ही सुधारी। जबकि दस साल के मनमोहन राज और उसके पहले की सरकारों के वक्त भी शताब्दी जाड़ों के कोहरे के दौरान को छोड़ दिया जाए तो कभी लेट नहीं होती थी।

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खाने का हाल यह है कि शताब्दी खाने और नाश्ते के नाम पर दो सौ रुपये और चार सौ रुपये वसूलती है पर नाश्ता ऐसा था कि उसे खाना दूभर। दो स्लाइस और एक डिब्बी मक्खन। न नमक न कालीमिर्च पाउडर। दो ही विकल्प थे या तो दो पीस कटलेट अथवा आमलेट। दोनों ही बेस्वाद और एकरस। पिछले 28 वर्षों से यही परोसते आ रहे हैं। प्रभु ने जब पैसे बढ़ाए थे तो कहा था कि खाने की क्वालिटी सुधरेगी। मगर क्वालिटी तो और गिरी। मजे की बात कि कानपुर और लखनऊ शताब्दी में इतनी भीड़ होती है कि कभी भी दो दिन पहले टिकट नहीं मिल पाती। पर इसका फायदा रेलवे उठाता है कि जो कुछ दे दो खा ही लेंगे। क्या ट्रेन को इस तरह लेट करने तथा साफ-सफाई न करने के पीछे रेलवे को निजी हाथों में देने की तैयारी तो नहीं चल रही है।

(जो कंप्लेंट मैने की उसका नंबर और पावती मेरे पास है। सोचता हूं कि दो दिन बाद रेलवे से पूछा जाए कि मेरी शिकायत पर हुआ क्या।)

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अमर उजाला समेत कई अखबारों में संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं….

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Vishwanath Dwivedi रेलवे का यह सामान्य अनुभव है. पता नहीं कब सुधरेगे हम लोग. मच्छर ही नहीं चूहे भी मिलते है शतब्दी में.
Rahul Bhardwaj ये भारत में विमान यात्रा को बढ़ावा देने का परोक्ष तरीका है
gazab kumar ये तो है शताब्दी का हाल, अब ज़रा सोचिए नार्मल ट्रैन का क्या हाल रहता होगा, और नीति निर्माता लोग अपने मुद्दे पर जनता से बहस करवाते हैं। व्यवस्था नहीं सुधरेगी फिर वही होगा कि प्राइवेट को सौंप दिया जाये…
Vir Vinod Chhabra शुक्र है कि आप गोमती एक्सप्रेस में नहीं बैठे। वैसे आप सुषमा जी को भी ट्वीट कर दें। विदेश मंत्री हैं तो क्या हुआ? उनका हृदय विशाल है।
Kaushal Madan सर सभी जगह ये ही हाल है कब सुधरें भगवान जाने
Vinay Oswal सब को साथ लेने के बाद विकास होगा। अभी तो शिकायतें इकठ्ठी की जा रही हैं। फिर विचार करेंगे किस एजेंसी से निस्तारण कराएं। उसके खर्चे भी जोड़े जाएंगे टिकट में। ऐसे में उन एजेंसियों का विकास होगा। आपको गलत फहमी तो नहीं कि किसका विकास किये जाने का लक्ष्य है?
Nitish Shukla आपने चिल्लाकर ‘जय भारत माता’ नहीं बोला, बोलते ही यकीन मानिए सारी तकलीफ कम लगने लगती
Prabhat Mishra 13 मार्च को लखनऊ शताब्दी से कानपुर से आया था, जैसा खराब खाना दिया गया उसे देखकर लग रहा कि रेलवे को डाक्टर भी रेल में रखना पड़ेगा इलाज के लिए.
Rakesh Pandey एक सवाल? कहीं रेलवे की बेचने की तैयारी तो नहीं … एक जवाब! देश के हालात रेलवे जैसे ही हैं।
Om Shanker Porwal मोदीराज में सबसे बदतर व्यवस्था रेलवे की ही है, सारी ट्रेने लेट, गति आराममय, खड़ी तो खड़ी, खाना बदतर, तमाम शिकायतो के बाद भी इसका कोई पुरसाहाल नहीं है।
Akmal Faruqi आपकी एक बात से इत्तेफ़क नही रखता की 12033 अलीगढ में स्टोपेज नहीं है Shambhunath Nath ji 9.05 का शेडयूलड आने का समय है
Shambhunath Nath बहुत से लोग मेरी बहुत-सी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते। पर मैं तो वही लिखूंगा जो कानपुर में रेलवे ने एनाउंस किया। कानपुर से ट्रेन खुलते ही एनाउंस होने लगा कि यह ट्रेन यहां से चलकर इटावा और गाजियाबाद रुकेगी। अब अलीगढ़ वालों ने भी पव्वा लगवा लिया होगा। सो इसे रुकवाने लगे। आखिर भाजपा के आदि पुरुष कल्याण सिंह का गृह जिला जो है। पहले इटावा नहीं रुकती थी तो मुलायम राज में रुकने लगी थी।
Akmal Faruqi बहुत से लोग मेरी बहुत-सी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते। आपकी इस बात से इत्तेफाक रखता हूँ
Chitaranjannath Tiwaric अच्छे दिन हैं साहब…. थोड़ा विधर्मी, कुलच्छनी ममता बैनर्जी को भी याद कर लिया जाय !!!
Nadim S. Akhter Shambhunath Nath जी, देख पा रहा हूं कि आपको पोस्ट लिखे करीब 35 मिनट हो गए. इस पर लाइक और कमेंट की संख्या को देखते हुए आपको भी अंदाजा लग रहा होगा कि लोग ट्रेन को लेकर कितने जागरूक हैं. जाने दीजिए. सबको आदत हो गई है. कितनों से लड़िएगा. हां, रेलवे से सवाल-जवाब जारी रहे तो बेहतर. अपडेट जरूर दीजिएगा. इंतजार रहेगा.
Anil Maheshwari This catering system in Indian Railways has become a big fraud. Whether you want or not, you have to pay it. It was introduced by Scindia as Railway Minister. The time has come, it should be abandoned. Anyone willing to pay can purchase items from the pantry car as is the case with the trains in the USA. Shambhunath Nath
Shambhunath Nath पेंट्री तो ओवरनाइट जर्नी वाली किसी भी ट्रेन में नहीं लगती। हम या तो स्वयं बाजार से खरीद कर चलें अथवा ट्रेन कहां से हमारे लिए खाने की व्यवस्था करेगा। इटावा और अलीगढ़ में तो सामान्य रोटी-दाल भी ढंग का मिल जाए तो बहुत है। कानपुर से दिल्ली की दूरी कुल 444 किमी की है और शताब्दी इसे पांच घंटे में पूरी करती है। इस बीच भोजन नहीं तो भाव तो मुहैया करवाएं।
Anil Maheshwari Youn are correct. I was talking about this catering business in all the trains, in particular Rajdhani and Shatabdi trains.
Shambhunath Nath ऐसा भी होगा तो रेलवे किसी एक कंपनी को ठेका देगा और अभी भी रेलवे शताब्दी में किसी को ठेका ही देती है। खाना पैक कर उसमें चढ़ा लिया जाता है। चूंकि शताब्दी अधिक से अधिक सात घंटे की यात्रा करती है इसलिए इस दूरी के लिए पेंट्री रखना मुमकिन नहीं। शताब्दी का बटर-चिकेन देख लें तो नानवेज खाना ही छोड़ देंगे। और वेज में वे अरहर की बजाय खेसारी की वह दाल परोसते हैं जिस पर 1975 में बैन लगा दिया गया था।
Anil Maheshwari That is why the choice should be left to the passenger. If one does not like tyhe Railway food, one can bring food from his house or restaurant, as we used to do in the past.
Giriraj Kishore रेलवेज़ क्या हर जन माध्यम को विशिष्ट में बदलने की योजना है। मैंने जबसे रेल में सफ़र करना आरंभ किया रेलवे में इतनी अव्यवस्था पहले कभी नहीं देखी।
Vijay Balyan विमान यात्रा को बढ़ावा देने का परोक्ष तरीका……. अच्छे दिन हैं
राजेश कुमार यादव रेल और रेलकर्मी आपसे कष्ट के लिए क्षमा चाहते हैं, साथ ही रेलवे मे खाली पदों को भरने के लिए आपसे हमारा साथ देने की अपील भी करते हैं ।
Rudresh Kumar मोदी सरकार ने सिर्फ लोगों की जेबे खाली करने के तरीके ढूंढे हैं। सुविधा देने के नहीं।
Anil Kumar Yadav प्राइवेट करने में ही भलाई है। टीटी और जो तोंद वाले भाई साहब गुटका खा कर मज़ा मार रहे थे, उनको भी पता चल जायेगा।
Sanjaya Kumar Singh रेल मंत्री पानी और चखना भिजवाने से ऊपर की शिकायतों का जवाब भी नहीं देते। और फेसबुक वालों को बिल्कुल भाव नहीं देते। ट्वीटर पर शिकायत कीजिए तब शायद सुनें भी।
Shambhunath Nath मैं फेसबुक के जरिये रेलवे मंत्री से जवाब नहीं मांग रहा बल्कि जनता को सचेत कर रहा हूं ताकि वे सब जरा-सी भी असुविधा होते ही शिकायत पुस्तिका में शिकायत दर्ज करवाएं। मेरी लिखित शिकायत को सक्षम अधिकारी ने बाकायदा दस्तखत कर पावती दी है। अलीगढ़ में जब ट्रेन रुकवाई गई तब एक अधिकारी आया और उसने बाकायदा हमारी शिकायत और सीट का भी फोटो लिया। अब कुछ न कुछ तो होकर रहेगा। मैं तो बोड़ चला जाऊँगा शिकायत करने।
Sanjaya Kumar Singh सही बात है। सभी यात्रियों को अपने अधिकारों के प्रति ऐसे ही सचेत रहना चाहिए।
Umesh Kr कही अब आपको देशविरोधी ना घोषित कर दिया जाए
Shambhunath Nath अब मैं आप सब लोगों की तरह इतना कायर तो नहीं। अपन सिर्फ फेसबुक बहादुर ही नहीं हैं कोर्ट तक जाएंगे। ऐसे नहीं यहां हठी और पागलों के बीच डटे हैं।
Rao Deepak पहले सिस्टम को ख़राब करो, फिर बीमार बता के बेच दो।
Vikas Patel भगवान भरोसे रेलवे विभाग…. और सुनने मे आ रहा है कि भोपाल का हबीबगंज स्टेशन का निजीकरण कर बंसल कंम्पनी के दिया जा रहा हैl संम्पूर्ण भारत के यही हाल…
Govind Prasad Bahuguna आपने जिस तरह हालात बयान किये उसको पढकर लगा जैसे मैं खुद सफर ही नहीं बल्कि suffer कर रहा हूँ। मेरा सुझाव है इस लेख को बिना सम्पादित किये रेल मंत्री और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को जरूर भेज दीजिए। आप विख्यात पत्रकार हैं सब आपको जानते हैं कार्यवाही जरूर होगी। नहीं तो फिर रवीशकुमार के साथ इस इश्यू को हाइलाइट करिये ।
Suresh Sharma कार्रवाई होना चाहिए वरना लापरवाह कमिंयो को सबक नही मिलेगा ।
Nikhil Katiyar बुलेट train की तैयारी मे सरकार बिजी है असुविधा के लिये खेद है
Nimish Sharma Sir aapki is shikayat ka me samarthan karta hu,jab shatabdi ka ye hal he to sir mail express aur passenger trains to ram bharose hain
Sujata Choudhary उसके बाद जब मोबाईल पर आवाज आती है रेलवे से कोई शिकायत हो तो कृपया इस नम्बर पर बताएं ,असुविधा के लिए खेद है,।उस समय क्या इच्छा होती है बता नहीं सकती। जब अडानी को समुद्र दिया जा सकता है तो रेलवे क्या चीज है।
Smith Agrawal Delhi bhopal satabdi ka bhi bura haal hai. मैं तो कंप्लेंट करके थक गया, जवाब वही एक पुराना घिसा पिटा सा है। खैर अब तो सरकार देशभक्तो की है तो प्रश्न उठाने का तो सवाल ही नहीं उठता। वैसे भी 2020 तक वेटिंग ख़त्म करनी ही है।
Prakash Kumar Jha हम रेलवे में काम करने वाले कभी शताब्दी राजधानी नहीं चढ़ पाते…. तो उसका एक्सपीरियंस नहीं है, पर खाना सच में खराब मिलता है, उसका कारण है ठेकेदारी सिस्टम में गला काट प्रतियोगिता… जिसके कारण बहुत ऊँचे दाम पर पैंट्री लिया जाता है, ठेकेदार उसका पैसा वसूलने के लिए खराब खाना देते हैं, और ज्यादा पैसे लेते हैं, पूर्णतः निजीकरण जल्द ही होगा, उस समय स्थिति और खराब ही होगा… इतना तय है…
Pratik Bajpai बहुत बुरा हाल है रेलवे का ,विपक्षी रेलवे जैसे मुद्दे उठाने के बजाय ऊना ,नजीब, जैसे फालतू मुद्दे पर समय बर्बाद कर रहे है ।मुझे भी कुछ ऐसे ही एक्सपेरियन्स हुए है
Sudhendu Patel इसे कहते हैं मोदिजी का गुड गवेरनेंस ! प्रभु तो प्यादा ही हैं न गुरू.
Kalyan Kumar वास्तव में रेलवे का जितना बुरा हाल सुरेश प्रभु के कार्यकाल में है, उतना मैंने पहले कभी नहीं देखा…सफाई नहीं, खाना ठीक नहीं, सफर का समय लंबा और पता नहीं और कितनी कमियां समा गई हैं…शताब्दी-राजधानी से बेहतर तो लोकल ट्रेन लगने लगी है…कम से कम खिड़की खोलकर खुली हवा तो ले सकते हैं….फिर अद्भुत भारत के दर्शन भी हो जाते हैं…
Shoeib Khan टिकट लेट बुक कराओ तो चार्ज बढ़ने का प्रावधान लेकिन ट्रैन लेट हो तो कोई हर्जाना नही। मज़ेदार है न ?
Pawan Mishra You got IE in Shatabdi, good
Pankaj Singh प्रभु (सुरेश) को याद कीजिए….सब अच्छा होगा।
gazab kumar रेलवे की व्यवस्था पहले से अगर कुछ बेहतर हुई है तो उसका लाभ, गाजीपुर बनारस और पूर्वांचल के विभ्भिन ज़िलों को ही मिला है, जिसका श्रेय केवल मनोज सिन्हा जी को जाता है, सुरेश प्रभु जी से बेहतर इस विभाग को सुषमा जी देख सकतीं हैं। जब बहुमत में सुरेश प्रभु जी का ये हाल है, तो समर्थन दिए होते तब पता नहीं क्या होता।
Abhay Singhai कल मैं जलगाँव से सागर कामायनी एक्सप्रेस से आया था। ए सी बी1 कोच के टॉयलेट में पानी नहीं था अंदर पोस्टर लगे थे कि सफाई के लिये बाहर दरवाजे पर अंकित मोबाइल पर सम्पर्क करें ,परन्तु कहीं कोई नम्बर नहीं लिखा था। टॉयलेट गन्दे पड़े थे।सब प्रभु की माया है।
Raj Kumar सबसे बुरा ये है कि रेलवे अब आधे से एक घंटे की देरी को देरी मानता ही नहीं है। आपकी अगर छः बजे की ट्रेन है और ६:२० या ६:४० तक ट्रेन नहीं आयी, तब भी रेलवे उसे सही टाइम ही मानता है। और नोटिस बोर्ड पर लेट नहीं दिखता। अब ६:३० पे अनाउन्स होता है की ट्रेन समय पे हैं और ६:०० बजे प्लेटफ़ार्म पे आएगी। जबकि आपकी घड़ी में ६:३० हो रहा है। स्टेशन मास्टर और पूछ ताछ केन्द्र के लोग गुंडागर्दी करते हैं। सवारी को लगता है कि ट्रेन किसी और प्लेटफ़ार्म पर खड़ी है, इसलिए लेट नहीं दिखा रहा है। इससे अफ़रातफ़री का माहोल भी बन जाता है।
Rajesh Kumar बिल्कुल सही कहा सर जी, सफ़ाई व्यवस्था पुरी ठेकेदार के पास है,हॉस्पिटल से मरीज़ प्राइवेट हॉस्पिटल में भेजे जा रहें हैं,दवाइयाँ सीधे उपलब्ध होने की जगह स्थानीय क्रय से आ रहीं हैं, कभी-2 मिलती हैं कभी नहीं भी, कर्मचारी संविदा पर रखे जा रहें हैं, रेल कारखाने जिस चीज़ को ख़ुद बनाते थे और फ़ायदे में रहते थे वही सामान बाहर से ख़रीदा जा रहा है और अब घाटा बढ़ता जा रहा है, ठेकेदार के लोगों को न तो चार्जशीट से डर है न नौकरी जाने का…पद खाली पड़े हैं…अवैध वेंडर और दलालों की पौ बारह है, सारे निर्माण जो रेलवे ख़ुद कराती थी सब ठेके पर
धीरेन्द्र अस्थाना It is same situation in 12003 Lko to Delhi. I never expected such treat by IR.
Somnath Bhattacharya हम सबको भी यह सहना पड़ता है। कहते हैं पर कोई सुनता नहीं। आप बड़े और सम्मानित पत्रकार है शायद बात पहुँच जाये और प्रभु की कृपा हो ।
Pradeep Singh रेलवे की यह दुर्दशा बताती है कि यह कर्मचारियों की लापरवाही है। अपने देश में अच्छे कर्मचारी का चयन नहीँ किया जाता है। सामाजिक न्याय के नाम पर नौकरी दी जाती है। सामाजिक न्याय का साथ दीजिए।
Yogendra Sharma इसके लिए सीधे ठेकेदार और अधिकारी जिम्मेदार हैं। समय-समय पर इसकी न जांच होती है न निगरानी होती है।
Deepak Sootha यात्रियों के सब्र का इम्तिहान तो रोज़ होता है। कोई सुनने वाला नहीं। आपका प्रभु आराधन शायद स्वीकार हो जाय।फिर भी एक ही दिन ( inspection day) का सुधार नज़र आ सकता है। जहाँ तक रेल के बिकने का सवाल है, वह आज नहीं तो कल हक़ीक़त बनना तय है। भोपाल के हबीब गंज रेल स्टेशन से शुरुआत हो चुकी है।

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