गोरखपुर ऑक्सीजन कांड : बच्चों की मौत के मामले में डॉक्टर बरी… गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज में लगभग दो साल पहले कथित रूप से ऑक्सीजन की कमी के कारण बड़ी संख्या में जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के मरीज बच्चों की मौत हो गई थी।बच्चों की मौत के इस मामले में आरोपी डॉक्टर कफील अहमद खान को क्लीन चिट मिल गई है।मामले के जांच अधिकारी और स्टांप एवं निबंधन विभाग के प्रमुख सचिव हिमांशु कुमार की रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर कफील के खिलाफ ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं पाया गया जो चिकित्सा में लापरवाही को साबित करता हो। डॉक्टर कफील इस मामले में लगभग सात महीने तक जेल में रहे।बाद में उन्हें अप्रैल 2018 में जमानत पर रिहा किया गया था।लेकिन डा.कफील अहमद पर लगे चार में से दो आरोप सही पाए गए हैं। दो आरोपों में उन्हें दोषी नहीं पाया गया है। उन्हें गोरखपुर मेडिकल कालेज में प्रवक्ता और राजकीय चिकित्सक होते हुए प्राइवेट प्रैक्टिस करने का दोषी पाया गया है। शासन इन दोनों मामलों में जल्द ही फैसला लेगा। वहीं अनुशासनहीनता और नियमों के उल्लंघन से संबंधित तीन आरोपों के साथ ही विभागीय कार्यवाही अभी चल रही है। शासन ने डा. कफील अहमद को दोषी बताए जाने के साथ ही स्पष्ट किया है कि अभी भी उनके खिलाफ चल रही विभागीय कार्यवाही में अंतिम फैसला होना बाकी है।
रिपोर्ट के मुताबिक आरोप में डॉक्टर कफील को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 100 बेड के एईएस वार्ड का नोडल प्रभारी बताया गया था जबकि आरटीआई से प्राप्त अभिलेख के अनुसार उस वक्त बाल रोग विभाग के सह आचार्य डॉक्टर भूपेंद्र शर्मा, उस वार्ड के प्रभारी थे।रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर कफील पर घटना के बारे में उच्चाधिकारियों को न बताने के आरोप भी गलत हैं।कॉल डिटेल से पता चलता है कि उन्होंने विभिन्न अधिकारियों से इस बारे में बात की थी और अपने द्वारा उपलब्ध कराए गए ऑक्सीजन के सात सिलिंडर का दस्तावेजी सबूत भी पेश किया था।
जांच रिपोर्ट में डॉक्टर कफील का हवाला देते हुए कहा गया है कि उन्होंने घटना के वक्त छुट्टी पर होने के बावजूद हालात को संभालने के लिए संबंधित अधिकारियों से संपर्क करने की भरसक कोशिश की थी। इनमें मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉक्टर राजीव मिश्रा, उनकी पत्नी डॉक्टर पूर्णिमा शुक्ला और वरिष्ठ डॉक्टर सतीश चौबे भी शामिल हैं।कफील ने मेडिकल कॉलेज में चल रही स्थिति को सुधारने के लिए 10/11 अगस्त 2017 से 12 अगस्त के बीच कुल 26 लोगों को कॉल की थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा कफील के खिलाफ पेश किए गए सबूत कमजोर और बेतुके हैं और ऐसे में कफील की दलीलें और जवाब स्वीकार करने योग्य हैं।
गौरतलब है कि 10/11 अगस्त की रात को गोरखपुर स्थित बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में कथित रूप से करीब 39 बच्चों की मौत हुई थी।इसके पीछे आक्सीजन की कमी को मुख्य कारण माना गया था । हालांकि सरकार ने इस आरोप को गलत बताया था और इस मामले में डॉक्टर कफील, मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉक्टर राजीव मिश्रा तथा उनकी पत्नी डॉक्टर पूर्णिमा शुक्ला समेत नौ आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया गया था।
कफील अहमद पर आरोप लगा था कि मेडिकल कालेज में प्रवक्ता के पद पर नियुक्त होने के बाद भी उन्होंने प्राइवेट प्रैक्टिस जारी रखी और चिकित्सीय लापरवाही बरती। जांच अधिकारी ने इस आरोप पर लिखा है कि डा. कफील अहमद नियमों और शर्तों का उल्लंघन कर मेडिस्प्रिंग हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर रुस्तमपुर गोरखपुर में प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे थे। डा. कफील अहमद इस आरोप पर समुचित जवाब नहीं दे सके। इस प्रकार उन्हें आरोप में दोषी पाया गया है।दूसरी ओर डा. अहमद पर नियम विरुद्ध निजी नर्सिंग होम का संचालन करने और मेडिकल कालेज में राजकीय चिकित्सक के रूप में कार्य करते हुए प्राइवेट प्रैक्टिस में संलिप्त रहने का आरोप है। उन्होंने सेवा शर्तों का उल्लंघन कर प्राइवेट प्रैक्टिस की। जांच अधिकारी ने लिखा है कि इस आरोप पर भी डा. कफील ने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया।
जांच अधिकारी ने लिखा है कि मेडिस्प्रिंग हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के संबंध में प्रस्तुत पंजीकरण प्रमाण पत्र 11 नवंबर 2014 से 30 अप्रैल 2015 तक में डा. कफील का नाम चिकित्सक के रूप में दर्ज है। डा. कफील 23 मई 2013 से सीनियर रेजीडेंट के रूप में एनआरएचएम की सेवा शर्तों के अधीन सेवायोजित थे। 24 अप्रैल 2017 को सीएमओ गोरखपुर को भेजे गए नवीनीकरण के शपथपत्र में डा. कफील द्वारा सूचित किया गया था कि मेडिस्प्रिंग हासिप्टल से अब उनका कोई सरोकार नहीं है। इससे यह इंगित होता है कि डा. कफील मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग में प्रवक्ता के पद पर योगदान करते हुए आठ अगस्त 2016 के बाद 24 अप्रैल 2017 तक मेडिस्प्रिंग हास्पिटल एंड रिसर्च सेंचर से जुड़े हुए थे। यह आरोप सिद्ध पाए जाने पर वह दोषी पाए गए हैं।
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.