Sanjaya Kumar Singh : मुझे लग रहा है कि अरविन्द केजरीवाल या आम आदमी पार्टी से वही लोग निराश हो रहे हैं जो बहुत ज्यादा उम्मीद पाले हुए थे। जब अन्ना हजारे के साफ मना करने के बावजूद केजरीवाल ने राजनैतिक पार्टी बनाई – तभी साफ हो गया था कि अरविन्द केजरीवाल में वही कीड़े हैं जो नरेन्द्र मोदी या सोनिया गांधी में। पैकिंग अलग है। अन्ना के आंदोलन की सफलता और अपनी नई बनी छवि को कैश कराने की जल्दबाजी में अरविन्द इस्तीफा देकर बनारस गए और मुंह की खाकर लौटे। इस तरह अरविन्द ने बता दिया कि ना उन्हें राजनीतिक समझ है और ना धूर्तता (तभी कभी कोई स्टिंग कर ले रहा है और कभी कोई और)।
लेकिन दिल्ली की जनता के पास कोई विकल्प नहीं था, आजमाने की चाहत और जोखिम उठाना संभव था इसलिए दिल्ली में मौका मिला। यह अरविन्द केजरीवाल के पक्ष में कम भाजपा के खिलाफ ज्यादा है, (आप नहीं मानने के लिए स्वतंत्र हैं)। अब जो रहा है उसमें भी कुछ खास नहीं है बशर्ते अरविन्द को राजनेता और आम आदमी पार्टी को एक राजनीतिक दल मान लिया जाए। पांच साल के लिए सत्ता मिली है। इस बार अरविन्द जल्दबाजी नहीं करेंगे और अभी से उनके या उनकी पार्टी के बारे में अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी। बात सिर्फ इतनी सी है कि बहुत ज्यादा उम्मीद करने वालों को झटका लगा है जिसे लोग पचा नहीं पा रहे हैं। वैसे ही जैसे बहुत लोग 15 लाख मिल जाते तो पचा नहीं पाते। वहां सबको पता था कि नहीं मिलना है इसलिए कोई समस्या नहीं है – यहां उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं। टूटने में समय लगेगा।
Pawel Iskra Parashar : If at all Aam Aadmi party breaks into Kejriwal faction and Prashant / Yogendra faction, all the right wing lumpen elements and brokers of traders, contractors, small and big capitalists will go into Kejriwal camp and all the pseudo-left vagabond intellectuals, the degenerate absconders of communist movements, ultimate opportunist and careerist elements of parliamentary revisionist left , imposter NGO brand brokers of civil society, and Lohiya brand intellectual clowns shall take refuge in Prashant / Yogendra camp. Anyway, both the camps will continue to exhibit the stink of decayed bourgeois political sphere and continue as either fascist or liberal agents of the same moribund oppressive capitalist regime.
Rajeev Dhyani : सड़क पर लड़ाई लड़ते-लड़ते खुद सड़कछाप हो गए मुख्यमंत्री के थर्ड क्लास बोल सुनिए – ये साले….. कमीने ….. इन कमीनों ने….. इन सालों ने ….. इन्होने कमीन पंती की. ….कहीं और होते तो पीछे लात मारकर निकाल देते सालों को…. अब ज़रा ये भी जान लीजिये कि ये शब्द किनके लिए इस्तेमाल किये गए हैं.
1. जय प्रकाश और लोहिया के शिष्य, घुटे हुए समाजवादी, बी एच यू के पूर्व अध्यक्ष, शिकागो यूनिवर्सिटी से पी एच डी और जे एन यू के प्रोफेसर रहे डॉ. आनंद कुमार, उम्र 65 साल
2. समाजवादी जन परिषद के पुराने कार्यकर्ता, विख्यात सेफोलोजिस्ट, राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और विचारक डॉ. योगेन्द्र यादव
3. पंचायती राज से जुड़े मुद्दों पर गहरी पकड़ रखने वाले दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अजित झा
4. देश भर के आन्दोलनकारियों के मुक़दमे मुफ्त लड़ने वाले, कोलगेट, 2 जी, 3 जी समेत तमाम घोटालों का पर्दाफ़ाश करके देश को अरबों- खरबों का फायदा कराने वाले प्रशांत भूषण
shame, shame, shame केजरीवाल.
कुछ दोस्त लोग यह सवाल कर रहे हैं कि केजरीवाल ने क्या ख़ास बात कह दी. इन शब्दों का इस्तेमाल तो हम लोग भी आपस की बातचीत में करते ही रहते हैं. मेरा पहला जवाब- अरविन्द केजरीवाल कोई गली में पतंग उड़ाते हुए सत्रह साल के लड़के नहीं हैं, बल्कि मुख्यमंत्री हैं दिल्ली जैसे एक अहम प्रदेश के. वह वहाँ के शराबी, गुंडों, लफंगों, जाहिलों के साथ-साथ एक भारत रत्न, सैकड़ों पद्म पुरुस्कारों की रिहाइश वाली दिल्ली के मुख्यमंत्री भी हैं. दिल्ली धोखाधड़ी, झूठ- फरेब, जालसाजी करने और नकली माल बनाने वालों के साथ ही तमाम इज्ज़त से रहने – खाने- कमाने वाले शरीफ लोगों का शहर भी है. अगर इस प्रदेश के मुखिया का ही अपनी ज़ुबान और मिजाज़ पर काबू नहीं तो फिर अल्लाह ही मालिक है दिल्ली का. दूसरी बात ये है कि इन लोगों से हमारी तवक्को कुछ ज्यादा ही है.
इनको ऐसा करते देख हमारा एक सपना टूटता है. तीसरी और ज्यादा अहम बात – सवाल ये कतई नहीं कि क्या कहा. सवाल ये हैं कि किसके लिए कहा. शायद फेसबुक के मेरे मित्र जानते नहीं कि जब आनंद कुमार कोई टिपिकल मास्टर टाइप के व्यक्ति नहीं हैं. बी एच यू जैसे राजनीति के गढ़ में छात्र संघ के दमदारअध्यक्ष रहे हैं. वैकल्पिक समाजवादी राजनीति के खलीफाओं में से रहे हैं. जब अरविन्द केजरीवाल इंटर में फिजिक्स की ट्यूशन ले रहे होंगे, उससे पहले आनंद कुमार शिकागो यूनिवर्सिटी से पी एच डी कर आये थे. और रही बात प्रशांत भूषण की, तो मुख्यमंत्री हो जाएँ या कद्दू हो जाएँ, अभी केजरीवाल की इतनी औकात नहीं हुई है कि वह प्रशांत भूषण जैसों के लिए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करें. हमारे लखनऊ की इश्टाइल में – ज्यादा दिमाग न खराब हों. समझे?
जब अरविन्द केजरीवाल पोतड़े भिगोते रहे होंगे, उससे पहले दसियों बार जेल हो आये थे आनंद कुमार और बी एच यू जैसे राजनीति के गढ़ में छात्र संघ के अध्यक्ष भी हो चुके थे. जब माननीय मुख्यमंत्री जी आई आई टी एंट्रेंस के लिए फिजिक्स की ट्यूशन ले रहे होंगे, उससे पहले आनंद कुमार शिकागो यूनिवर्सिटी से पी एच डी कर आये थे. तुक्के में तैयार अन्ना के नहीं लड़कर, घिसकर और तपकर तैयार लोहिया और जी पी के चेले रहे हैं आनंद कुमार. और रही बात प्रशांत भूषण की, तो मुख्यमंत्री हो जाएँ या कद्दू हो जाएँ, अभी केजरीवाल की इतनी औकात नहीं हुई है कि वह प्रशांत भूषण जैसों के लिए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करें. चार दिन गइले, सुग्गा मोर बन के अइले( दिमाग चढ़ जाने वाले लोगों के लिए एक भोजपुरी कहावत) . हमारे लखनऊ की इश्टाइल में – ज्यादा दिमाग न खराब हों. समझे?
Abhishek Srivastava : आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार का भविष्य चाहे जो हो, लेकिन इसके मौजूदा संकट ने सामाजिक स्तर पर तीन बातें तय कर दी हैं: 1. वक्त की लंबी दौड़ में किसी के ईमानदार होने और उसका दावा करने के बीच भारी फांक आ जाएगी। मतलब, हर कोई हर किसी की नज़र में अब बेईमान होगा क्योंकि अगर वह खुद को ईमानदार बताएगा तो लोग हंसेंगे और नहीं बताएगा तो स्वत: बेईमान साबित हो जाएगा। 2. भ्रष्टाचार के खिलाफ अब इस देश में सामाजिक आंदोलन दूर की कौड़ी है। 3. ‘आप’ का प्रयोग बदनाम हो जाने के बाद सत्ता हमें बताएगी कि भ्रष्टाचार से निपटने का एक ही तरीका है, इसे कानूनी बना दो। तात्कालिक मतलब ये, कि लॉबींग बिल 2013 के पास होने का रास्ता खुल चुका है।
प्रो. आनंद कुमार पुण्य प्रसून से कह रहे थे कि हम लोग तो प्रायश्चित्त करने आम आदमी पार्टी में आए थे। किस बात का प्रायश्चित्त भाई? समाजवाद, किशन पटनायक, जेपी, लोहिया से विश्वासघात का प्रायश्चित्त या कुछ और? अगर अपनी विचारधारा से विश्वासघात नहीं किए, अब भी सच्चे समाजवादी हैं, तो वहीं रहना था। विचारधारा निरपेक्ष संगठन के साथ आकर तो वैचारिक प्रायश्चित्त मुमकिन नहीं।
या तो आप लोगों का समाजवाद पर से भरोसा उठ गया था। या फिर समाजवादी संगठन दोबारा खड़ा करने मे आपका भरोसा नहीं रहा था। आप शायद बरसों से किसी नए अवसर की ताक में थे जहां अपनी विचारधारा से ”घोषित विश्वासघात” किए बगैर मुख्यधारा की राजनीति में वापसी हो सके और आंदोलनकारी की छवि भी धूमिल ना होने पाए। आम आदमी पार्टी ने सबको सिंगल विंडो क्लीयरेंस दे दिया क्योंकि वह घोषित तौर पर विचारधारा-निरपेक्ष थी। आपको लगा कि अच्छा है, दूसरे की जमीन को यथासंभव यथाशीघ्र जोत लो। आप भूल गए कि आए हैं तो समाजवाद की गठरी को छोड़कर आना था। गफ़लत में ”जमीन जोतने वाले की” का ज्ञान देने लगे। अब फंस गए हैं तो मुद्दे गिनवा रहे हैं। प्रो. आनंद कुमार, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कमल चेनॉय, अजित झा आदि को अब ईमानदारी से मान लेना चाहिए कि आम आदमी पार्टी में आना ही समाजवाद के साथ असल विश्वासघात था, बल्कि खाली बैठे रहना कहीं बेहतर था। असली प्रायश्चित्त का मौका तो अब है।
Awadhesh Kumar : आप एक पार्टी है या स्टिंग महापुरूषों का समूह। सब एक दूसरे का स्टिंग करके रखे हुये हैं। मौका आया कि टेप बजना शुरू। वाह रे क्रांतिकारी पार्टी। आम आदमी पार्टी का पाखंड सम्पूर्ण गंदे व घिनौने चेहरे के साथ फिर सामने आया है। बारी अब जनता की है। आप के विरुद्ध व्यापक विरोध होना चाहिए
Teena Sharma : आशुतोष ने एबीपी न्यूज़ पर सरेआम कहा कि हर आदमी गाली देता है,मेरे पिता जी ने मुझे बहुत गालिया दी है, और हद तो तब हो गयी जब उन्होने जर्नलिस्ट, जो उनसे ये बातचीत कर रहा था, को टोका कि मैंने आपको ऑफ कैमरा गाली देते सुना है, आदमी गाली देते है, ये आम बात है, लेकिन पब्लिकली नहीं देते, ये दूसरा सच है, आदमी दोहरा जीवन जीता है, ये सत्य है.
Priyabhanshu Ranjan : आशुतोष (गुप्ता) जैसे लोग तो अभद्र भाषा इस्तेमाल किए जाने का बचाव करेंगे ही, आखिर न्यूज़ रूम में खुद इससे भी घटिया शब्दों का जो इस्तेमाल करते थे !!! अरविंद केजरीवाल पर थू है। मैं सोच भी नहीं सकता था कि ये इंसान प्रोफेसर आनंद कुमार के लिए इतनी घटिया भाषा का इस्तेमाल करेगा !
माधो दास उदासीन : आज पहली बार अफसोस हो रहा है १३ दिन के धरने के लिये… सत्ता के भूखे लोगों के लिये दिनरात एक किये…. सबकी गालियां झेली…. और बदलाव की बयार इतनी जल्दी बदरंग नजर आयेगी, यह कल्पना भी न थी…
Sudhir Nathal : दिल्ली के मुख्यमंत्री इतने अच्छे धार्मिक शब्द भी बोलते है.. कृपया पता कीजिये कि क्या Aam Aadmi Party में डोनेशन किया गया धन वापिस मिल सकता हैं। इन कमीनों ने कहीं का ना छोड़ा।
Ajay Prakash : जिससे बात करो वही कह रहा है बहुत कमीना निकला केजरीवाल…
फेसबुक से.
इन्हें भी पढ़ें….
केजरीवाल जी, अपने ये घड़ियाली आंसू बंद कीजिये…
xxx
केजरीवाल पर संपादक ओम थानवी और नरेंद्र मोदी पर पत्रकार दयानंद पांडेय भड़के
xxx
प्रेम से बोलिए, एंटी करप्शन मूवमेंट स्वाहा….
xxx
लोकपाल के नाम पर सत्ता में आए और सवाल उठाने पर लोकपाल की ही छुट्टी कर दी!
xxx
बनारस की लवंडई और ग़ाज़ीपुर की अक्खड़ई का मिलन!
xxx