जाट आरक्षण से निपटने को लेकर मुख्यमंत्री खट्टर कन्फ्यूज्ड हैं। लेकिन बिल्डरों को लाभ देने और करप्शन की शिकायतों को रद्दी की टोकरी में डालने के मामले में बिलकुल कन्फ्यूज्ड नहीं हैं। एक तेजतर्रार पत्रकार ने कन्फ्यूज्ड चीफ मिनिस्टर को समझा दिया कि सरकार कनफ्यूज़न से नहीं चलती। चंडीगढ़ में एक पत्रकार हैं मनोज ठाकुर। मैं कभी मिला नहीं। या कहिये की मिलने का सौभाग्य नहीं हुआ। फेसबुक पर मित्र बने। मैं उनकी पत्रकारिता को सलाम करता हूँ।
आरक्षण के मामले में प्रेस कांफ्रेंस में खट्टर साहिब से सवाल पूछे तो जनाब बगले झाँकने लगे। हर प्यार वायदा निभाए ये कोई जरूरी तो नहीं की तर्ज पर बोले मैं जवाब देने को बाध्य नहीं हूँ। जनाब ये पारदर्शिता का जमाना है। करीब पचास दिन से जाट आंदोलन कर रहे हैं। अरबों रुपया खर्च हो रहे है। आप ऐसे नाजुक मुद्दे पर जवाब देने से कैसे बच सकते हैं। पत्रकार सम्मलेन में काफी सीनियर पत्रकार भी थे। मनोज तो था जूनियर पत्रकार। भाई सीनियर पत्रकारों को अच्छा नहीं लगा कि कल का छोकरा चीफ मिनिस्टर की शान में गुस्ताखी करे।
अब सुना है खट्टर साहिब ने पत्रकार के सम्पादक को उसकी शिकायत कर दी है। शिकायत भी पत्रकारों की सलाह पर की है। इधर पत्रकार लोग मनोज को समझा रहे हैं कि खट्टर साहिब से माफ़ी मांग लो। लेकिन मनोज की रगों में पत्रकारिता के धर्म का खून है। उनकी कोई गलती नहीं। पत्रकारिता में कोई जूनियर और कोई सीनियर नहीं होता। जिसकी खबर में दम वही सीनियर और सब का बाप।
१९८७ में मैं जींद इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर से सीधा चंडीगढ़ जनसत्ता का रिपोर्टर बन गया। इधर पंजाब केसरी में क्राइम और चंडीगढ़ बीट कवर कर रहे राकेश संघी को भी हरयाणा बीट दे दी गई। संघी और मेरी जोड़ी महशूर थी। देवीलाल चीफ मिनिस्टर थे। अंदर की सारी खबरें हमें मिलती थी। एक दिन एक अफसर ने पूछ लिया कि ये जूनियर और सीनियर क्या होता है। कहने लगे कि सीनियर पत्रकार कहते हैं कि बंसल और संघी तो जूनियर हैं और आप खबरें उन्हें देते हैं, हम सीनियर हैं, हमें क्यों नहीं। मैंने जवाब दिया कि जिसके कलम में है दम, वो है सीनियर बाकि सारे जूनियर।
लेखक पवन कुमार बंसल हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार हैं. संपर्क : pawanbansal2@gmail.com