भले ही भारतीय जनता पार्टी और उसकी मातृ संस्था आरएसएस खुद अपनी पीठ थपथपाने में लगी हुई है कि उसके कार्यकर्ता तथा स्वयं सेवक पार्टी व सरकार की नीतियों से खुश हैं। हालांकि वे कितने प्रसन्न हैं, यह उनका दिल ही जानता है। आपसी बातचीत में उनका दर्द छलक भी पड़ता है। भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंट की लंबी चौड़ी लच्छेदार बातें करने वाली पार्टी के चालू नेता मलाई काट रहे हैं जबकि आम कार्यकर्ता को मामूली से मामूली काम व सिफारिश के लिए किस तरह चक्कर काटने के साथ जलालत सहनी पड़ती है, यह अब दबी छिपी बात नहीं रह गई है।
कार्यकर्ता अपनी ही पार्टी और सरकार से पूरी तरह से निराश हैं। चाहे वह यूपी की योगी सरकार हो या केंद्र की मोदी सरकार। पार्टी और संगठन के लोग सब कुछ जानते बूझते हुए भी अनजान बने हुए हैं या यूं कहें कि बेहयाई का पर्दा डाले हुए हैं ताकि उन्हें आम कार्यकर्ताओं-स्वयं सेवकों का कोपभाजन न बनना पड़े।
ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दावे कि 2019 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी पहले से भी ज्यादा सीटें लाकर केंद्र में सत्तासीन होगी कोरी खुशफहमी न साबित हो जाये। भीतर ही भीतर उबल रहे कार्यकर्ताओं की निराशा से तो ऐसा ही लग रहा है। कार्यकर्ताओं की मानें तो उसे भी झंडा और बैनर ढोने की एवज में कुछ चाहिए। कार्यकर्ताओं की यह नाराजगी क्या रंग लाएगी यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना तो तय है कि भाजपाध्यक्ष व पीएम मोदी 2019 की राह को जितना आसान समझ रहे हैं उतना होने वाला नहीं है।
दरअसल, ऐसी आशंका इसलिए व्यक्त की जा रही है क्योंकि भले ही प्रधानमंत्री के रूप में पीएम मोदी अभी भी देश की जनता की सबसे पहली पसंद हैं लेकिन इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि इस बार वर्ष 2014 की तरह देश में एकतरफा मोदी लहर नहीं है। शायद पार्टी व प्रमुख संगठन के पदाधिकारी इस बात को भांप गए हैं और इसी वजह से दोनों हाथों से ‘कमाई’ में लगे हुए हैं। उन्हें जनता और आम कार्यकर्ता व स्वयंसेवक से कोई लेना-देना नहीं है।
शायद ही देश का कोई भाजपा शाषित राज्य, जिला और तहसील बची हो, जहां पर इस कमाई व ‘लूट’ का काम जोर-शोर से न चल रहा हो। इसके लिए वहां पर पार्टी और संगठन के बकायदा कुछ खास लोग हैं, जो इन कामों को कर रहे हैं। मलाई काट रहे पार्टी के इन लोगों को अपने कार्यकर्ता ‘अछूत’ लग रहे हैं खासकर ‘बु़द्धिजीवी वर्ग’ तो उन्हें कतई रास नहीं आ रहा है। सपा, कांग्रेस और बसपा के लोग भाजपा के उन पदाधिकारियों को ‘सभी’ ‘सुख-सुविधाएं’ मुहैया कराकर हर तरह का पद और सम्मान ले रहे हैं।
यूपी की अगर बात करें तो निकाय और पंचायत चुनाव में यह ‘खेल’ खुलकर खेला गया। सूत्र बता रहे हैं कि अब सरकारी अधिवक्ता बनाये जाने को लेकर यही ‘धंधा’ खूब जोर-शोर से चल रहा है। इसमें लाखों की कथित कमाई के साथ ‘मलाई’ का जो सुख मिल रहा है, वह आगे मिलेगा या नहीं, संभवतः इसका भान उन्हें हो गया है। भले ही पार्टी और प्रमुख संगठन के आला पदाधिकारी इस हकीकत से मुंह फेरे हुए हों। लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि इसका खामियाजा पार्टी को चुनावों में भुगतना पडे़गा।
दरअसल, केंद्र में पिछले करीब साढे़ चार साल के शासन में न तो भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ताओं के दिन बदले और न ही संगठन के निष्ठावान स्वयं सेवकों के दिन बहुरे। दोनों के दोनों असम्मान व दुत्कार से निराशा और हताशा के भंवर में फंसे हुए हैं, उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा है कि वे क्या करें और क्या न करें? लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा के आलाकमान और बड़े मंत्रियों व पदाधिकारियों को वर्ष 2019 के आम चुनावों में छठी का दूध जरूर याद आ जाएगा। क्योंकि उन्होंने न तो गुजरात से सबक लिया और न ही गोवा से जहां एक-एक सीट के लिए पार्टी की सांसें थमती नजर आ रही थीं।
एक वरिष्ठ स्वयंसेवक नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि संघ का ध्येय वाक्य है कि राष्ट्र के लिए सबकुछ अर्पित कर दो। कुछ भी अपेक्षा न रखो तो क्या हमारी पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं है? संगठन के बड़े पदाधिकारी खुद तो हर तरह की सुख सुविधा हासिल कर रहे हैं और आम स्वयंसेवक से संन्यासी जैसी अपेक्षा की जाती है। यह केवल आम स्वयंसेवक के साथ छलावा है। आरोप है कि संगठन के अधिकांशतः पदाधिकारी अपने परिवार, रिश्तेदारों और अपने खास लोगों के लिए वह सब कुछ कर रहे हैं जैसा कि भाजपा के जिम्मेदार मंत्री और पदाधिकारी कर रहे हैं। ऐसे में यह कहना समीचीन होगा कि खुशफहमी के शिकार पीएम मोदी व भाजपा प्रमुख अमित शाह के ख्वाब बिखर भी सकते हैं। अगर जल्दी ही धरातलीय हकीकत को नहीं समझा गया तो फिर केवल हाथ मलना ही रह जाएगा।
Badrinath Verma