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सुख-दुख

महिला पत्रकार के शोषण मामले में आरोपी बनाए गए पत्रकार कृष्ण कांत ने तोड़ी अपनी चुप्पी

Krishna Kant : मुझ पर बहुत संगीन आरोप लगाए गए हैं. सोचा था कि हमारा अपना प्रेम संबंध था, इस पर कुछ नहीं कहना. लेकिन मामला अब हाथ से निकल गया है. अब फेसबुक ही सर्वोच्च अदालत है, और हर व्यक्ति मुख्य न्यायाधीश. शर्मिंदगी के साथ इस कीचड़ में उतरने को मजबूर हूं. कहा जा रहा है कि अलग होना बड़ी बात नहीं है, लेकिन धोखा दिया गया. इस ‘धोखे’ में उसका जिक्र कहां है कि हमारे आसपास के लोग पिछले डेढ़ साल से मध्यस्थता कर रहे थे. वे लोग कहां हैं इस पूरी बहस में जो बार बार समझा रहे थे कि तुम दोनों साथ नहीं रह सकते? यह जिक्र कहां हैं कि हमें जब कहा गया कि हम साथ नहीं सकते तो तीन बार आत्महत्या करने कोशिश/धमकी दी गई? यह जिक्र कहां है कि आत्महत्या की धमकी पर दो बार ऐसा हुआ कि दोस्तों को दौड़कर आना पड़ा? यह जिक्र कहां है कि आप आत्महत्या की धमकी देकर दरवाजा बंद करके सीपी घूम रही थीं और हम दोस्तों के साथ तुमको ढूंढ रहे थे?

Krishna Kant : मुझ पर बहुत संगीन आरोप लगाए गए हैं. सोचा था कि हमारा अपना प्रेम संबंध था, इस पर कुछ नहीं कहना. लेकिन मामला अब हाथ से निकल गया है. अब फेसबुक ही सर्वोच्च अदालत है, और हर व्यक्ति मुख्य न्यायाधीश. शर्मिंदगी के साथ इस कीचड़ में उतरने को मजबूर हूं. कहा जा रहा है कि अलग होना बड़ी बात नहीं है, लेकिन धोखा दिया गया. इस ‘धोखे’ में उसका जिक्र कहां है कि हमारे आसपास के लोग पिछले डेढ़ साल से मध्यस्थता कर रहे थे. वे लोग कहां हैं इस पूरी बहस में जो बार बार समझा रहे थे कि तुम दोनों साथ नहीं रह सकते? यह जिक्र कहां हैं कि हमें जब कहा गया कि हम साथ नहीं सकते तो तीन बार आत्महत्या करने कोशिश/धमकी दी गई? यह जिक्र कहां है कि आत्महत्या की धमकी पर दो बार ऐसा हुआ कि दोस्तों को दौड़कर आना पड़ा? यह जिक्र कहां है कि आप आत्महत्या की धमकी देकर दरवाजा बंद करके सीपी घूम रही थीं और हम दोस्तों के साथ तुमको ढूंढ रहे थे?

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इस बात का जिक्र कहां है कि किसी 45 या 50 साल की महिला से भी बात करने या हालचाल लेने पर आपको परेशानी होती रही है? इस बात का जिक्र कहां है कि मुझे लोगों के बीच में ही काम करना है और आपको लोगों से उबकाई आती है? इस बात का जिक्र कहां है कि जिन लोगों के पास आपको फोर्स करके भेजा गया कि तुम अकेलेपन से निकलो, उन्हीं के पास जाकर आपने हमको गालियां दीं? वे दोस्त, वे वरिष्ठ महिलाएं कहां हैं जो आपको समझाती रहीं कि कोई अलग होना चाहता है तो उसे जाने देना चाहिए? वे पुरुष दोस्त कहां हैं जिनके मेरे घर आने भर से आप हफ्ते भर लड़ाई करती थीं? आपको न्याय दिलाने के लिए वही लोग क्यों और किस मकसद से जुटाए गए जो हमसे कभी नहीं मिले या जो हमको नहीं जानते?

इस बात का जिक्र कहां है कि आपको हमारे दफ्तर जाने, रिपोर्टिंग पर जाने, दोस्तों के साथ बैठने पर भी आपको दिक्कत थी जिसपर लगातार समझाइश की कोशिश होती रही और आपने हर बार समझने से इनकार किया? बार बार यह कहने के बाद कि हम साथ नहीं रह सकते, धोखा कैसे होता है? मैं अलग होना चाहता हूं, यह लगातार कहते रहना किस कानून के तहत धोखा या अपराध है? जिस जगह पर मैं हूं वहां पर कोई स्त्री होगी तो क्या करेगी? हमारी पूरी सर्किल के लोग, दोस्त सब हमारे संबंध को जानते हैं तो किसी के साथ भी धोखा कैसे हो गया? इतनी किचकिच के बाद अगर मैं अलग होना चाहता रहा तो कौन सा कानून या लोग मुझे फांसी देंगे, मैं तैयार हूं.

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क्या मेरे मुताबिक, आप मेरे साथ नहीं रहना चाहें तो मुझे आपके चरित्रहनन का अभियान चला देना चाहिए? मुंह पर तेजाब डाल देना चाहिए? कहा गया है कि हमने कई लड़कियों को बरगलाया, मौत के मुंह में पहुंचाया और छोड़ दिया. तमाम लड़कियां आत्महत्या कर रही हैं. एक जिस रिश्ते में हम रहे, उसके अलावा वे कौन लड़कियां हैं? सब लड़कियां आत्महत्याएं कर रही हैं और अस्पताल से घर लौट जा रही हैं, लेकिन न कोई केस दर्ज हो रहा है, न अस्पताल रिपोर्ट कर रहा है. इतनी लड़कियों को बचा लेने वाले लोग भी कोई रिपोर्ट नहीं कर रहे हैं. ताजा आत्महत्या प्रकरण हुआ. किसी ने न देखा, न बात की, न अस्पताल ने पुलिस बुलाई, न मेरे पास पुलिस आई, न कोई केस हुआ, यह किस दुनिया में, कैसे संभव हुआ?

कहा गया है कि मैं तमाम लड़कियों को बरगला कर मौत के मुंह में डालता गया. यह सब देखते हुए आपको मुझसे शादी करनी थी? सारे आरोप अलग होने के बाद ही सामने आए? उसके पहले आपको उन लड़कियों की और हमारे ‘आपराधिक चरित्र’ पर चिंता नहीं हुई? एक महीने पहले तक हम आपसे शादी कर ​लेते तो यह सारे खून माफ थे? आरोप है कि हमने हैरेस किया, पैसा खाया. मैं सात साल से नौकरी कर रहा हूं. आप कितना पैसा कमाती थीं जो हम आपसे पैसे खाते थे और आप खिलाती थीं? बिना किसी पढ़ाई लिखाई के, बिना किसी अनुभव के आपको दोनों नौकरियां कैसे मिलीं? आपका परिवार आपको सपोर्ट नहीं कर रहा था, आप दिल्ली आ गईं, आपको यहां रहने के लिए आर्थिक मदद किसकी थी? अभियान चलाने के ठीक पहले आपका अकाउंट फ्रीज हुआ, आपने पैसा किससे लिया? आपके यहां आने से लेकर एक महीने पहले तक आपका रोना था कि मेरे कोई दोस्त नहीं हैं, कभी भी किसी भी परिस्थिति में आपकी किसी भी तरह की मदद, संबंध खराब होने के बावजूद, मेरे अलावा किसने की? (यह सब आरोप लगाया जाना और यह जवाब देना बेहद घिनौना है.)

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जिस दिन मेरे घर बाबा की तेरहवीं थी, उस दिन भी मुझसे बहस करने की कोशिश की जा रही थी. 99 साल के मरे हुए व्यक्ति की भी फोटो लगाकर गालियां दी गईं? पिछले छह महीने में पिता और बाबा की मौत हुई, उसका यहां फेसबुक पर पोस्ट लिखकर मजाक उड़ाया गया. यह कौन सा न्याय मांगा जा रहा है? जितने आरोप लगाए जा रहे हैं वे सब पहले फर्जी अकाउंट से क्यों सामने आ रहे हैं? यदि मैं अपराधी हूं, तो उसका फैसला कौन करेगा? मुझे सजा कौन देगा? कहा गया कि फ्रिज में गोमांस है तो भीड़ जुट गई और पिटाई शुरू हो गई? इस संभ्रांत और ​वर्चुअल मॉब लिंचिंग के लिए आप सब बधाई के पात्र हैं.

तमाम लोगों का कहना है कि हमें हमारे संस्थान से निकाला जाए. हमारे किसी के साथ संबंध में मेरे संस्थान का क्या रोल है? किसी विचारधारा, जाति, वर्ग, समुदाय आदि का क्या रोल है? मेरे उन मित्रों, जिनका कहीं कोई रोल नहीं है, उनको भी इसमें घसीटा जा रहा है. प्रियंका से मेरी एक महीने से बात नहीं हुई है, उन्होंने जो किया, वह ठीक ही है. वे क्या क्या कहेंगी, क्या करेंगी, यह छोड़िए, बाकी जितने न्यायाधीश हैं, जिन्होंने भी नाम लेकर बिना मुझसे कुछ पूछे, बिना पक्ष लिए पोस्ट डाली है, वे सारे प्रोफेसर, पत्रकार और समाज बचाने के ठेकेदार अब अपने पक्ष और सबूत लेकर कोर्ट आएंगे, एफआईआर करवाकर सबको नोटिस भेज रहा हूं. मैं अपराधी हूं तो मेरी अपील है कि मुझे सजा मिले. एक महीने से फेसबुक ट्रायल किस मकसद से है? बार बार कहने के बाद भी कोई कोर्ट या पुलिस नहीं गया, तो मैं जाता हूं. जिस जिस का अपराधी हूं, सब लोग आएं.

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आप लोग, जो भी मुझे जानते हैं, मुझ पर भरोसा करते रहे हैं, वे मेरे काम के कारण करते रहे हैं. संबंध में रहकर आप कहती रहीं कि ‘तुमको अपने काम के अलावा बाकी दुनिया नहीं दिखती.’ अब सारा हमला उसी काम पर है कि कैसे नौकरी छुड़वाई जाए. हां, मैं अपने काम को लेकर पागल हूं. तमाम लेखकों और पत्रकारों की हत्या के बावजूद मैं क्रूर भीड़ से नहीं डरता तो टुच्चे आरोपों से नहीं डरता. आप में से जिसे लगता हो कि मैं अपराधी हूं, वे छोड़कर जा सकते हैं. जो मुझे जानते हैं, वे जानते हैं कि मैं क्या कर सकता हूं. जो नहीं जानते उन्हें कोई सफाई देने की जरूरत नहीं है. जिसके साथ था, उसके बारे में भी दुनिया जानती थी. अब जिसके साथ हूं उसके बारे में भी दुनिया जानती है. अब जिन जिन के साथ धोखा हुआ हो, वे सब आएं और इस मॉब लिंचिंग में शामिल हों.

बाकी जिस पर इलाहाबाद से लेकर जेएनयू तक 50 लड़कियों के यौन शोषण का आरोप है, जो इलाहाबाद से भागा इसीलिए कि कुटाई होनी थी, उस महान स्त्रीवादी न्यायविद के आरोपों पर कुछ नहीं कहना. जबसे यह प्रकरण शुरू हुआ, सिर्फ तीन चार लोगों से बात की, इस उम्मीद से कि शायद यह सब शांत होगा. लेकिन जो जो लोग ​इस घृणा अभियान में बिना मेरा कोई पक्ष जाने शामिल हुए, उन सबको सलाम पेश करता हूं. बिना अपराधी का पक्ष लिए न्याय कर देने की आपकी यह नायाब क्षमता देश के काम आएगी.

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पत्रकार कृष्ण कांत की एफबी वॉल से.

पूरे मामले को समझने के लिए नीचे दिए शीर्षक पर क्लिक करें…

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