-शिशिर सोनी-
प्रिय अर्णब
तुम्हारे संग जो हो रहा है उसके जिम्मेदार तुम खुद हो। खुद सोचो, क्या तुमने पत्रकारिता के नाम पर नंगई नहीं की? भोंडापन नहीं दिखाया? भाषा की मर्यादा को तार तार नहीं किया? खुद सफल होने ताव में मीडिया जगत को, पत्रकारों को खारिज करने का दुस्साहस नहीं किया? NBA, NBSA जैसी संस्थाओं को फालतू करार नहीं दिया? लुटियन मीडिया, लुटियन मीडिया बोलके लगातार कटाक्ष नहीं किया?
क्या तुम आज एक दल विशेष के कार्यकर्ता से behave नहीं कर रहे? क्या अन्य सभी दलों के नेताओं को तुमने जोकर बनाने, बोलने में कोई कोर कसर छोड़ी? तो फिर आज तुम्हारे साथ कोई क्यों खड़ा रहे? जब तक तुमने पत्रकारिता की देश ने प्यार दिया। जब से तुमने लुच्चई शुरू की, पत्रकारिता को बदनाम किया, एक दिन ये दिन आना था। आना ही था।
दुख की बात है कि तुमने अपने साथ युवा पत्रकारों के भविष्य को भी दागदार बना दिया है।
जब तक तुम अंग्रेज़ी में थे, ठीक थे। मगर, हिंदी में तुम बेअदब हो गए। बेकाबू हो गए। एंकर कम मानो गली के मवाली हो गए। अमर्यादित भाषा पर उतारू हो गए। अब भी समय है। संभलो। सुधरो। खुद को खुदा समझने से परहेज करो।
अब तुम पत्रकार नहीं, मीडिया का धंधा करने वाले एक धंधेबाज भी हो। और जब कोई धंधा करता है तो उसकी पूँछ कहीं न कहीं दबी होती है। सब का आदर करना सीखो। हें हें करता हुआ लाला बनना सीखो। मीडिया, मीडिया कहना है तो पहले मीडिया बनना सीखो।