पुण्य प्रसून बाजपेयी, सुप्रिय प्रसाद, राहुल कंवल और दीपक शर्मा कल क्यों जा रहे हैं लखनऊ?

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मोदी अगर राष्ट्रीय मीडिया को पटाने-ललचाने में लगे हैं तो उधर यूपी में अखिलेश यादव से लेकर आजम खान जैसे लोग नेशनल व रीजनल को पटाने-धमकाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़े हुए हैं. आपको याद होगा मुजफ्फरनगर दंगों के बाद आजतक पर चला एक स्टिंग आपरेशन. दीपक शर्मा और उनकी टीम ने मुजफ्फरनगर के कई अफसरों का स्टिंग किया जिससे पता चला कि इस दंगे को बढ़ाने-भभकाने में यूपी के एक कद्दावर मंत्री का रोल रहा, इसी कारण तुरंत कार्रवाई करने से पुलिस को रोका गया.

इस स्टिंग के सामने आने के बाद आजम खान आग बबूला हो गए. इतिहास बताता-सिखाता है कि नेताओं की जब जब चोरी पकड़ी गई, तब तब वे आग बबूला हुए. आजम खान ने खुद की मानहानि को लेकर विधानसभा में शिकायत कर दी. यूपी की अखिलेश सरकार ने सक्रियता दिखाई. इसके बाद विधानसभा ने मामले की जांच के लिए कमेटी बना दी और आजतक वालों को तलब करना शुरू किया. इसी प्रकरण में फिर से तलब किए गए हैं आजतक व इस ग्रुप के अन्य चैनलों के लोग. दीपक शर्मा ने स्टिंग किया था, पुण्य प्रसून बाजपेयी ने इस पूरे स्टिंग को प्रसारित कर प्रोग्राम को एंकर किया था, सुप्रिय प्रसाद आजतक के चैनल हेड हैं और राहुल कंवल तब हेडलाइंस टुडे देखा करते थे जहां ये खबर चली थी. इसी कारण ये चार लोग कल एक साथ लखनऊ जा रहे हैं विधानसभा की कमेटी के आगे अपना पक्ष रखने.

इस तरह के एक ताकतवर नेता, एक सत्ता ने मीडिया वालों को सच बताने के अपराध में कठघरे में खड़ा कर दिया है, पेश होने और पक्ष रखने को मजबूर कर दिया है. इन नेताओं और इन सत्ता-सिस्टम के लोगों की इच्छा है कि अगर कोई स्टिंग विस्टिंग उनके खिलाफ किया जाए तो पहले उनको दिखा लिया जाए, पहले उन्हें बता दिया जाए. सोचिए, अगर यही सब होने लगा फिर तो हो चुकी पत्रकारिता और हो चुका स्टिंग. चुने हुए नुमाइंदे इन दिनों इतने ताकतवर व अवसरवादी हो चुके हैं कि मीडिया को अपने अधीन करना चाहते हैं और पूंजी के लिए कार्पोरेट के सामने पूंछ हिलाते हैं. नरेंद्र मोदी हों या आजम खान. दोनों अपने अपने तरीके से मीडिया को मैनेज करते हैं और धमकाते हैं. कोई खुलकर गरिया कर धमका कर मीडिया को भयाक्रांत करता है तो कोई सेल्फी खिंचवाने का मौका देकर मीडिया को मीठे तरीके से पटाए रखता है.

यूपी का हाल तो इन दिनों बेहद बुरा है. अखिलेश यादव की प्रेस कांफ्रेंस में बिजली कट जाया करती है, दसियों मिनट तक. इतने बड़े सूबे का सीएम अंधेरे में बैटकर खीझ मिटाने के लिए बेवजह हंसता-मुस्कराता रहा. लखनऊ में लगातार हत्या दर हत्या हो रही है. पूरे प्रदेश में उगाही राज कायम हो चुका है. कब्जा, गुंडई, बलात्कार, बकैती का काम सपा शासित सिस्टम के संरक्षण में हो रहा है. यूपी सरकार ने इतने सारे दंगों को समझने जानने के लिए कोई कमेटी नहीं बनाया. सुप्रीम कोर्ट के कहने पर भी दंगों को लेकर समिति का गठन नहीं किया. समस्याओं के अंबार तले दबे यूपी में किसी अन्य मसले को लेकर विधानसभा की कमेटी नहीं बनाई गई लेकिन आजम खान और सत्ता-सिस्टम की पोल खोलने वाले स्टिंग के खिलाफ तत्काल प्रभाव से विधानसभा की जांच समिति गठित कर दी गई. काश यही तत्परता नेता लोग जन हित के मसलों को हल करने के लिए दिखा पाते.

फिलहाल खबर यही है कि टीवी टुडे के चार धुरंधर कल यूपी के सत्ताधारी नेताओं की ताकत के आगे मजबूर होते हुए दिल्ली से लखनऊ जाएंगे और विधानसभा की समिति के आगे पेश होकर अपना पक्ष रखने को मजबूर होंगे. कल्पना करिए कि अगर ऐसे ही समितियां नेताओं ने देश के दर्जनों प्रदेशों में बनवा दी तो फिर इन पत्रकारों का काम पत्रकारिता करने की जगह प्रदेशों की राजधानियों में जाकर अपना पक्ष रखना भर रह जाएगा.

लेखक यशवंत सिंह भड़ास के संपादक हैं.

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Comments on “पुण्य प्रसून बाजपेयी, सुप्रिय प्रसाद, राहुल कंवल और दीपक शर्मा कल क्यों जा रहे हैं लखनऊ?

  • Dr. VINAY BHUSHAN says:

    ये आज की मीडिया की सच्‍चाई बन गई है कि वह जब भी कभी निष्‍पक्ष होकर कोई बडी खबर को सामने लाती है तो उससे प्रभावित लोग अपनी हैसियत को दिखाकर धमकाने की कोशिश करते हैं। लेकिन ऐसे में मीडिया के उन लोगों की सच्‍चाई भी सामने आ जाती है जो सत्‍ता का समर्थन हासिल करने के लालच में प्रचार को समाचार के रूप में पेश करते रहते हैं।

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  • यशवंत भाई आजम खान ने नहीं बुलवाया विधानसभा ने बुलाया है और वह राज्य की सर्वोच्च संस्था है। रही बात आजम खान की तो बंदा विधायक है अपने अधिकार का प्रयोग किया, संभवत: विशेषाधिकार हनन का आरोप लगाया होगा। बस पूछताछ होगी। देखिए जब विधानसभा, संसद, कोर्ट बुलाए तो जाना पडेगा आप ये नहीं कह सकते कि साहब हमने तो असली स्टिंग किया था। इसमें पत्रकारिता पर आंच आ जाए ऐसी कोई बात नहीं है।
    छत्तीसगढ में पत्रिका को ही ले लो। छग विधानसभा के सभापति ने कह दिया कि इस वार्तालाप को कार्रवाई से हटा दें तो वे छापने लायक नहीं रहता बावजूद इसके पत्रिका ने छापा, नतीजा बैन हो गए। फिर काले पीले अखबार छापते रहे, पत्रकारिता पर हमला बताते रहे, लेकिन व्यवस्था है तो मानना ही पडा अभी भी एंट्री के लिए घिघिया रहे हैं।

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  • नितिन तिवारी says:

    जब आज तक पर यह स्टिंग दिखाया गया गया था तभी सब कुछ साफ हो गया था, आजम खान जी इस स्टिंग के बाद विचार शून्य हो गये। अपनी खिसियाहट निकालने के लिये कमेटी- कमेटी खेल रहे है। पत्रकारों को अपना काम सतत करना चाहिये। देश में न्याय पालिका के बाद मीडिया ही सबसे विश्वसनीय स्तम्भ है।

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