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आज ‘हिन्दुस्तान’ और ‘द टेलीग्राफ’ परस्पर विरोधी कहे जा सकते हैं!

ममता बनर्जी ने पुलवामा हमले पर सवालों के पर्दे भेद दिए, यह खबर सिर्फ टेलीग्राफ में, बाकी में औपचारिकता या वो भी नहीं

हिन्दुस्तान – सिर्फ सरकारी खबरें। उसमें भी एक छूट गई।

आज हिन्दी के अखबारों में हिन्दुस्तान और अंग्रेजी में द टेलीग्राफ परस्पर विरोधी कहे जा सकते हैं। हिन्दुस्तान का पहला पन्ना सरकारी खबरों का लगता है जो सरकारी भाषा में ही लिखी गई हैं। “पुलवामा का साजिशकर्ता हलाक” तो हो गया लेकिन किस कीमत पर? बात तो एक के बदले 10 सिर लाने की थी (हालांकि वह भी चुनावी जुमला ही है, नीतिगत स्तर पर ठीक नहीं कहा जा सकता)। इसलिए इसमें सीना ठोंकने जैसी कोई बात नहीं है। दूसरी ओर एक और खबर है, पूरी प्रमुखता से, “आतंक पर बात करने का समय अब खत्म : मोदी”। वैसे तो यह चुनावी खबर है। लेकिन खूब प्रमुखता से छपी है।

मोटी चमड़ी और सवालों पर से पर्दे की बात दूसरे अखबार क्यों नहीं करते

जब समय था तो क्या बात हुई और किसने रोका था? यह बताने का समय भी तो कभी आएगा? अखबार नहीं पूछेंगे तो कौन पूछेगा। अखबारों के लिए यह काम आज ममता बनर्जी ने कर दिया है। पर दैनिक हिन्दुस्तान में वह खबर पहले पन्ने पर तो नहीं है। हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर एक खबर रह गई है, जो होती तो अखबार और भी अच्छी तरह सरकारी लगता। वह खबर यह है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि, “दुनिया के किसी भी दूसरे नेता में आतंकवाद से लड़ने की राजनैतिक इच्छा वैसी नहीं है जैसी हमारे नेता नरेन्द्र भाई में है”।

नवभारत टाइम्स ने ममता बनर्जी की खबर पहले पन्ने पर छापी है। शीर्षक है, “पुलवामा पर राजनीति बंद करें”। अखबार ने इसके साथ अभिनेता से नेता बने कमल हासन का सवाल भी छापा है। शीर्षक है, “कमल ने पूछा, जनमत संग्रह क्यों नहीं?” खबर के मुताबिक कमल हासन ने कश्मीर में जनमत संग्रह के मुद्दे पर सरकार को घेरा। यह जरूरी नहीं है कि हर अखबार हरेक खबर को छापे। लेकिन चुनाव के समय जब सरकारी पार्टी की राजनीतिक खबर छप रही है तो दूसरों को भी मौका मिलना चाहिए। इसी तरह कश्मीर विवाद पर अगर कोई सवाल है तो उसे भी छपना चाहिए। तभी उसपर चर्चा होगी और पाठकों को तभी पता चलेगा कि जो सत्ता में है वह कुछ कर भी रहा है या सिर्फ डींग हांक रहा है।

आइए, अब टेलीग्राफ को देखें। टेलीग्राफ का मुख्य शीर्षक है, द थिकेस्ट स्किन (सबसे मोटी चमड़ी)। इसके बाद अमित शाह की फोटो के साथ प्रधानमंत्री के बारे में उनका बयान है और फिर एक खबर का शीर्षक है, ब्रैगिंग रिप्स क्वेश्चन वेल। इसका मतलब हुआ, “डींग हांकने से भेद दिए गए सवालों के आवरण”। जैश के तीन आतंकवादियों को मार दिए जाने की खबर का शीर्षक भी अखबार ने हिन्दुस्तान से अलग लगाया है और शीर्षक में ही बताया गया है कि हमें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।

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https://www.facebook.com/bhadasmedia/videos/vl.2202130806720692/535206396967370/?type=1

आपको याद होगा कि पुलवामा हमले के बाद सभी दलों ने सरकार का साथ देने का वादा किया था। और इस मामले में सभी दल सरकार के साथ हैं भी। पर सरकार ने क्या किया? घूम-घूम कर वोट मांग रही है। ऐसे जैसे आचार संहिता लागू होने से पहले बहुत काम होने हैं। ठीक है। इसमें कोई बुराई नहीं है। पर अखबारों को यह समझ में तो आए। खबरों से ऐसा दिखे तो। टेलीग्राफ ने यही लिखा है कि डींग हांकने के जवाब में ही ममता बनर्जी ने पुलवामा हमले पर सवाल उठाए हैं। अखबारों ने प्रधानमंत्री की छवि बनाई है कि उनका परिवार नहीं है। इसलिए वे भ्रष्टाचार किसके लिए करेंगे। पर ममता बनर्जी के बारे में ऐसा कुछ आपने कभी पढ़ा क्या?

आज ममता बनर्जी ने जब कहा कि, “पुलवामा पर राजनीति बंद करें” तो क्या यह पहले पन्ने की खबर नहीं है। देखिए, आपके अखबार ने छापा क्या और कितना। आज मैं आपको बताता हूं कि टेलीग्राफ ने क्या छापा है। आप जानते हैं कि आजकल सवाल पूछने का मतलब देशद्रोह हो गया है। और अखबार भी सवाल नहीं उठाते हैं। इसलिए ममता बनर्जी ने अगर सरकार का साथ देने के वादे के बावजूद सवाल उठाए हैं तो वो यूं ही नहीं हैं। उठाने का कारण तो मैंने बता ही दिया। आइए अब सवालों को भी देखें।

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अखबार ने लिखा है कि जिस दिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एलान किया कि नरेन्द्र मोदी आंतंकवाद से निपटने में सबसे मजबूत इच्छाशक्ति वाले विश्व नेता हैं उस दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वे एकजुटता के कारण अभी तक बनाकर रखी गई अपनी चुप्पी को तोड़ने के लिए मजबूर हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे मोदी और शाह के बयान और संघ परिवार के उकसाने वाले कदम के कारण ही बोल रही हैं। उनके प्रमुख सवाल हैं,

  1. कैसे आपने पाकिस्तान को ऐसा करने दिया? पांच साल में आपने क्या कार्रवाई की है? ठीक चुनाव से पहले आपको लगा कि युद्ध छेड़ना, छद्म युद्ध महत्वपूर्ण है ताकि लोगों की जान से खेला जा सके?
  2. यह सब चुनाव से पहले संसद का सत्र खत्म होने के बाद क्यों हुआ? मैं नहीं जानती …. एक नागरिक के रूप में ये मेरे सवाल हैं जो अनुत्तरित हैं।
  3. क्यों 2800 जवान 78 वाहनों के काफिले में ले जाए जा रहे थे, इसकी इजाजत क्यों दी गई जब सरकार के पास खुफिया जानकारी थी। सूचना बहुत स्पष्ट थी कि यह ज्ञात था कि ऐसा हो सकता है। कोई पूर्व कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इतने लोगों को क्यों मरना पड़ा? ये सवाल हर किसी के दिमाग में हैं।
  4. सीआरपीएफ ने जवानों को विमान से भेजने के लिए कहा था। ऐसा क्यों नहीं किया गया? आप प्रचार पर कितना खर्च करते हैं?
  5. पाकिस्तान प्रेमी कौन है? वे कहां छिपे हुए हैं? भाजपा – विहिप – आरएसएस के अलावा हर कोई पाक प्रेमी है?

प्रधानमंत्री खौलते खून और दिल में आग की बात करते रहे हैं क्या यह चुनाव से पहले नैरेटिव तैयार करने की कोशिश है? वह भी तब जब विपक्ष ने मोदी को पूर्ण समर्थन देने का वादा किया था। अखबार के मुताबिक ममता ने यह भी कहा है कि मोदी और शाह के भाषणों से लगता है कि देश में सिर्फ वही देशभक्त बचे हैं और बाकी सब लोग विदेशी हैं, आतंकवादी हैं। यह सही नहीं है। चार दिन हमलोगों ने कुछ नहीं कहा … पर पिछले दो दिन से वे जो कुछ कर रहे हैं उसे देखते हुए मुझे अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी ….।

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नवोदय टाइम्स ने पुलवामा के मास्टर माइंड सहित तीन ढेर शीर्षक खबर को लीड बनाया है और इसके साथ ममता बनर्जी की खबर को बॉक्स में लगाया है। शीर्षक है, ममता ने पुलवामा हमले के समय पर उठाए सवाल। अखबार ने ममता के सवाल तो छापे हैं पर यह नहीं बताया है कि वे अमित शाह और प्रधानमंत्री के राजनीतिक बयानों से परेशान होकर सरकार का साथ देने के वादे के बावजूद अपनी चुप्पी तोड़ रही हैं। यह बताना महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री अपनी निजी मजबूती और 56 ईंची सीने की चाहे जितनी बात कर लें, उनके समर्थक चाहे जितना प्रचार कर लें। वे टीम लीडर नहीं हैं। पर अखबार वाले इसे छिपा जाते हैं।

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दैनिक जागरण में ममता बनर्जी के सवाल तो नहीं हैं पर ममता के साथ धरना देने वाले बंगाल के शीर्ष अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगी शीर्षक खबर जरूर है। यह दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। इसके साथ एक सूचना भी है, कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार का हो सकता है ताबदला, पेज सात। इसका मतलब हुआ दैनिक जागरण ने ममता बनर्जी के सवाल अंदर भी नहीं छापे हैं। हालांकि अंदर के पन्ने मैंने अभी नहीं देखे हैं ना आमतौर से उनपर टिप्पणी करता हूं।

अमर उजाला में पुलवामा हमले का मास्टरमाइंड कामरान ढेर मेजर समेत 5 शहीद, डीआईजी- ब्रिगेडियर जख्मी – खबर लीड है। यहां भी इस मुख्य खबर के साथ कई खबरें हैं। मोदी ने कहा – बात का वक्त गुजर गया … आतंक और उसे पनाह देने वालों के खिलाफ एकजुट हो पूरी दुनिया। शीर्षक छोटे फौन्ट की हेडिंग में तीन कॉलम में है। पर ममता बनर्जी की कोई खबर (जागरण वाली भी) यहां पहले पन्ने पर नहीं है। हालांकि, यहां एक सपा विधायक कल्पनाथ पासवान की खबर है। उनके 10 लाख रुपए नकद चोरी चले गए हैं और दो महीने में रिपोर्ट नहीं लिखी गई है हमारे उत्तर प्रदेश में। अखबार ने शीर्षक लगाया है, दो माह से चोरी की रिपोर्ट नहीं लिखने पर फूट-फूट कर रोए विधायक।

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राजस्थान पत्रिका में फ्लैग शीर्षक है, “बदले की पहली खेप : 15 घंटे चली मुठभेड़, शहीदों में झुंझनू (राजस्थान) हवलदार श्योराम भी”। मुख्य शीर्षक है, “पुलवामा हमले के मास्टर माइंड कामरान समेत तीन आतंकवादी ढेर, मेजर और चार जवान शहीद”। अखबार ने इसके साथ कई खबरें छापी हैं। इनमें एक है, मोदी बोले, अब कार्रवाई का वक्त। पर ममता के सवाल यहां नहीं हैं। पुलवामा हमले के मास्टर माइंड के मारे जाने की खबर सभी अखबारों में लीड है पर ममता बनर्जी की खबर हिन्दुस्तान टाइम्स और दैनिक भास्कर में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। लेकिन इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू और टाइम्स ऑफ इंडिया में नहीं है।

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट। संपर्क : [email protected]

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