: ( मीडिया की मंडी में हम-4 ) : यह 1989-90 की राजनीतिक उठापटक का दौर था. दिल्ली में वीपी सिंह प्रधानमंत्री बन गए थे. चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय चुनाव जीतकर सांसद बन गए थे. उन्होंने संपादक पद छोड़ दिया था. चंचल, रामकृपाल और नकवी भी चौथी दुनिया से विदा ले चुके थे. तेजी से बदलते इस घटनाक्रम में सुधेन्दु पटेल चौथी दुनिया के संपादक बन गए. वे जयपुर से दिल्ली साप्ताहिक अपडाउन करते. उनके स्नेह और आग्रह पर चौथी दुनिया से जुड़ गया. बतौर फ्रीलांसर सुधेन्दु ने मुझे खूब छापा और सम्मानजनक तरीके से छापा. बनारसी मिजाज के सुधेन्दु पटेल ने उसी मिजाज का होली अंक प्लान किया. मैंने और कृष्ण कल्कि ने पर्याप्त योगदान दिया. काफी हंगामेदार था चौथी दुनिया का वो होली अंक.
बनारसी होली को समझनेवाले समझ सकते हैं क्योंकि राष्ट्रीय धारा में इतना तीखा हो जाने की हिम्मत दिखाना आसान नहीं था. खैर, उसी अंक के मुखपृष्ट पर मेरी सचित्र स्टोरी थी- “मुख्यसचिव ने रंडी नचाई”. स्टोरी तो बोल्ड थी ही, सुधेन्दु ने हैडिंग देकर कुछ ज्यादा बोल्ड कर दिया. अखबार छपने प्रेस में चला गया और मैं होली मनाने अपने घर भरतपुर. होली के बाद लौटकर जयपुर आया तो अंक के जलवे का अंदाज हुआ. देसी अंदाज में कहें तो ऐसे जलवे से ही तो मन में लहर सी उठती है कि मजा आ गया. उस दिन तीन चार पत्रकारों ने कहा कि बोलियाजी पूछ रहे थे. मैंने सुन कर नजरअंदाज कर दिया. लक्ष्मण बोलिया पुलिस विभाग में पीआरओ थे.
देर शाम पुराने मित्रों से होली की रामराम करने पत्रिका पहुंचा तो क्राइम बीट देख रहे पत्रकार राजेश शर्मा ने कहा कि बोलियाजी पूछ रहे थे. सच में सुनकर सर भन्ना गया कि यह बोलियाजी जने जने से मेरे बारे में क्यों पूछ रहे हैं. मैंने तुरन्त उनके घर का नंबर लेकर फोन मिलाया. बोलियाजी ने फोन पर मेरा फोन नम्बर मांगा, तो मुझे कहना पड़ा कि मेरे पास फोन नहीं है. इस पर उन्होंने घर का पता पूछा तो माथा फिर भन्नाया. मैंने सीधे ही पूछ लिया कि पुलिस भेजनी है क्या. सुनकर बोलिया जी झेंपे. कहने लगे कि नहीं बस मिलना चाहता हूं. तो मैंने उन्हें अगले दिन विधानसभा की प्रेस दीर्घा में मिलने का समय दे दिया.
अगले दिन लक्ष्मण बोलिया मिले…पूरी विनम्रता और सज्जनता से. हां…यह जरूर पूछा कि चीफ सैकेट्री के खिलाफ अगली किश्त में क्या आ रहा है. मुझे बताना पड़ा कि निश्चिंत रहें, मेरी कोई केंपेन नहीं है. एक स्टोरी थी वो लिख दी. अचानक एक दिन सुधेन्दु पटेल ने सूचना दी कि चौथी दुनिया की आर्थिक हालत खराब हो चुकी है. अखबार तीन-चार महीने से लेखकों को भुगतान नहीं कर पा रहा है. वो चाह कर भी मेरा पारिश्रमिक नहीं दिलवा पाएंगे. उन्होंने सहृदयता दिखाते हुए सुझाव दिया कि कमल मोरारका को नोटिस दे दूं, भुगतान हो जाएगा. कोई दस बारह हजार बनते होंगे जो उस समय काफी रकम होती थी. पर मैंने कहा कि मैंने मुरारका के लिए थोड़े ही लिखा था, सुधेन्दु पटेल के लिए लिखा था. अब आप नहीं दिलवा पा रहे हैं तो चलो भूल जाते हैं. खैर सुधेन्दु के साथ रिश्तों में कोई खटास नहीं आई. हां, तीन चार महीने में चौथी दुनिया जरूर बंद दो गया और मेरा एक आसरा भी.
चौथी दुनिया के दरवाजे बंद हो गए लेकिन अपनी फितरत में चिंता शब्द था ही नहीं. पत्रिका के पास जिस गंगवाल पार्क में नौकरी करते हुए कमरा लिया था, तब मकान मालिक ने कहा था पत्रिका में काम करते हो तो बिशनसिंहजी से कहलवा दो. हमने बिशनसिंह शेखावत को बताया तो वह तुरंत हमारी गारंटी लेने को तैयार हो गए. बिशनसिंह शेखावत मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के भाई थे और खुद बहुत बड़े शिक्षक नेता भी थे. उनके नाम पर बाकायदा एक कर्मचारी संगठन चलता था और यहां यह इशारा ही पर्याप्त होगा कि उनके कारण ही भैरोंसिंहजी को जनसंघ का टिकट मिला था. वे नौकरी छोड़कर पत्रिका के लिए स्पेशल कॉरस्पोंडेंट का काम करते थे. हमारे आग्रह पर हमारी सिफारिश करने खुद बिशनसिंहजी पहुंचे. मकान मालिक के लिए यह अकल्पनीय था. वो तो उनके पैर छूने लगा. अपने 6 माह के पोते को गोद में लाकर आशीर्वाद मांगने लगा.
इस घटनाक्रम का कुल मिलाकर यह असर हुआ कि वह किराया समय पर मांगने का दबाव नहीं डालता था और हमने भी उसे कह दिया था कि देरी होने का ब्याज लगा ले. टेंशन खत्म. वो भी खुश और हम भी. इसी तरह निभ गया वो कमरा. कई बार तो ब्याज सहित 6-6 महीने में किराया दिया. वरना आसान नहीं है बिना किराया समय पर चुकाए किराए के कमरे में रहना…(थैंक्स बिशनसिंह जी)…. हो सकता है कि यह स्मृति सिलसिलेवार नहीं हो… उसे सिलसिलेवार रखना मुश्किल भी होता है… पर आप स्वयं मानेंगे कि यह जरूरी स्मृति है…. इसके लिए पाठकों से माफी मांगने के अलावा कोई चारा नहीं है.. वैसे मैंने इस स्मृतिचित्र में मेरे कमरे पर सुहागरात मनाने, जुआ खेलने, ब्लूफिल्म देखने और लड़कियां लेकर आने वाले मित्रों को पापमुक्त कर दिया है…..खैर जाने दो किस्सागोई आगे बढ़े..
एक सुबह राजेन्द्र राज ने मेरी मुलाकात एमआर सिंघवी से करा दी… उन्होंने आनन-फानन में बिना कुछ सोचे मुझे दूरदर्शन के न्यूज सैक्शन से जोड़ दिया… शायद दस बजे मिला था… उन्होंने विधानसभा रिपोर्टिंग का असाइन्मेंट दे दिया… मैं समझ भी नहीं पाया उससे पहले विधानसभा के प्रवेश द्वार पर पीआरओ मेरा पास लेकर खड़ा था (वैरी थैंक्स सिंघवीजी).. ये मेरी फ्रीलांसिंग में नई ऑक्सीजन थी… माने अब मेरी पारी दूरदर्शन से जुड़ गई थी…
… जारी …
लेखक धीरज कुलश्रेष्ठ राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार हैं. धीरज से संपर्क dkjpr1@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.
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