जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार और रंगकर्मी धीरज कुलश्रेष्ठ का निधन

जयपुर : थोड़ी देर पहले ही एक दुखद समाचार मिला है। वरिष्ठ पत्रकार श्री धीरज कुलश्रेष्ठ का आज शाम को जयपुर के महात्मा गांधी अस्पताल में निधन हो गया। श्री कुलश्रेष्ठ ऐसे पहले पत्रकार रहे है, जब आजादी के बाद समाचार को लेकर गिरफ्तार किए गए थे। उनको जेल भी भेजा गया था। धीरज के निधन पर भड़ास के संपादक यशवंत ने एफबी पर ये लिखा- ”कभी मिला तो नहीं लेकिन उनके लिखे का कायल रहा। किसी को बख्शते नहीं थे। भड़ास पर खूब लिखे। ईमानदार पत्रकार होने के कारण नौकरियां छूटती रहीं। कल खबर आई, दुनिया भी छोड़ गए वो। बहुत याद आओगे Dhiraj Kulshreshtha भाई। राजस्थान की पत्रकारिता के शान थे आप। श्रद्धांजलि।”

टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकों ने तो शर्म भी बेच दी

Dhiraj Kulshreshtha : आज टाइम्स ऑफ इंडिया में संपादकीय पेज पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का लीड आर्टिकल छपा है…..यह आर्टिकल अखबार और राजनेता दोनों की गिरावट का बेहतरीन नमूना है… ‘अ रिवोल्यूशन इन सब्सिडीज’ यानि आर्थिक सहायता में क्रांति…के हैडिंग से छपा यह लीड आलेख सरकार के विभिन्न विभागों की संयुक्त सालाना रिपोर्ट से ज्यादा कुछ नहीं है…जिसे वसुंधरा राजे नहीं बल्कि नौकरशाह तैयार करते हैं, और जनसंपर्क विभाग विज्ञप्ति के रूप में जारी करता है….पर बहुप्रतिष्ठित अखबार के संपादकजी क्या कर रहे हैं…अगर सेटिंग (मार्केटिंग) के तहत इस विज्ञप्ति को छापना ही था, तो अखबार के किसी भी पेज पर छाप सकते थे।

सुधर भी जाओ हिंदी के संपादकों….

Dhiraj Kulshreshtha : घटिया तो हमेशा बाजार से अपने आप बाहर होते आए हैं… पत्रकार सब बनना चाहते हैं,कुछ ने तो पैसे लेकर पत्रकार बनाने की दुकानें भी खोल लीं हैं….पैसे देकर आईडी ले जाओ…मौहल्ले में रोब गांठो…घर के बाहर बोर्ड लगा लो। अच्छी रिपोर्ट सबको चाहिए…पर पैसे कोई नहीं खर्च करना चाहता….स्वनामधन्य बड़े प्रकाशनों का भी हाल बेहाल है…पिछले बीस साल में अखबार एक रुपए से बढ़कर तीन रुपए का हो गया…विज्ञापन की रेट दस गुनी बढ़ गई….

राजस्थान में फ्रीलांस अधिस्वीकृत पत्रकार अब विधानसभा की प्रेस दीर्घा में नहीं बैठ सकेंगे

: हालात इमरजेंसी से बदतर हैं… बांधे जा रहे हैं मीडिया के पांव : मोदी और केजरीवाल सरकारों पर तो मीडिया पर अंकुश लगाने के आरोप अब लग रहे हैं… लेकिन राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने तो आते ही सचिवालय में सीएमओ में पत्रकारों का प्रवेश सीमित कर दिया था… फिर सचिवालय में कैमरा ले जाने पर पूरी तरह रोक लगा दी… अब फ्रीलांस अधिस्वीकृत पत्रकारों के पास बनाने भी बंद कर दिए हैं…. इसी तरह फ्रीलांस अधिस्वीकृत पत्रकार अब विधानसभा की प्रेस दीर्घा में नहीं बैठ सकेंगे…

सुधेंदु पटेल का सुझाव- कमल मोरारका को नोटिस भेज दो, भुगतान हो जाएगा

: ( मीडिया की मंडी में हम-4 ) : यह 1989-90 की राजनीतिक उठापटक का दौर था. दिल्ली में वीपी सिंह प्रधानमंत्री बन गए थे. चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय चुनाव जीतकर सांसद बन गए थे. उन्होंने संपादक पद छोड़ दिया था. चंचल, रामकृपाल और नकवी भी चौथी दुनिया से विदा ले चुके थे. तेजी से बदलते इस घटनाक्रम में सुधेन्दु पटेल चौथी दुनिया के संपादक बन गए. वे जयपुर से दिल्ली साप्ताहिक अपडाउन करते. उनके स्नेह और आग्रह पर चौथी दुनिया से जुड़ गया. बतौर फ्रीलांसर सुधेन्दु ने मुझे खूब छापा और सम्मानजनक तरीके से छापा. बनारसी मिजाज के सुधेन्दु पटेल ने उसी मिजाज का होली अंक प्लान किया. मैंने और कृष्ण कल्कि ने पर्याप्त योगदान दिया. काफी हंगामेदार था चौथी दुनिया का वो होली अंक.

फ्रीलांसिंग का वो जमाना : दिन कॉफी हाउस में कटता, शाम रवीन्द्र मंच पर

: : ( मीडिया की मंडी में हम-3 ) : : पिता ने जब कहा कि मुझे पत्र भी नहीं लिखते हो तो अचानक बोल पड़ा- अब फ्रीलांसिंग करता हूं, इसलिए फ्री में कुछ नहीं लिखता, पत्र भी नहीं :

उन दिनों पत्रिका को टक्कर देने के लिए नवभारत टाइम्स का जयपुर एडीशन शुरू हो चुका था। प्रसार में चुनौती तो नहीं दे पाया पर गुणवत्ता की चुनौती जरूर दे रहा था। दीनानाथ मिश्र उसके पहले संपादक थे। उन्होंने प्रतिभाशाली युवा पत्रकारों की अच्छी टीम चुनी थी। थोड़े दिन बाद जनसत्ता से श्याम आचार्य को बुलाकर संपादक बना दिया था। नवभारत के ताजा कलेवर और तेवर का जबाव देने के लिए पत्रिका ने फीचर पेज शुरू करने की तैयारी की और यह जिम्मेदारी फीचर संपादक दुर्गाशंकर त्रिवेदी को सौंप दी। इस पर त्रिवेदीजी ने अतिरिक्त स्टाफ की मांग की तो कैलाश मिश्रा ने कह दिया कि किसी को भी ले लो। त्रिवेदीजी ने मेरी ओर इशारा किया तो कैलाशजी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं रविवारीय में जाना पसंद करूंगा।

मैंने पत्रकारिता का असली पाठ ‘राजस्थान पत्रिका’ में सीखा

: ( गतांक के आगे ) : सुशील झालानी ने मुझे अरुणप्रभा के भरतपुर संस्करण का संपादक बना दिया पर अखबार निकालने का पहला पाठ सिखाया बलवंत तक्षक ने। बलवंत उस समय अलवर संस्करण के संपादक थे। एक दिन के लिए भरतपुर आकर उन्होंने मुझे अखबार निकालने की ए, बी, सी, डी सिखाई। इस तरह पत्रकारिता में बलवंत तक्षक मेरे पहले गुरु बने। अखबार शुरू होने के कुछ समय बाद ही लोकसभा के चुनावों की घोषणा हो गई।