Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

मीडिया ने बसपा और मायावती जैसी कद्दावर ताकत को चुनावी लड़ाई से बाहर कर दिया!

Ashwini Kumar Srivastava : अद्भुत है मीडिया और उसमें काम कर रहे तथाकथित पत्रकार। वरना बसपा और मायावती जैसी कद्दावर ताकत को ही इस बार के चुनाव में लड़ाई से बाहर कैसे कर देता! वैसे मुझे तो इसका कोई आश्चर्य नहीं है। क्योंकि एक दशक से भी ज्यादा वक्त तक दिल्ली और लखनऊ में देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थानों में बतौर पत्रकार नौकरी करने के बाद मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि ख़बरें और सर्वे कैसे बनाये-बिगाड़े जाते हैं। इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण भी मैं अपने ही निजी अनुभव से आगे बताऊंगा। लेकिन सबसे पहले बात बसपा और मायावती की करते हैं।

मेरा ही नहीं, प्रदेश के तमाम ऐसे लोगों का मानना है कि इस बार चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष है और बसपा की सरकार आने की सम्भावना भी उतनी ही प्रबल है, जितनी मीडिया बाकियों की बता रहा है। मैंने खुद लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के कई जिलों में ढेरों लोगों से राजनीतिक चर्चा में इस बात को महसूस किया है। मीडिया तो अपने सर्वे और ख़बरों के जरिये ऐसी हवा बना रहा है, मानों लड़ाई सिर्फ सपा-कांग्रेस गठबंधन और भाजपा के बीच है। मायावती को तो मीडिया चर्चा के ही काबिल नहीं समझ रहा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सचमुच बेहद शर्मनाक ही कही जायेगी ऐसी पत्रकारिता, जिसमें किसी पत्रकार या संपादक की निजी राय ही खबर या सर्वे बनाकर जनता को पेश किया जाता हो। पत्रकार और मीडिया का काम बिना किसी भेदभाव और लागलपेट के कड़ी से कड़ी आलोचना करना है और उतने ही मुक्त भाव से प्रशंसा भी करना है। सरकार बनाने के लिए पत्रकारों और संपादकों को भी हर भारतीय की तरह वोट की ताकत मिली ही है।

अगर मायावती या बसपा नहीं पसंद तो अपना वोट मत दीजिये उन्हें लेकिन यह क्या तरीका है कि आप अपने जमीर-पेशे को बेचकर फर्जी ख़बरों, फर्जी सर्वे और लेखों के जरिये अपनी राय ही जबरन थोप कर बाकी के वोटरों का भी मन बदलने का कुत्सित और घृणित प्रयास कर रहे हैं?

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैंने मीडिया में अपनी पूरी नौकरी के दौरान इस बात का हमेशा ख्याल रखा कि खबर और सर्वे गढ़ना मेरा काम नहीं है। मैं सिर्फ डाकिया हूँ, जो समाज और देश में घट रहे पल पल के घटनाक्रम को मीडिया के जरिये देश और दुनिया तक पहुंचाने की ड्यूटी कर रहा है। मेरी निजी राय कुछ भी रही हो और मैं किसी भी पार्टी या नेता को वोट देता रहा हूँ लेकिन मैंने अपना वह पक्षपात कभी मीडिया की नौकरी में नहीं घुसेड़ा।

अब मैं वह अनुभव बताता हूँ, जिसके बाद मीडिया आखिर है क्या, मुझे इस सच्चाई का अंदाजा बखूबी हो गया था। मैंने अपना पत्रकारीय करियर टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह में ट्रेनी पत्रकार के तौर पर 2002 में शुरू किया था। उस वक्त मीडिया में हर कहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी के ही मुरीद बैठे थे। फिर आया 2004 में चुनाव का वक्त और प्रमोद महाजन का इंडिया शाइनिंग लेकर मीडिया ने चापलूसी और पक्षपात के रोज नए अध्याय लिखने शुरू कर दिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उसी वक्त वाजपेयी जी लाहौर यात्रा पर गए तो साथ ही में हमारे संपादक भी (नाम नहीं लिखूंगा) लाहौर गए।

तब तक महज दो साल में मैं अपने अखबार में अपनी जगह अपने काम से बना चुका था और अखबार का पहला पन्ना तथा उसकी मुख्य खबर यानी लीड, फ्लायर, एंकर, टॉप बॉटम आदि ज्यादातर मुझसे ही एडिट करवाई या एजेंसी आदि की मदद से लिखवाई जाती थी। मैं खुद भी बराबर बिज़नेस आदि रिपोर्टिंग करके पेज वन पर एंकर या किसी न किसी रूप में बाइलाइन लेता रहता था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बहरहाल, संपादक जी ने टाइम्स समूह के निर्देश पर लाहौर से ही एक स्टोरी की, जिसके लिए मुझे कार्यवाहक संपादक ने अपने केबिन में बुलाया। उन्होंने कहा कि अश्विनी यह स्टोरी बहुत ख़ास है और मालिक लोगों के निर्देश पर की गयी है। इसमें कुछ कटेगा या जुड़ेगा नहीं, इसे सिर्फ आप पढ़ लीजिये। पेज वन पर आज कोई और खबर जाए न जाए लेकिन यह जरूर जाएगा।

खैर, मैंने उसे पढ़ा और हतप्रभ रह गया। उसमें अटल जी की प्रशंसा के अलावा कुछ नहीं था। और, उसमें कई जगह यह लिखा गया था कि अटल जी का कद और लोकप्रियता अब दुनिया में इस कदर बढ़ चुकी है कि भारत में आने वाले लोकसभा चुनाव क्या, अटल जी अगर पाकिस्तान में भी किसी सीट से खड़े हो जाएंगे तो जीत जाएंगे। यह कोई मजाक नहीं था बल्कि बहुत गंभीरता से बाकायदा हिंदुस्तानी-पाकिस्तानी नेताओं-जनता के कोट के साथ लिखा गया था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अटल जी को गांधी जैसा विश्वव्यापी व्यक्तित्व बनाने के चक्कर में वह लेख पेज वन पर तो आधे से ज्यादा जगह पर काबिज हो गया बल्कि अंदर भी एक पेज पर उसके शेष भाग ने जगह घेर ली। मैं तो उस वक्त पद और अनुभव में किसी हैसियत में ही नहीं था कि उस लेख पर कोई टीका टिप्पणी भी कर पाता। इसी वजह से मैंने नौकरी धर्म का पालन करते हुए अटल जी की ही महानता पर आधारित एक शीर्षक लगाकर उसको अपने बॉस के पास भेज दिया।

अगले दिन जब लेख छपा तो हमारे ही अखबार के एक वरिष्ठ पत्रकार, जो अब कांग्रेस के बड़े नेता हैं और उन दिनों 10 जनपथ कवर करते थे, उन्होंने आकर बता दिया कि मैडम यानी सोनिया जी इस लेख से बहुत नाराज हैं। लेकिन अटल प्रेम में अंधे हो चुके टाइम्स समूह के मालिकों और पत्रकारों ने उनकी बात पर कान नहीं धरा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उसके बाद चुनाव में जब नतीजे आने लगे और भाजपा का इंडिया शाइनिंग धूल फांकने लगा…. विश्वव्यापी नेता अटल विहारी वाजपेयी भारत में ही सर्वमान्य नेता नहीं रह गए तो अचानक टाइम्स समूह में हड़कंप मच गया। फिर जैसा कि मुझे वहां रहकर सुनने को मिला कि वही पत्रकार महोदय, जो सोनिया की नाराजगी की खबर लाये थे, उनकी लल्लो चप्पो होने लगी कि किसी तरह मैडम से क्षमा हासिल हो जाए। क्षमा कैसे मिली और कब मिली, ये तो मुझे नहीं पता चला लेकिन नतीजों के आने वाली रात ही उन्हीं सम्पादक ने उतना ही बड़ा-लंबा चौड़ा लेख लिखा, जिसमें राहुल को भारत ही नहीं, दुनिया को राह दिखाने वाला युवा नेता बताया गया। और मुझे ही बुलाकर उसे जब सौंपा गया, तो उस लेख में मैंने भी पूरे श्रद्धा भाव से शीर्षक लगाया ‘राह दिखाएँ राहुल’…

अब यह बात मत पूछियेगा कि राहुल जब 2004 में ही राह दिखा रहे थे तो आज खुद किसी मंजिल तक क्यों नहीं पहुँच पाये। आप तो बस यह देखिये कि मीडिया की खबर, लेख और सर्वे कैसे तैयार होते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जल्द ही मैं आपको अपनी अगली किसी पोस्ट में अपना एक ऐसा अनुभव भी बताऊंगा, जिससे पता चल जाएगा कि हर पार्टी या नेता के खिलाफ बिना किसी भेदभाव या लागलपेट के आलोचना या प्रशंसा करना कभी कभी कितना खतरनाक होता है।

आज जिन मायावती के समर्थन में मैंने मीडिया पर सवाल खड़े किये हैं, यही मायावती जी ने एक दिन मेरी वजह से हिंदुस्तान टाइम्स समूह के ऊपर 250 करोड़ की मानहानि का न सिर्फ मुकदमा ठोंक दिया था बल्कि मेरे समेत चार पत्रकारों को तुरंत बर्खास्त करने की मांग पर भी अड़ गयीं थीं। यह पूरा किस्सा भी मैं विस्तार से जल्द ही लिखूंगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लखनऊ के पत्रकार और उद्यमी अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement