Deepali Tayday : जिस देश में सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए निहायती मानवीय ज़रूरत अदद टॉयलेट्स तक अवेलेबल नहीं हो पाते, जबकि हर कुछ दूरी में लड़कों के लिए ऐसी व्यवस्था है, नहीं भी है तो भी यूरिन करने के लिए पूरा जहान खुला है। महिलाएँ इसी डर में बाहर जाने पर पानी नहीं पीती और कितनी तरह की प्रॉब्लम्स झेलती हैं। हाँ, यहाँ हर गली, नुक्कड़-चौराहों पर मंदिर जरूर मिल जाएंगे। इंसानों की क़ीमत नहीं, पत्थरों की जरूर है। ऐसे देश में सैनेटरी नैपकिन को लक्ज़री मानने और 18% टैक्स लगाने पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हो रहा।
पीरिड्स, उससे जुड़ी ज़रूरतें, हाइजिन कहाँ उन्हें समस्या लगेंगी। महिलाओं का स्वास्थ्य यहाँ पर कब चिंता का विषय रहा है। पहले सिर्फ़ देह थी, बच्चा पैदा करने की मशीन थीं, हाइजीन की बात ही छोड़िये और अधिकारों का तो नाम भी मत ले लेना।ब्राह्मणवाद इतने मेन्युट लेवल पर काम करता है कि आसानी से समझ नहीं आता। तुम वहीं पहुँच रही हो जहाँ से शुरू हुआ था। मनुस्मृति के हिसाब से जो औक़ात मनु ने तय की है वहीं धकेली जाओगी। देह हो, सिर्फ़ देह में बँधी रहो। सिंदूर और श्रृंगार है तुम्हारे लिए, पूजा का सामान सस्ता कर दिया है तुम्हारे लिए……..हाँ माहवारी का नाम मत लेना, वो खून चलता नहीं है भगवान की पूजा में। तो जो पेड यूज़ कर रहीं हैं वो लक्ज़री ही है, सब महिलाएँ इतनी रईस हैं कि आसानी से ख़रीद सकती हैं। नहीं भी ख़रीद सको तो जाओ भाड़ में हमें क्या…
थोड़ा सा इमेजिन करके देखो किन हालातों में , किस तरह से और कितनी मुश्किल में कौन लोग तुम्हारी पढ़ाई, समानता और सभी अधिकारों के लिए लड़े होंगे। फुले आई-बाबा और बाबासाहेब की वजह से आज फ़ेसबुक बोल पा रही हो। खूब रंग रही हो दीवार विरोध में। तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई से लेकर ये क्रांति और फेमिनिज्म का झंडा ऊठाने में ये ज़ेहन में आए ही नहीं होंगे। यह सिर्फ टैक्स लग रहा है तो भोलापन है आपका…
फेसबुक की चर्चित लेखिका दीपाली की वॉल से.