मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी, क्यों न दिल्ली स्थित मध्य प्रदेश सूचना भवन केंद्र को बंद कर दिया जाए। इसके चालू रहने से लाभ भी क्या है? न यहां कोई सुनने वाला है, न देखने वाला। सभी आंख, नाक, कान बंद कर बैठे हैं। सुविधाओं का दोहन पूरा है, यहां तक कि पत्रकारों का अधिकार भी मारकर खा जाते हैं लेकिन जिस मकसद से यह केंद्र स्थापित किया गया, वह कहीं से पूरा नहीं करते।
न तो यहां से कोई खबर मिलती है, न ही किसी को इस बात से सरोकार है कि मध्य प्रदेश को राष्ट्रीय अखबारों में कितना स्थान मिल रहा है। अभी हाल ही में शिवराज सिंह ने ट्वीट किया कि अब मध्य प्रदेश, पहले के मुकाबले काफी ज्यादा बिजली पैदा कर रहा है, और दिल्ली में कहीं भी इस खबर का क भी नहीं छपा, या दिखाया गया।
कारण यह है कि यह केंद्र अनुभवहीन, नकारा लोगों के हाथों में चल रहा है, जिन्हें किसी से हाथ मिलाने में भी शायद कष्ट होता है। ठंडापन इतना कि यहां आने वालों को चाय तक का पूछना गवारा नहीं होता, जो कि न्यूनतम शिष्टता होती है। इन्हीं कारणों से आमतौर पर यहां पत्रकार आते ही नहीं है और यदि भूलेभटके कोई खबर के लिए पहुंच भी जाए, तो यहां के अफसरों की अज्ञानता देखकर सिर पीटता हुआ बाहर निकलता है। यहां तक कि केंद्र के अधिकारी, कर्मचारियों को टेलीफोन कॉल उठाने में भी अपार कष्ट होता है। इन अफसरों की जिम्मेदारी है कि पत्रकारों की खबर संबंधी समस्या कम करें, लेकिन ये उसे जितना उलझा सकते हैं, उलझाते हैं। और यह सब जानबूझकर किया जाता है क्योंकि चरित्र ही ऐसा है। इन्हें मूल नियमों की भी जानकारी नहीं है।
पहले इस केंद्र में संयुक्त संचालक स्तर के अधिकारी पदस्थ किए जाते रहे हैं। कुछ महीनों पूर्व तक सुरेंद्र द्विवेदी, प्रदीप भाटिया जैसे शानदार अफसर यहां पदस्थ रहे और सब कुछ बेहतर चलता रहा। उन्होंने अपनी भूमिका से पूरा न्याय किया। नेकिन अब यहां कमान उप संचालक स्तर के छोटे कर्मचारियों के हाथ में दे दी गई है। हालांकि यह सही है कि भोपाल से अफसर दिल्ली आना नहीं चाहते, और इसी का लाभ उप संचालक स्तर के छोटे कर्मचारी उठा रहे हैं, जो दिल्ली किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते। कुछ समय पूर्व, ग्वालियर तबादला भी हुआ था, लेकिन जोड़-तोड़ कर फिर दिल्ली में जम गए।
सरकार ने एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ अफसर को यहां पदस्थ जरूर किया है, लेकिन उन्हें भी दोयम दर्जे का बना दिया गया है। कनिष्ठ अफसर, सुविधा का पूरा दोहन कर रहे हैं और वरिष्ठ को किनारे कर रखा है। लेकिन जिस मकसद से केंद्र यहां स्थापित किया गया है, उसका थोड़ा भी मकसद यहां पूरा नहीं हो रहा है। केंद्र के पास बेहतरीन लाइब्रेरी है, लेकिन उसकी चाबी का ही पता नहीं है। कभी भी इसमें रखी शानदार पुस्तकों का उपयोग नहीं किया जाता। शायद ही यहां से कोई प्रेस नोट जारी होता है या पत्रकारों को सीएम, दीगर राजनेताओं के कार्यक्रम की जानकारी दी जाती है।
मध्य प्रदेश में भले ही लंबे समय से बीजेपी की सरकार हो, लेकिन यहां कांग्रेस शासनकाल में नौकरी पाए कर्मचारी आज भी बीजेपी की आलोचना और कांग्रेस और इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री का गुणगान करने से नहीं चूकते। यदि करोड़ों खर्च करने के बाद भी नतीजा शून्य है, तो क्यों न मुख्यमंत्री जी इस पर ताला डाल दिया जाए।
भोपाल से वाईजे की रिपोर्ट.
Comments on “शिवराज जी, दिल्ली के मध्य प्रदेश सूचना केंद्र पर ताला क्यों नहीं डाल देते?”
बिलकुल सही बात है। मध्य प्रदेश सूचना केंद्र का होना या न होना, दोनों बराबर हैं। यहां कोई जानकारी नहीं मिलती। पूरा विभाग नकारा लोगों से भरा पड़ा है।
किसी काम का नहीं है, यह सूचना केंद्र। मैं दिल्ली के स्थानीय मीडिया मे मध्य प्रदेश बीट देखता हूं और एक दिन यहां खबर के लिए पहुंच गया लेकिन वाकई हालात काफी खराब दिखे। कोई हल निकालना होगा।
यह आर्टिकल काफी देर से प्रकाशित किया गया है। यह तो काफी पहले ही हो जाना चाहिए था। सूचना केंद्र को पूरी तरह से बंद करना ही उचित है, जिस पर करोड़ों रूपए फूंके जा रहे हैं, केवल कुछ लोगों के ऐशो आराम के लिए। पत्रकारों के नाम पर धंधा चल रहा है, अफसर कमा रहे हैं, और पत्रकारों को मध्य प्रदेस से जुड़ी कोई खबर नहीं मिल रही है।
अरे, मध्य प्रदेश का कोई सूचना केंद्र भी है दिल्ली में। क्या होता है वहां। क्या कोई बताएगा।