Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

नेपाल भूकंप कवरेज : फुटेज दूसरों की और दावा एक्सक्लूसिव का

 

Sushil Upadhyay : नेपाल के भूकंप से दक्षिण एशिया अैर हिमालयी क्षेत्र में एक बार फिर गहरी चिंता का भाव पैदा हुआ है। भूकंप के बाद से मीडिया, खासतौर हिंदी टीवी चैनल जो कुछ और जिस अंदाज में परोस रहे हैं, उससे आम लोगों की चिंता में लगातार इजाफा हुआ है। तमाम बड़े, नामी और प्रसिद्ध चैनलों पर खबरों और भूकंप-विश्लेषण का एक खास पैटर्न नजर आ रहा है। इस पैटर्न की तुलना बड़ी आसानी से किसी फिल्म के साथ की जा सकती है। हरेक बुलेटिन या विश्लेषण में एक्टिंग, बैकब्राउंड म्यूजिक, प्रायोजक, स्टेज, ड्रामा और वर्चुअल एक्शन तक नजर आ रहा है। इन दिनों बुलेटिनों के साथ जो पार्श्व-संगीत सुनाई पड़ रहा है, वह पश्चिम की दुखांत फिल्मों से उठाया गया है।

 

Sushil Upadhyay : नेपाल के भूकंप से दक्षिण एशिया अैर हिमालयी क्षेत्र में एक बार फिर गहरी चिंता का भाव पैदा हुआ है। भूकंप के बाद से मीडिया, खासतौर हिंदी टीवी चैनल जो कुछ और जिस अंदाज में परोस रहे हैं, उससे आम लोगों की चिंता में लगातार इजाफा हुआ है। तमाम बड़े, नामी और प्रसिद्ध चैनलों पर खबरों और भूकंप-विश्लेषण का एक खास पैटर्न नजर आ रहा है। इस पैटर्न की तुलना बड़ी आसानी से किसी फिल्म के साथ की जा सकती है। हरेक बुलेटिन या विश्लेषण में एक्टिंग, बैकब्राउंड म्यूजिक, प्रायोजक, स्टेज, ड्रामा और वर्चुअल एक्शन तक नजर आ रहा है। इन दिनों बुलेटिनों के साथ जो पार्श्व-संगीत सुनाई पड़ रहा है, वह पश्चिम की दुखांत फिल्मों से उठाया गया है।

मोटे तौर पर खबरिया चैनलों का मकसद लोगों को सूचित करना, जागरूक करना, परिस्थति का सामना करने लायक समझ पैदा करना ही होता है और होना भी चाहिए, लेकिन नेपाल भूकंप के मामले में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। दो साल पहले जिस प्रकार उत्तराखंड आपदा में चैनलों ने लापरवाही और नाॅन-प्रोफेशनलिज्म दिखाई थी, इस बार भी वह प्रायः ज्यों की त्यों दिख रही है। भूकंप के दो घंटे बाद तक भी हिंदी के स्वनामधन्य टीवी चैनल ‘आज तक’, एबीपी न्यूज, एनडीटीवी आदि राॅयटर के हवाले से खबर दे रहे थे। इन चैनलों पर पहली फुटेज भी नेपाल के माउंटेन चैनल के सौजन्य से दिखाई गई। हद तो यह हो गई कि इंडिया न्यूज नाम का चैनल असम के नौगांव में भूकंप के झटके की खबर राॅयटर के हवाले दे रहा था। अब सवाल ये है कि एक-दूसरे तेज होने, सबसे पहले खबर देने, एक्सक्लूसिव खबर लाने का दावा कर रहे चैनलों को यदि नेपाल जैसे पड़ोसी और भारत के भीतर की खबरें भी विदेशी एजेंसियों के हवाले से देनी पड़ रही है तो फिर टीवी ब्राॅडकास्टिंग में इनकी अपनी हैसियत क्या है ?

Advertisement. Scroll to continue reading.

हिंदी टीवी चैनल, उनके प्रस्तोता और बुलेटिन निर्माता हमेशा ही ऐसी तेजी में होते कि तथ्य खुद-ब-खुद चैनलों की चुगली करने लगते हैं। 25 अप्रैल को दोपहर दो बजे के बुलेटिनों में कई चैनल जब वायुसेना के हरक्यूलिस को नेपाल रवाना होते दिखा रहे थे, ठीक उसी वक्त केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु नेपाल में एनडीआरएफ को भेजने की बात कह रहे थे। इस विरोधाभास से साफ है कि चैनलों ने हरक्यूलिस की रवानगी की पुरानी फुटेज दिखाई।

रात नौ बजे के बुलेटिन में ”आज तक“ पर एंकर दहाड़ रहा था कि ऐसा जलजला अब तक नहीं देखा। लेकिन, ये सब बताते वक्त वह भूल गया कि इसी स्तर के और इससे भी बड़े पांच भूकंप नेपाल की धरती पर पूर्व में रिकार्ड हो चुके हैं। ये चैनल दावा कर रहा था कि सबसे पहले ”आज तक“ मौके पर रिपोर्टिंग के लिए पहुंचा है। जबकि, दुनिया भर के चैनलों पर इससे पहले ही भूकंप की फुटेज और कवरेज दिखाई जा रही थी। या तो पुरानी फुटेज थी या ”आज तक“ दावा सच था!

Advertisement. Scroll to continue reading.

चैनलों पर मौतों की संख्या को लेकर अजीब-सी भगदड़ मची थी। निजी चैनलों में एनडीटीवी-हिंदी को अपवाद मान लें तो ज्यादातर चैनल मौतों की संख्या को इस तरह प्रस्तुत कर रहे थे, जैसे लोकसभा चुनाव परिणाम में सीटों की संख्या बता रहे हों।  रात साढ़े नौ बजे तक एबीपी न्यूज और ”आज तक“ ने मरने वालों की संख्या 1457 पहुंचा दी, इंडिया टीवी 1500 लोगों के मारे जाने की बात कह रहा था, जबकि दूरदर्शन और एनडीटीवी इस संख्या को 876 बता रहे थे। यह सभी को पता है कि ऐसे हादसे मे मृतकों की संख्या की कोई अंतिम पुष्टि कभी नहीं हो पाती। ज्यादातर संख्या अनुमान पर आधारित होती हैं। यहां ध्यान देने वाली बात टीवी चैनलों का वो आकर्षण है जो मौतों के बढ़ते आंकड़े के साथ जुड़ा है। ये स्थिति चिंताजनक है।

हिंदी टीवी चैनल इस पूरे हादसे को लेकर कितने संवदेनशील हैं, इसका अनुमान भूकंप की खबरों के साथ प्रसारित होने वाले विज्ञापनों को देखकर लगाया जा सकता है। कई चैनलों पर जिस वक्त हादसे की फुटेज दिखाई जा रही थी, उसी वक्त उनके नीचे की पट्टी में रूपा फ्रंटलाइन के विज्ञापन में लिखा आ रहा था-ये आराम का मामला है। एक ओर एबीपी न्यूज पर भूकंप की विनाशलाला टाइटल के साथ खबरें चल रही और दूसरी ओर गोविंदा पान-ए-शाही विज्ञापन के जरिये लोगों को आकर्षित कर रहे थे। क्या इन विज्ञापनों को किसी दूसरे कार्यक्रम के साथ शिफ्ट करना संभव नहीं था?

Advertisement. Scroll to continue reading.

निजी चैनल पुराने दिनों की तरह अंतहीन दौड़ का हिस्सा बने हुए थे, वहीं सरकारपोषित चैललों की काहिली अपनी जगह कायम थी। दूरदर्शन पर ज्यादातर सरकारी सूचनाएं ही प्रसारित हो रही थी, दूरदर्शन का फोकस प्रधानमंत्री और भारत सरकार की गतिविधियों पर था न कि नेपाल के भीतर के हालात पर। लोकसभा टीवी ने तो हद ही कर दी। जब, तमाम चैनल भूंकप पर फोकस कर रहे थे, लोकसभा टीवी के कर्ताधर्ता शनिवार को रात नौ बजे दिखाई जाने वाली फिल्म परोसकर गायब हो गए। आमतौर से सरकारी चैनल अपनी निर्धारित सीमाओं से आगे नहीं जाते, भले ही दर्शकों को खबर मिले या न मिले अथवा समय के बाद मिले। अलबत्ता, राज्यसभा टीवी ने रात के कार्यक्रमों में भूकंप को जगह दी।

दो साल पहले एक शोधपत्र के लिए मैंने उत्तराखंड आपदा के मामले में हिंदी टीवी चैनलों की कवरेज को ध्यान से देखा था। मुझे आश्चर्य हुआ कि इस बार की कवेरज की शब्दावली, कार्यक्रमों के नाम, एक्सपट्र्स की सूची में ज्यादा अंतर नहीं था। पिछली बार की तरह इस बार भी-चमत्कार, जाको राखे साइंया, बाबा की कृपा, भोले का कहर, यूं बचाया भगवान ने, जैसे जुमलों, शब्दों, कथनों की भरमार थी। पहले दिन की कवरेज में चैनलों ने धार्मिक एंगल पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन दूसरा दिन होते-होते धार्मिक पहलू उभर आया। 26 अप्रैल को न्यूज24 ग्राउंड-जीरो से एक्सक्लूसिव परोसते-परोसते इस बात पर आ गया कि पशुपतिनाथ मंदिर सुरक्षित कैसे बचा। चैनल ने बताया कि बाबा की कृपा से बचा। कमाल है, बाबा को केवल मंदिर की चिंता थी, उन हजारों लोगों की नहीं, जिनके परिजनों की जान चली गई है या जिनका सब-कुछ लुट पिट गया है। रात नौ और दस बजे के बुलेटिनों में एबीपी न्यूज और एनडीटीवी पर पशुपति नाथ मंदिर के सुरक्षित रहने की बात को पुरजोर ढंग से उठाया गया। इंडिया न्यूज ने दूसरों पर बढ़त के चक्कर में एकदम अनूठी स्टोरी गढ़ दी कि केदारनाथ ने बचाया पशुपति नाथ को!

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस मौके पर कई चैनल मोदी के प्रति अपनी निष्ठा का प्रदर्शन करने से भी नहीं चूके। न्यूज24 ने 25 अप्रैल की कवरेज में हेडिंग दिया-नेपाल के रक्षक मोदी। इंडिया न्यूज भी यह बताने में नहीं चूका कि नरेंद्र मोदी की पशुपति नाथ के साथ कितनी आस्था है। तथ्यों के साथ भी मनमानी हुई। 25 अप्रैल को रात नौ बजे के बुलेटिन में एबीपी न्यूज ने मीरा पीक को नेपाल की सबसे ऊंची चोटी बताया। पता नहीं, माउंट एवरेस्ट कहां है ? ”आज तक“ ने हिमालय को सिस्मिक जोन-4 में बता दिया, जबकि यह सबसे खतरनाक जोन-5 में है।

26 अप्रैल की कवरेज में चैनलों ने इस बात पर खासा जोर लगाया कि किस प्रकार दूसरों से बेहतर हैं। एबीपी न्यूज ने सबसे बड़ी कवरेज का दावा किया। मोतिहारी, बिहार से रिपोर्ट कर रहे इस चैनल के रिपोर्टर अंकित गुप्ता ने बताया कि गांवों के लोग दो दिन से घरों के बाहर हैं। फुटेज देखने से साफ पता चल रहा था कि ग्रामीणों को जबरन इकट्ठा किया गया है। टीवी18 नेटवर्क ने नेपाल में सबसे बड़ी टीम भेजने का दावा परोसा और ”आज तक“ भी ऐसे ही दावे का शिकार हो गया। सारे चैनल ग्राउंड जीरो पर होने का दावा कर रहे थे, लेकिन वे भूल गए कि काठमांडू 9/11 की तरह सपाट जमीन में तब्दील नहीं हुआ है। यहां ग्राउंड पर बहुत कुछ खड़ा हुआ है, इसलिए ये ग्राउंड जीरो तो नहीं ही है!

Advertisement. Scroll to continue reading.

न्यज24 ने तो ये तक बता दिया-नेपाल में हजारों लोग मौत के मुंह में समा चुके हैं। चैनल ने दर्शकों पर छोड़ दिया कि वे चाहे तो इस संख्या को ढाई हजार मान लें या 99 हजार! ”आज तक“ के प्राइम टाइम बुलेटिनों में अंजना ओम कश्यप हास्यास्पद होने की हद तक नाटकीय दिख रही थीं। एक्सपट्र्स से वे ऐसे अंदाज में सवाल पूछ रही थीं, जैसे घर के भीतर सास-बहु टाइप बातें हो रही हों। मसलन, बार-बार कांप रही है धरती, मगर क्यूं ? ज्यादातर बातों का वे खुद ही जवाब भी दे रही थीं। कई चैनलों पर बुलेटिनों के टाइटल विशेषणों से बोझिल थे। ”आज तक“ ने कहा-नेपाल में धरती का गुस्सा! ये चैनल भूकंप को महातबाही और महाभूकंप भी बताता रहा। जैसे, ‘महा‘ लगाए बिना पूरी घटना ठीक से समझ नहीं आएगी। इसी चैनल ने एक और चिंताजनक प्रयोग किया-कांठमांडु का कब्रगाह! ठसी दौरान आईबीएन7 गुहार लगा रहा था-अब थम जाओ भूकंप!

26 अप्रैल की रात के बुलेटिनों में चैनलों ने अफवाहों को मोहरा बना लिया। इंडिया न्यूज तथाकथित उलटा चांद दिखाता रहा। इसे अफवाह भी बताता रहा और कथाकथित उलटे चांद को स्क्रीन से ओझल भी नहीं होने दिया। एबीपी न्यूज ने भी ठीक यही किया। जो बातें अफवाहों में हैं, उन्हें बार-बार दोहराया गया और साथ ही उपदेश भी दिया गया कि अफवाहों पर ध्यान न दें। अफवाहों के साथ-साथ चैनल ऐसे लोगों को ढूंढते रहे जो वैज्ञानिक हों, लेकिन भविष्यवाणी करने को तैयार हों।

Advertisement. Scroll to continue reading.

…जारी…

लेखक सुशील उपाध्याय पत्रकार रहे हैं. इन दिनों अध्यापन के कार्य से जुड़े हुए हैं और हरिद्वार में पदस्थ हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.

सुशील का लिखा ये भी पढ़ सकते हैं…

हरिद्वार का सच : इतने सारे बड़े बड़े अरबपति खरबपति बाबा और ठोस काम एक भी नहीं… भगवा पहन कर बस हवा हवाई!

xxx

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रताप सोमवंशी ने रिपोर्टरों को बुलाकर कहा- जिन्हें विचार की राजनीति करनी है वे मीडिया छोड़ दें

xxx

मैंने पहली बार अमर उजाला का कंपनी रूप देखा था

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement