हरिद्वार का सच : इतने सारे बड़े बड़े अरबपति खरबपति बाबा और ठोस काम एक भी नहीं… भगवा पहन कर बस हवा हवाई!

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(सुशील उपाध्याय)

Sushil Upadhyay : मेरे ऐबी-मन की बेचैनी सुनिए…. मैं धर्मनगरी हरिद्वार में रहता हूं, लेकिन मेरे विचार इस शहर के चरित्र से भिन्न हैं। कोशिश करके देख ली, कोई जुड़ाव नहीं बन पाता। ये आचार्यों, धर्माचार्यों, शंकराचार्यों, परमाध्यक्षों, महंतों, श्रीमहंतों, मंडलेश्वरों, महामंडलेश्वरों, आचार्य महामंडलेश्वरों, मठाचार्यों, स्वामियों, महाराजों, संतों, श्रीसंतों, बाबाओं, नागाओं, उदासीनों, विरक्तों, साधुओं की नगरी है। आप चाहें तो इस सूची में भिखारियों को भी जोड़ सकते हैं। हर आठवें-पंद्रहवें दिन यह शहर किसी न किसी धार्मिक मेले, ठेले, सत्संग, धर्मोत्सव, जन्मोत्सव, वार्षिकोत्सव, अवतरण-दिवस और संत-महाप्रयाण का साक्षी बनता रहता है। सुबह-सवेरे शंख-ध्वनि, घंटे-घडि़यालों और यज्ञ-हवियों की धूम से एक ऐसा माहौल बनता है कि मेरे जैसा सांसारी अपनी अपात्रता पर जार-जार रोता है।

मन को खूब रोकता-टोकता और बरजता हूं कि धर्म के मामलों से अपने ऐबी-चरित्र को अलग रखना चाहिए, पर जेहन में कोई न कोई सवाल उठता रहा है और बेचैनी बढ़ती जाती है। ताजा सवाल ये है कि जिस शहर में पद्मभूषण स्वामी सत्यमित्रानंद, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद, एक और पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज, आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि, शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम जैसे संत रहते हों, पायलट बाबा जैसे प्रभावशाली लोगों का ठिकाना यहां हो, वो शहर जौलीग्रांट और एसजीआरआर जैसे एक अदद मेडिकल काॅलेज के लिए तरस रहा है। इन दोनों संस्थाओं का नाम इसलिए लिया, क्योंकि इन मेडिकल कालेजों की स्थापना संतों द्वारा की गई है।

मेरे खुराफाती दिगाम में लगातार यह बात बनी हुई है कि तमाम दिग्गज संतों ने हरिद्वार के शैक्षिक-बौद्धिक, सामाजिक-आर्थिक जीवन में क्या योगदान किया है ? लोग कह सकते हैं कि संतों का काम तो धार्मिक-आध्यात्मिक है! मैं, इस तर्क को स्वीकार करते खुद से पूछता हूं कि क्या करोड़ों रुपये का आश्रम खड़ा करना और लाखों रुपये कीमत की गाड़ी का इस्तेमाल करना भी धार्मिक-आध्यामिक गतिविधि है ? मेरे पास यह अधिकार नहीं कि मैं सतों के निजी जीवन और ऐश्वर्य पर कोई टिप्पणी करूं, लेकिन शहर का बाशिंदा होने के नाते ये जानने का हक तो है कि वे स्वामी श्रद्धानंद और श्रीराम शर्मा आचार्य-प्रणव पंडया की तरह कोई बड़ी शैक्षिक संस्था ही इस शहर को क्यों नहीं दे जाते! कोई मेडिकल यूनिसर्सिटी, कोई टेक्नीकल यूनिवर्सिटी, कोई इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी या कोई वैदिक यूनिवर्सिटी ही खड़ी करके दिखा देते। साहित्य, संस्कृति के क्षेत्र में कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार-सम्मान आरंभ कर देते या किसी विदेशी भक्त को प्रेरित कर देते कि हरिद्वार में कुछ अनूठा काम कर दे ताकि लोगों की जिंदगी कुछ बेहतर हो सके।

इस प्रसंग में बाबा रामदेव का नाम लेना कई लोगों को नहीं रुचेगा, उन पर तमाम सवाल खड़े किए जा सकते हैं, लेकिन एक बात के लिए तो उनकी तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने योग और आयुर्वेद को इंडस्ट्री में बदल कर दिखा दिया। वे महज प्रवचनों तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने करके दिखाया, कोई और करके दिखाएगा! बीते दिन स्वामी सत्यमित्रानंद ने अपनी विरासत स्वामी अवधेशानंद गिरि को सौंप दी और इस विरासत को संभालने के साथ ही स्वामी अवधेशानंद गिरि ने देश भर में 300 भारत माता मंदिर खोलने का ऐलान कर दिया। कितना अच्छा होता ये वे पिछड़े इलाकों में भारत माता के नाम पर 300 विद्या मंदिर खोलते, 300 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोलते। इन स्कूलों और अस्पतालों से भारत माता को ज्यादा राहत मिलती, क्योंकि भारत माता पत्थर की मूर्तियों में नहीं, उन लोगों में है जिन्हें इस वक्त शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की सबसे अधिक जरूरत है।

और ये असंभव काम नहीं है, देहरादून के श्री गुरु राम राय दरबार ने पिछली आधी सदी में देश भर में कई सौ इंटर काॅलेज खोले और इन्हें संचालित करके भी दिखाया। भक्त लोग गुस्ताखी माफ करें, हरिद्वार में अक्सर भक्तों का मेला लगाने वाले सतपाल महाराज ने हरिद्वार को क्या दिया है ? इससे बेहतर तो उनके भाई भोले महाराज है जो एक बड़े आई-हास्पिटल की शुरुआत कर चुके हैं। संत और समर्थक अक्सर गिनाते हैं-संस्कृत पाठशाला शुरू की, धर्मार्थ डिस्पैंसरी आरंभ की, पुस्तकालय आरंभ किया, गरीबों की मदद की, कन्याओं का विवाह कराया और बहुत कुछ! माफ कीजिएगा, इनमें कोई भी ठोस काम नहीं है ये हवा-हवाई हैं! जिन्होंने भगवा पहन लिया है, उन्हें ऊपर वाले को कोई हिसाब नहीं देना होगा या नहीं?

लेखक सुशील उपाध्याय पत्रकार रहे हैं और इन दिनों हरिद्वार में रहते हुए अध्यापन के कार्य से जुड़े हैं. उन्होंने उपरोक्त बातें फेसबुक पर प्रकाशित की हैं.


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