Abhishek Ranjan Singh : न्यूज़ चैनल ‘लाइव प्रसारण’ की क्षमता से ज़िंदा हैं। बाकी मौजूदा ‘न्यूज़ वेब पोर्टल’ भ्रामक, अधूरी और एकपक्षीय ख़बरों की वजह से देश की जनता के बीच अपनी पकड़ नहीं बना पा रहे हैं। इसकी वजह विश्वसनीयता हासिल न कर पाना है। न्यूज़ चैनलों और डिजीटल मीडिया की मेहरबानी से भारत में अख़बारों और पत्रिकाओं का भविष्य पहले अधिक उज्जवल हो गया है।
एक महत्वपूर्ण बात और.. बड़े-बड़े अख़बारों के वेबसाइट्स हिट्स बढ़ाने के लिए अनाप-शनाप ख़बरें लगाते हैं। यहां अख़बारों की तरह स्वतंत्र लेखन का कोई अवसर नहीं है। वैसे अख़बारों में भी हालत कौन सी अच्छी है? हिंदी में एक आलेख का भाव आज भी 1000-1500 से अधिक नहीं है। वह भी दो-तीन महीने या उससे भी अधिक समय बाद मिलते हैं। जब ज़्यादा अख़बार, न्यूज़ चैनल और ‘मोथा घास’ की तरह उग आए ‘डिजीटल मीडिया’ नहीं था. उस वक़्त कई लेखक-पत्रकार स्वतंत्र लेखन कर अपनी जीविका चला लेते थे। मौजूदा समय में ऐसा करना संभव नहीं रह गया है।
आईआईएमसी के छात्र रहे युवा पत्रकार अभिषेक रंजन सिंह की एफबी वॉल से.