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सुख-दुख

जब ओशो को बेड़ियों, हथकड़ियों और ज़ंजीरों से जकड़ कर विभिन्न जेलों मे घुमाया गया था…

अभिनेता आशुतोष राणा

Ashutosh Rana : ओशो और आदर्श अनुयायी.. आपको शायद याद हो अमेरिका में ओशो को बिना किसी गिरफ़्तारी वारंट के, बिना किसी प्राथमिकी के अमरीकी पुलिस ने अचानक गिरफ़्तार कर लिया था। और १२ दिनों तक एक निर्दोष, निहत्थे व्यक्ति को बेड़ियों, हथकड़ियों और ज़ंजीरों से जकड़ कर विभिन्न जेलों मे घुमाते हुऐ उन्हे यातना के कई आयामों से गुज़ारा। विश्व मीडिया बताता है, उस समय पूरे विश्व में ओशो के अनुयायियों की संख्या करोड़ों में थी, पर पूरे विश्व में कहीं कोई अशांति या हिंसक प्रदर्शन नहीं हुए।  ओशो जिस-जिस जेल में पहुँचते थे वहाँ सुबह-सुबह आदमियों की भीड़ नही बल्कि फूलों से लदे हुए ट्रक पहुँच जाते थे।

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अकलोहोमा जेल के जेलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, मै सेवानिवृत्ति के क़रीब था मैने बहुत क़ैदियों को अपनी जेलों में आते जाते देखा है पर जब यह शख़्स (ओशो) मेरी जेल में आया तो मैंने महसूस किया और देखा कि मेरी जेल एक चर्च के रुप में बदल गई थी। पूरी जेल फूलों से भर गई थी कोई जगह ख़ाली नहीं थी। तब मैं ख़ुद उस शख़्स के पास गया और अनायास ही मेरी आँखो से अश्रु बहने लगे, मैं समझ नहीं पा रहा था और भरे गले से मैंने उनसे पूछा कि, आप ही बताइए इन फूलों का मैं क्या करूँ?

ओशो ने मेरी तरफ प्रेमपूर्ण दृष्टि डाली और बोले- इन फूलों को पूरे शहर से स्कूलों और कॉलेजों में भिजवा दिया जाए ये मेरी तरफ से उस विद्यार्थियों को भेंट है जो अभी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। जब ओशो को जेल से अदालत लाया जाता था, तब उनके लाखों अनुयायी नगर वासियों को फूल भेंट करते थे और शांतिपूर्ण ढंग से प्रतीक्षारत रहते कि कब ओशो कोर्ट से बाहर आएँगे? जब ओशो कोर्ट से गुज़र जाते तो कोर्ट से लेकर जेल तक की सड़क फूलों से पटी होती थी। पूरे संसार से कहीं ऐसी कोई ख़बर नही थी कि ओशो के किसी अनुयायी ने कोई उग्र प्रदर्शन,आचरण किया या उग्र व्यक्तव्य दिया हो।

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ओशो की तस्वीरें

जब भी कोई उनसे ओशो के सम्बध मे कुछ पूछता तो आँखों में आँसुओं के साथ यही कहते- प्रकृति कुछ प्रयोग कर रही है, हाँ ये प्रयोग हमारे लिये थोडा असहनीय और कष्टप्रद जरुर हैं, पर जैसी परमपिता की मर्ज़ी। हमारे सद्गुरू ने हमें ये सिखा दिया है कि कैसे परम स्वीकार के भाव मे जिया जाता है।  जिस जेल से ओशो को जाना होता, वहाँ का जेलर अपने परिवार के साथ उन्हे विदा करने के लिये उपस्थित होता और ओशो से आग्रह करता कि क्या मेरे परिवार के साथ आप अपनी एक फ़ोटो हमें भेंट करेगे? और ओशो मधुर मुस्कान से मुस्कराते हुए वही खड़े हो जाते और कहते कि आओ।

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बहुत पहले जब ओशो भारत में थे तब उन पर छुरा फेंका गया, ओशो ने तत्क्षण कहा, कोई अनुयायी उन सज्जन को कुछ भी न कहे और उन्हें छुए भी नही। वे कुछ कहना चाहते हैं, ये उनके कहने का ढंग है। उन्हे बिल्कुल छोड़ दिया जाए।  फिर अगले दिन ओशो ने प्रवचन के मध्य कहा- मैं यह देख कर आनंदित हूँ कि तुममें से किसी ने उन सज्जन को कोई चोट नही पहुँचाई , वल्कि प्रेम से उन्हें बाहर जाने दिया गया। यही मेरी शिक्षा है। कल कोई मेरी हत्या का भी प्रयास करे या जान भी ले-ले लेकिन तुम उन्हें प्रेम ही देना ।

सच्चे सद्गुरू की शिक्षा और दीक्षा उनके अनुयायियों में परिलक्षित होती है। अनुयायी शब्द बडा समझने वाला है- अपने गुरू के बताये मार्ग पर ठीक ढंग से चलने वाले को अनुयायी कहते है ।  शांत, अनुशासन-शील, सर्व-स्वीकार और सुदृढ़ अनुयायी ही गुरु की सदाशयता को परिभाषित करते हैं। साथ ही स्मरण रखने योग्य तथ्य यह भी है की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने अनुयायियों, अपने को प्रेम करने वालों पक्षधरों की मानसिकता का निर्माण करने का गुरुतर दायित्व अग्रगामी आदर्श का होता है। एक मित्र ने मुझे यह भेजा। ओशो साहित्य संग्रह को आभार सहित सादर प्रेमप्रणाम।

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ओशो को पढ़ने-जानने के लिए नीचे दिए गए शीर्षकों पर भी क्लिक करें…

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