
समीक्षित कृति – पगडंडी में पहाड़
लेखक- – जय प्रकाश पांडेय
प्रकाशक – राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत , नई दिल्ली
‘पगडंडी में पहाड़’ जे पी पांडेय द्वारा रचित् एक यात्रा वृतांत है जिसमे मसूरी के आसपास की हिमालय की सुन्दरता का प्रचुर वर्णन किया गया है। पुस्तक में मुख्यता उत्तराखण्ड और हिमांचल प्रदेश के भूभाग के हिमालय में स्थित प्रसिद्द स्थलों के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। पुस्तक का अधिकांश भाग लेखक के ओकग्रोव स्कूल में प्रिंसिपल के कार्यकाल के दौरान की गयी यात्राओं का विवरण है।
“पगडंडी में पहाड़” उत्तराखंड के सुरम्य पर्वतीय अंचलों, पहाड़ों, झरने, उछलते कूदते नदी नाले, वहां के सीधे साधे लोगों की कहानी है । हिमालय प्रारम्भ से ही मानव सभ्यता एवं संस्कृति का उद्गगम रहा है । मानव के मान अभियान एवम दर्प को चूर्ण करने वाला हिमालय प्रकृति की श्रेष्ठतम कृति है । हिमालय देखने में जितना विशाल है यह उतना ही शीलवान, सुकोमल, सुंदर एवम मानव के दिलों को सबसे ज्यादा लुभाने वाला है । इसने मानवीय सभ्यताओं को विकसित करने के साथ उसके मनोभावों को जागृत करने का सबसे बड़ा उपक्रम रहा है । हिमालय की वादियों का एक-एक पत्थर, चट्टान बोलता है । चीड़ देवदार के पेड़ों की प्रत्येक पत्ती शरारत करती है और इसकी हरियाली आपमें प्राण डाल देती है । झरने गीत गाते है, हवाएं संगीत देती है, पुष्प मुस्कराते है और विस्तृत फैली वादियाँ बाहें फैलाये सदियों से न जाने किसका इंतजार कर रही है । इन पर्वतों की कंदराओं में तो जीवन बिताया जा सकता है । न जाने कितनी सदियों का साक्षी ये कंकड़ पत्थर हमसें बात करना चाहते है । आवश्यकता है कि जीवन की भागदौड़ से कुछ पल चुराकर इनके साथ गुजारा जाए, इनसे बात की जाए ।
कहा जाता है कि यदि लोग अपने जीवन कि सभी घटनाओं का सही सही चित्रण एक किताब मैं कर दें तो दुनिया में अच्छी किताबों की कमी ना रहे। जे पी पांडेय द्वारा लिखी हुई यह किताब इस दिशा में किया गया एक सफल प्रयास है। पुस्तक की शुरूआत “पहाड़ो की रानी मसूरी” नामक अध्याय से होती है और “झड़ीपानी फ़ॉल” से “चारधाम यात्रा” होते हुए “नाग टिब्बा” नामक अध्याय पे ख़त्म होती है। अठारह अध्याय की इस किताब मैं विभिन्न स्थानों के ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक महत्व का समुचित एवं अनूठा विवरण मिलता है।
इस पुस्तक को पढ़ते हुए पाठक हिमालय की उचाइयों से लेकर भविष्य की कठिनाइयों जैसे ग्लोबल वार्मिंग एवं लैंड स्लाइड, अतीत की कहानियों से लेकर पर्वतीय क्षेत्र में आज हो रहे परिवर्तनों के बारे में परिचित होता है। किताब के प्रथम अध्याय में मसूरी के बसने के आरम्भिक दिनो एवं पुराने बँगला की कहानियाँ पढ़कर एक नोस्टाल्जिक फ़ीलिंग आती है किंतु आज हो रहे परिवर्तनो के वजह से हिमालयन पर्यावरण पर पड़ रहे विपरीत प्रभाओ को पढ़कर चिंता भी होती है। किताब में वर्णित बिभिन्न स्थानो की ट्रेकिंग जैसे ‘झरिपानी फ़ॉल’, ‘परी टिब्बा’ एवं ‘हेमकुंड साहेब और फूलो की घाटी’ का लेखक का अनुभव पढ़कर इन स्थानो को देखने की इच्छा जागृत हो जाती है।
किताब के बड़े हिस्से में मसूरी के आस पास के प्रसिद्ध स्थानो की ट्रेकिंग का वर्णन है। किंतु ट्रेकिंग के साथ साथ लेखक का ध्यान इन स्थानो की जैव विविधता, सांस्कृतिक विरासत और वानस्पतिक विविधता पे भी है। बुरांश के फूलों के महत्व का काफ़ी वर्णन किताब में मिलता है। इसके साथ ही साथ पहाड़ी क्षेत्रों की समस्यों जैसे संषाधनों का अत्यंत दोहन, शहरों की तरफ़ पलायन तथा पहाड़ी जीवन की कठिनाइयों का भी बिस्तार से विवरण मिलता है। पुस्तक़ को पढ़कर पाठक ना सिर्फ़ हिमालय की सुंदरता अपितु हिमालय परिक्षेत्र के संरक्षण के बारे में भी अवगत होता है। गढ़वाल और कुमायूं के इतिहास से लेकर भूगोल से सम्पूर्ण परिचय ही नही होता वरन किताब के माध्यम से आप उत्तराखंड में और उत्तराखंड आपमें रच-बस जाता है ।
किताब में लेखक द्वारा किसी भी स्थान की ऐतिहासिकता एवं प्राकृतिक सौंदर्य की चर्चा करते हुए जीवन की कोई दर्शन बयाँ कर देना एक अत्यंत ही सुखद एवं अनूठा अनुभव है। उदाहरण स्वरूप अध्याय 11 के एक पैराग्राफ में लेखक लिखता है: ” ट्रेकिंग करते समय प्रारम्भ में सब भले ही साथ चलें लेकिन कुछ ही समय में पूरा ग्रूप कई छोटे छोटे समूहों में बट जाता है। लोगों की अलग अलग गति से चलने के कारण ऐसा होता है। जीवन पथ भी कुछ ऐसा ही है जिसमें कई लोगों और रिश्तों का सफ़र साथ शुरू होता है, लेकिन समय के साथ कुछ पीछे छूट जाते हैं और कुछ नए मिलते जाते हैं। पथ की निरंतरता में ही ख़ूबसूरती है।”

पुस्तक में पगडंडियों पर भ्रमण के क्रम में पग-पग पर बिखरी खूबसूरती का यथार्थ वर्णन पाठकों को उन्हीं पगदंडियो पर ले जाकर देवभूमि के दर्शन कराता हैं | इन पगडंडियों की एक बानगी प्रस्तुत हैं- आगे लगभग दो किलोमीटर तक पुराना पक्का रोड़ है जो बरसात एवं ऊपर से मलबा आने से जगह-जगह से टूट गया है | एक किलोमीटर आगे बढ़ने पर आप एक घने जंगल में अपने को पायेंगे | चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे ओक के वृक्ष, उस पर लिपटी सघन लतायें, झींगुरो की झन-झन की आवाजें, बीच-बीच में किसी पक्षी की कुहक और घनी पत्तियों से छनकर आती एवं अनेकानेक बिम्ब बनाती हुई सूर्य की किरणें इस पूरे वातावरण को अदभुत एवं रहस्यमयी बना देती हैं | ऐसे में संसार का सबसे रुखा व्यक्ति भी प्रकृति के इस रोमांस में रोमांचित हुए बिना नही रह सकता | प्रकृति सुन्दरता की हरित अभिव्यक्ति में कोई भी एक अप्रतिम शक्ति का स्मरण अनायास ही हो जाता है और नास्तिक व्यक्ति के भी मन में उस परम शक्ति के प्रति धन्यवाद एवं आस्था की छिपी प्रवृत्ति जागृत हो जाती है |
किताब की भाषा अत्यंत ही सहज और सरल है। अधिकांश चैप्टर छोटे हैं जिनको पढ़ने में ज़्यादा समय नहीं लगता। जे पी पांडेय जी की यह किताब हिमालय की खूबसूरत यात्राओं को एक बड़े जनमानस तक पहुंचाने में पूर्णतः सफल होगी।
जितेंद्र प्रताप सिंह
पुणे
Jitendrapsingh2011@gmail.com