साहब, कुछ तो बोलना पड़ेगा तुम्हें। बुजुर्ग पत्रकार राजेन्द्र प्रसाद मीमांसा को लखनऊ RTO आफिस में पीटा गया। जिन्हें तुम फट्टर कहते हो, ऐसे बीस-तीस लोग पीड़ित के हक की लड़ाई लड़ते रहे। डीएम से लेकर सीएम से मिले। ये फट्टर हैं, तुम लोग ब्रांड हो.. स्थापित हो.. बड़ी पहचान वाले हो… समय-समय पर पत्रकारों ने तुम्हें नेतृत्व के लिये चुना है। अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी दी है। सरकारें भी तुम लोगों को ही पत्रकारों का असली नेता मानतीं हैं। पत्रकारों के डेरे के तुम ही राम हो और तुम ही रहीम भी। तो फिर मीमांसा जैसे तमाम मामलों में क्यों खामोश रहते हो.. क्यों नहीँ सामने आते.. क्यों ऐसे मौकों पर अज्ञातवास में चले जाते हो.. क्यों नहीं अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन करते हो।
अगर तुम मीमांसा जैसों को फर्जी पत्रकार मानते हो तो इनका वोट क्यों लेते हो? इनके वोट से जीता नेता भी तो फर्जी पत्रकार नेता हुआ। छोटे.. संघर्षशील और कमजोर की मदद करना तो तुम्हारा पहला फर्ज है। और, यदि तुम इनकी मदद इसलिए नही करते.. तुम इनके मामले में इसलिए नहीँ पड़ते, क्योंकि तुम इन्हें पत्रकार ही नहीं मानते। यदि तुम इन्हें पत्रकार के भेष में ब्लैकमेलर मानते हो.. दलाल मानते हो.. डग्गामार मानते हो.. बर्फ वाला.. पंचर वाला.. फर्जी पत्रकार मानते हो, फिर तो तुम ज्यादा बड़े गुनाहगार हो। पत्रकार बिरादरी के दोषी हो।
क्या पत्रकारों ने तुम्हें हमेशा इसीलिए नेता चुना कि तुम्हारे होते हुए पत्रकारों की फील्ड में पत्रकार के भेष में ब्लैकमेलर और दलाल घुस आयें और तुम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहो.. तुम खामोश रहो.. तुम कैसे पत्रकार नेता हो यार? तुम कैसे पहरेदार हो? तुम कैसे अपने घर में घुसपैठियों को घुसने दे रहे हो? साफ-साफ बताओ अपनी खामोशी का राज। निम्न में क्या सच है :-
1- ये छोटे यानी संघर्षरत-संघर्षशील.. गरीब.. छोटे अखबारों के पत्रकार हैं इसलिए इनके हक की लड़ाई नहीँ लड़ते।
2- इनके हक की लड़ाई के चक्कर में सरकार से बुरे नही बनना चाहते। इनके लिए लड़ेंगे तो सरकार बुरा मान जायेगी। सरकार नाराज हो गयी तो मकान-दुकान बंद हो जायेगी। निजि काम नहीँ हो सकेगें।
3- इन्हें पत्रकार ही नहीं स्वीकारते। ये फर्जी पत्रकार हैं। दलाल हैं। ब्लैकमेलर हैं। इन्हें लिखना तक नही आता। इन्होंने कभी किसी अखबार में काम ही नहीं किया। जुगाड़ से मान्यता करा ली है। ये पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं।
4- तीसरा बिन्दु सही है लेकिन हम नेता लोग गंदी राजनीति और निजी स्वार्थ के तहत इस सच्चाई पर वोटों की खातिर मुंह बंद रखना बेहतर समझते हैं।
खुद का घर शीशे का है इसलिए इनके घर पत्थर नहीं फेंकना चाहते।
नवेद शिकोह “लंकेश”
लखनऊ
9918223245
Navedshikoh84@rediffmail. com
सही लिखा है लखनऊ के बड़े पत्रकार नेता सिर्फ उद्दोगपति के अखबारो के पत्रकारो को पत्रकार मानते है ,छ
September 16, 2017 at 5:27 am
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