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सुख-दुख

थानेदार ऐसे तोड़ते हैं हवालात में टांग… एक रिटायर ips ने किया खुलासा

बद्री प्रसाद सिंह-

जब भी कोई लुटा, पिटा व्यक्ति मदद हेतु पुलिस थाना आता है तो वह थाने से सदव्यवहार, त्वरित सहायता, निष्पक्ष कार्यवाही की अपेक्षा रखता है और यदि पुलिस उसकी अपेक्षा पर खरी उतरी तो वह उसे देवदूत समझता है और यदि उसे थाने में दुर्व्यवहार, उपेक्षा मिली तो पुलिस उसे राक्षस की प्रतिमूर्ति लगती है। मेरा सौभाग्य है कि मैंने ऐसा एक देवदूत देखा है।

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वर्ष 1986 में इलाहाबाद में हुए सांप्रदायिक दंगे की सेक्टर आफिसर, अपराध शाखा के पद पर जांच करते समय पुराने शहर स्थित सभी थानों की शिकायतें मिली लेकिन कोतवाली के निरीक्षक राणा प्रताप सिंह की ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली।संयोगवश शीध्र ही मेरा स्थानांतरण वहां से क्षेत्राधिकारी कोतवाली इलाहाबाद हो गई तब मुझे राणा प्रताप सिंह की कार्यशैली नजदीक से देखने को मिली।

राणा प्रताप लम्बे, पतले,गौरांग तथा अम्बेडकरनगर जिले के थाना जहांगीर गंज के मूल निवासी थे।मितभाषी, मृदुभाषी होने के साथ गाली देने के पुलिसिया दुर्गुण से पूर्ण मुक्त थे।मैनें कभी उन्हें अपराधी से भी बदतमीजी से बात करते नहीं देखा यद्यपि वह उच्च रक्तचाप के मरीज थे।कोतवाली में ही मेरा,पुलिस अधीक्षक नगर का कार्यालय था लेकिन उनके दुर्व्यवहार की कभी शिकायत हमें नहीं मिली।

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मैनें एक बार उनसे पूछा कि 1986 के दंगे के दौरान उनकी कोई दुर्व्यवहार की शिकायत नहीं मिली,कैसे वह सभी को संतुष्ट रख सके थे,तो वह बोले कि जो भी दंगाई गिरफ्तार होकर उनके थाने आया फिर उसके साथ कोई मारपीट, गाली गलौज नहीं हुई।मुलजिम कई थाने के हिंदू, मुसलमान थे और कई दिन उन्हें हवालात में रखना पड़ा लेकिन सभी को चाय,लाई चना,समोसा आदि समय समय पर देते थे,बीमार के लिए डाक्टर की भी सेवा ली।यह था उनका मानवीय चेहरा।

राणा पेशेवर अपराधियों के लिए कठोर थे,जिनके हाथ पैर तोड़ने में उन्हें महारत हासिल थी।शातिर अपराधी के हाथ पैर वह रात्रि 12-01 बजे तोड़ते थे।यह कला मैनें राणा से ही सीखी जिसका प्रयोग मैने बाद में कई बार किया।हाथ पैर तोड़ने में कभी कभी अपराधी की मृत्यु भी हो जाती है लेकिन राणा के साथ ऐसी घटना नहीं घटी।

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वह पैर तोड़ते समय बहुत सावधानी बरतते थे,अपराधी को पीटते नहीं थे वरन उसके हाथ या पैर में हवालाती कंबल कस कर बांधकर मोटी लाठी या पलंग की पाटी से अपराधी के सजातीय पुलिस कर्मी से उस स्थान पर जोर से प्रहार कराते थे और अपराधी का सर अपने गोद में रखकर प्रेम से बात कर उसका सर दूसरी तरफ रखते थे जिससे वह लाठी प्रहार के समय देखकर पैर हिला न दे।जबतक अपराधी रोकर सुधरने की बात कर पैर न तोड़ने की भीख मांगता था तब तक उसका पैर टूट चुका होता था।पैर ,हाथ टूटते ही वह चिल्लाकर राणा को गालियां देता लेकिन राणा बच्चे के समान उसे दुलारते हुए दर्दनाशक गोलियां खिलाकर तत्काल चाय पिलवाते।

राणा का मकान हवालात के ऊपर ही था।रात में दो तीन बार नीचे आकर उसका हाल पूंछते, आवश्यकता पड़ने पर परिचित प्राइवेट डाक्टर से इलाज भी कराते।मांगने पर भी उसे ठंडा पानी न मिलता,गुनगुना पानी ही दिया जाता।

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हाथ,पैर तोड़ने के बाद राणा प्रेम से अपराधी को समझाते कि जो भी पाप उसने किया था पैर तोड़कर उन्होंने उसका प्रायश्चित करा दिया अब वह आगे सुधर जाय अन्यथा वह मारा जाएगा।मुझे याद है 1987 में जीरो रोड बस अड्डे पर दिन दहाड़े एक व्यक्ति को गोली मारकर भाग रहे मुलजिम को वहां के पिकेट ड्युटी के दो सिपाही पकड़ कर थाने लाए लेकिन उसकी शिनाख्त नहीं हो पा रही थी।मुखबिर से उसका नाम जग्गा पता चला जो कोतवाली के सामने हमाम गली का रहनेवाला शातिर हत्यारा था जिसके घर बहुत बार मैं भी दविश दे चुका था।उससे अतीक अहमद भी भय खाता था।रात में उसका हाथ पैर टूट गया लेकिन न तो वह चिल्लाया न ही उसकी आंख से एक बूंद आंसू नहीं गिरा। ऐसा सहनशील अपराधी मैनें नहीं देखा।उसकी अतीक से दुश्मनी थी,बाद में सुना कि अतीक ने उसकी हत्या करा दी थी।

राणा साहसी पुलिस अधिकारी थे।1986 में जब सीओ कोतवाली अशोक कुमार को नखास कोहना पुलिस चौकी पर दंगाइयों ने घेर कर बमबारी प्रारंभ कर दी और साथ के पुलिस कर्मी भाग खड़े हुए, सूचना मिलते ही राणा प्रताप वहां पहुंच कर हवाई फायरिंग करते हुए सीओ को सुरक्षित कोतवाली लाए,जबकि नखास कोहना उनके क्षेत्र में नहीं था।इसीप्रकार1988 के दंगे में एक महिला पुलिस उपाधीक्षक (प्रशिक्षणाधीन) सेवंई वाली गली में हो रही बमबारी में फंस गई, सूचना मिलते ही जब मैं पहुंचा तो पता चला कि राणा उस गली में सर पर तसला रखकर गए और फायरिंग कर उस महिला अधिकारी को सकुशल निकाल लाए थे,यह क्षेत्र भी उनके थाने में नहीं था।मैने उस महिला को डांट कर भविष्य में दंगा प्रभावित क्षेत्र में जाने से मना किया।

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वह साहसी अधिकारी थी लेकिन दुर्भाग्य वश प्रशिक्षण में ही अपने पति के साथ स्कूटर पर जाते समय गिर गई और सर पर चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो गई।राणाप्रताप बाद में कुंडा थाना के निरीक्षक हुए थे और एक वांछित स्थानीय बाहुबली के घर एक सिपाही के साथ ही दविश देते थे जबकि उसके घर दविश देने के लिए पहले कई थानों का फोर्स साथ जाया करता था।राणा की जीप जैसे ही उधर निकलती बाहुबली भाग खड़े होते थे,यह था राणा का शारीरक और नैतिक साहस।

एक बार रात्रि 12 बजे पुलिस अधीक्षक नगर,मैं,राणाप्रताप जीरोरोड के एक तीन मंजिला मकान पर हो रहे जुए के लिए दविश दी।कुछ जुवारी पकड़े गए कुछ छत से कूद कर भाग गए थे।जब हम तलाशी लेकर नीचे आए तो नीचे लगे पुलिस बल ने बताया कि एक जुआरी ऊपर से कूद कर नीचे लगे टिन शेड पर गिरा जहां से लुढ़क कर पक्की सड़क पर गिरा है,उसके मुंह तथा सर से खून टपक रहा है,हम दौड़कर पीछे पहुंचे तो गिरा व्यक्ति मृतप्राय एवं कोमा में था।मैने पुलिस अधीक्षक नगर से तत्काल वहां से जाने को समझाया कि अभी इसके मरने की जांच वही करेगें यदि वह मौके पर रहे तो जांच अन्य वरिष्ठ अधिकारी करेंगे।

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बहुत कहने पर वह गए तब राणाप्रताप ने उसी तर्क पर मुझे भी वहां से जाने को कहा,मैं हंस कर बोला मैं साथ रहूंगा, चलो इसे तत्काल मेडिकल कालेज ले चलें।हम उसे लेकर मेडिकल कालेज भर्ती कराकर इलाज कराया।पैसे तो खर्च हुए लेकिन हमारे भाग्य से वह बच गया अन्यथा हम उसकी हत्या के मुलजिम होते।
गम्भीर अपराधों की विवेचना थानाध्यक्ष को ही करने के निर्देश हैं लेकिन वे करते नहीं है।बहुत जोर देने पर वे अंतिम एक दो पर्चे काट देते हैं।

राणा प्रताप पहले पर्चे से ही विवेचना ग्रहण करते।जिस दिन पर्चा ( CD) लिखना होता,वह 11 बजे रात मेरे कार्यालय आकर बता देते कि पर्चा काटने वह ऊपर घर जा रहे हैं,कोई जरूरत हो तो मैं बुला लूं।अगले दिन उनका पर्चा मेरी मेज पर होता।शायद ही कोई विवेचक पर्चा काटकर 24 घंटे में सीओ कार्यालय कभी पर्चा भेजता हो।राणा की लिखावट बहुत सुंदर थी।पर्चा वह किसी मुंशी या दरोगा से नहीं अपितु स्वयं लिखते थे।

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पूरा कोतवाली थाना व्यापारिक क्षेत्र था लेकिन राणाप्रताप के रिश्वत लेने की एक भी शिकायत हमें नहीं मिली।एक दिन बातों-बातों में मैनें पूछा कि उनकी कई लड़़कियां हैं रिश्वत की कोई शिकायत नहीं है,फिर वह उनकी शादी कैसे करेगें? राणा बोले कि जुर्म से कमाया गया धन शुभ परिणाम नहीं देता,लड़कियां ईश्वर ने दी हैं,वही उनकी शादियां भी कराएगा।कुछ माह बाद उनका स्थानांतरण थाना कर्नलगंज होगया।एक दिन मेरे मित्र शिवकुमार वैश्य अपने एक रिश्तेदार के साथ आकर बताया कि इनकी जीप कलकत्ता से चोरी हुई है तथा इलाहाबाद में चलने की सूचना है।मैने और पता करने को कहा।

अगले दिन वे आए और बताया कि जीप देहात क्षेत्र से कर्नलगंज क्षेत्र में चलती है।मैनें राणाप्रताप को फोन कर उनके पास भेज दिया।अगले दिन वह जीप पकड़ी गई।थोड़ी देर बाद देहात क्षेत्र के एक चौकी इंचार्ज आकर उसे अपनी जीप बताते हुए तत्काल मुक्त करने को कहा,मांगने पर वह कोई कागजात नहीं दिखा पाए जबकि दूसरे पक्ष के पास सभी वैध अभिलेख थे।दरोगा जी चोर से सस्ते में जीप लेकर पुराने नम्बर पर ही टैक्सी चलवा रहे थे।बातोंबात में दरोगा जी रौब में आकर कुछ माफियाओं से अपना संपर्क बताकर राणा को बुरे अंजाम की धमकी दी।

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पहले तो राणा ने प्रेम से उन्हें समझाया ,अकड़ने पर सिपाहियों से पकड़ा कर उन्हें हवालात में ठूस दिया,जहां जाते ही उनकी अक्ल ठिकाने आ गई और अपना अंजाम समझकर गिड़गिड़ाने लगे।राणाप्रताप ने उन्हें हवालात से बाहर कर समझा कर छोड़ दिया और जीप मालिक को सौंप दी।अगले दिन शिवकुमार आए और राणा को कुछ इनाम देने की बात की तो मैने समझाया कि वह पैसा नहीं लेगें, एक लड़की विवाह योग्य हो गई है उसे कुछ गिफ्ट देने का प्रयास वह कर सकते हैं।अगले दिन वे पुनः आकर बताए कि वे पच्चीस हजार का सोने का गहना गिफ्ट देने गए थे लेकिन राणा ने सप्रेम वापस कर दिया।

उनकी ऐसी बहुत सी घटनाओं का साक्षी मैं रहा हूँ और आज मैं गर्व से कह सकता हूँ कि पुलिस विभाग में ऐसे बहुत से अधिकारी रहे हैं जिन्होंने जनता की सेवा बहुत ही निष्ठा एवं सत्यनिष्ठा से की है और मुझे ऐसे अधीनस्थों के साथ कार्य करने पर गर्व है।ईश्वर उन्हें स्वस्थ एवं सुखी रखें।

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राणा प्रताप सिंह वर्ष 2005 में प्रयागराज में सीओ के पद से सेवानिवृत्त होकर प्रयागराज नगर में ही रह रहे हैं। कभीकभी मुलाकात होने पर पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। अभी प्रयागराज जाने पर वह मिलने आए थे, उनकी फोटो नीचे दे रहा हूँ।

राणा प्रताप सिंह और बद्री प्रसाद सिंह

पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु

किसी भी पुलिस अधिकारी के क्षेत्र में हत्या डकैती आदि अपराध तो होते ही रहते हैं लेकिन उनके लिए तीन सबसे बड़े कलंक हैं– पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु,पुलिस द्वारा बलात्कार, सांप्रदायिक दंगा।आज मैं अपने सेवाकाल में अपने क्षेत्र में हुई पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु (Death in Police Custody) की चर्चा करूंगा।
वर्ष 1979 में सेवा के आरंभ में मैं मुरादाबाद जिले में क्षेत्राधिकारी अमरोहा था।दिसंबर की एक शाम डिडौली थाने के उप निरीक्षक सुभाष चंद्र तोमर घबराए हुए मेरे आवास आकर बताया कि कल गोकशी में गिरफ्तार किए गए कुछ अभियुक्तों में से एक वृद्ध अभियुक्त की हालत गम्भीर होने पर जोया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज हेतुआज भेजा गया था जिसकी हालत गम्भीर है। क्षेत्रीय विधायक हरगोविंद सिंह जाट भीड़ के साथ अस्पताल का घेराव कर लिया है,थानाध्यक्ष अस्पताल में ही घिर गए हैं और मुझे तत्काल बुलाया है।मैं पीलिया रोग ( Jaundice) से ग्रस्त था तथा कार्यालय नहीं जा रहा था फिर भी मैं सूट पहन कर प्रस्थान कर गया तथा निरीक्षक अमरोहा बी.बी.लाल को एक प्लाटून पीएसी के साथ जोया पहुंचने का निर्देश देते हुए रास्ते से यसडीएम को लेकर जोया पहुंचा।

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वहां मैनें पूरे अस्पताल परिसर को उत्तेजित भीड़ से भरा पाया।अस्पताल के डाक्टर मोईन खान युवा तथा मेरे घनिष्ठ मित्र एवं अमरोहा के पूर्व यसडीएम के साहबजादे थे।मेरे पहुंचते ही वह मेरे पास आकर धीरे से बताया कि अभियुक्त मर चुका है उसे अग्रिम उपचार के बहाने यहां से शीध्र मुरादाबाद भिजवा दें।मैं भीतर कमरे में उनके साथ जाकर मृतक को देखा तो पाया कि उस कमरे में थानाध्यक्ष डिडौली वी.के.भारद्वाज भी सादे में हैं जिन्हें कमरे से निकलने का अवसर नहीं मिल पाया था।मैं तथा डा.खान उसकी मृत्यु को छिपाकर इलाज हेतु मुरादाबाद भेजने हेतु एंबुलेंस लगवाया लेकिन उत्तेजित भीड़ एंबुलेंस को घेर लिया एवं अभियुक्त के मर जाने का शोर करने लगी।डा.खान ने पवित्र कुरान की कसम खाकर मरीज को जिंदा बताया लेकिन भीड़ उनका विश्वास न कर सकी।हार कर थोड़ी देर बाद अभियुक्त की मृत्यु की धोषणा मुझे करनी पड़ी।

थानाध्यक्ष वी.के भरद्वाज एक ईमानदार एवं दबंग अधिकारी थे तथा विधायक एक उद्दंड प्रकृति के जनता दल के नेता थे।उस समय केंद्र तथा राज्य में जनता दल की सरकार थी एवं चौधरी चरण सिंह के कारण पश्चिमी उ.प्र.में जाट प्रभावशाली थे।विधायक जी इससे पहले डिडौली के थानाध्यक्ष अशोक कुमार सिंह को रिश्वत लेने में गिरफ्तार करा चुके थे।भारद्धाज विधायक को अनावश्यक भाव न देने के कारण उनके आंख का कांटा था और आज मौका पाकर विधायक भारद्धाज से बदला लेने को तत्पर थे।वह क्षेत्र मुस्लिम-जाट बहुल था और दोनों समुदाय के लोग वहां इकट्ठा थे।

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मेरी पुलिस की सेवा नई थी,मैनें वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विजय नाथ सिंह जी से फोन से मार्गदर्शन तथा पीएसी मांगा।यसयसपी थोड़ी देर में एक कंपनी पीएसी लेकर अस्पताल आ गए और पुलिस के विरूद्ध हत्या का मुकदमा लिखने का निर्देश देकर वापस चले गए।मैनें विधायक से लिखित रिपोर्ट देने को कहा,वे लोग रिपोर्ट लिखते,फाड़ते रहे।इतने में जिलाधिकारी भी आए और बताया कि यसयसपी ने थानाध्यक्ष को निलंबित कर दिया है।विधायक भारद्वाज की वर्दी उतरवाने की मांग की जिसका डीएम ने समर्थन किया।मैनें बहाना किया कि निलंबन आदेश मिलने पर वर्दी उतरेगी,डीयम ने निलंबन की अपनी प्रति मुझे दे दी।भरद्वाज सादे में थे सो मैं सहमत हो गया।

फिर विधायक ने भारद्वाज की गिरफ्तारी की मांग की जिसका डीयम ने समर्थन किया लेकिन मैनें मना कर कहा कि जब तक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में मृत्यु का कारण चोट न आएगा, पुलिस की पिटाई से मृत्यु का होना नहीं माना जाएगा।इस पर मेरी डीयम से बहस भी हुई और डीयम रुष्ट होकर चले गए।अब मैं और निरीक्षक अमरोहा रह गए।यसडीयम ने पंचायत नामा भरा और विधायक के दबाव में मृत्यु का कारण पुलिस की पिटाई से होना लिखा।

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विधायक तथा जनता भारद्वाज की वर्दी उतारने एवं गिरफ्तार करने का शोर करने लगी।मैने भारद्वाज को कमरे से बाहर निकाल कर दिखाया कि वह वर्दी में नहीं है इसलिए वर्दी उतारने का प्रश्न ही नहीं है।अब बात गिरफ्तारी की आई तो मैने दृढ़ता से मना कर दिया।भीड़ ने जैसे ही शोर मचाते हुए उद्दंडता करनी चाही,एक कंपनी एक प्लाटून पीएसी को 3-4 बार जोर जोर से सावधान विश्राम कराते ही भीड़ भाग खड़ी हुई और विधायक जी भी समर्थक के अभाव में धीरे से खिसक गए।

भारद्वाज और यसडीएम के साथ हम डिडौली थाना आए तथा यसडीयम से विवाद भी हुआ कि जब शरीर पर कोई चोट नहीं दिखी थी तो उन्होंने कैसे पंचायत नामा में पुलिस की पिटाई से मृत्यु लिखी, वह शर्मिंदा होकर बोले कि विधायक के दबाव में लिखा।बाद में वह मुकदमा सीआईडी को चला गया।पोस्टमार्टम में कोई चोट नहीं पाई गई थी वह व्यक्ति 70 साल का बूढ़ा था और संभवतः हवालात में ठंड लगने से उसकी तबियत बिगड़ी थी।यदि उस ठंडी रात मुंशीने ओढ़ने के लिए पर्याप्त कंबल दिया होता तो वह ठंड से बच जाता।बाद में सीआईडी ने मुकदमा में अंतिम रिपोर्ट लगा दी।भारद्वाज बहाल हुए और फिर कई थानों में थानाध्यक्ष हुए अंत में पुलिस उपाधीक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए।

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कुछ महीने बाद यसडीएम सतीश चंद्र गुप्ता को अमरोहा में उनके आवास से तीन हजार रूपए रिश्वत लेते उसी विधायक ने गिरफ्तार कराया।दुर्भाग्य से तब भी मै सीओ अमरोहा तथा बी.बी.लाल वहीं निरीक्षक था जब वह थाना अमरोहा की हवालात में बंद हुए थे।डा.खान,जिन्होंने मेरी मित्रता के कारण कुरान की झूठी कसम खाई थी,की कई वर्षों बाद आकस्मिक मृत्यु हो गई थी तथा अब उनका बेटा अमरोहा में सुजात अस्पताल चलाता है।
यह मेरे लिए नया अनुभव था जब उत्तेजित भीड़ पुलिस के विरूद्ध खड़ी हो गई थी।संयोग वश भीड़ नियंत्रित रही अन्यथा लाठी या गोली का उपयोग करना पड़ता जो और मुसीबत लाती। पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु से जनता में पुलिस का चेहरा मानवीय के स्थान पर क्रूर दिखता है और पुलिस का मनोबल भी गिरता है।

लेखक बद्री प्रसाद सिंह यूपी पुलिस में आईजी पद से रिटायर हुए.

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