Deepak Sharma : मीडिया में और खासकर न्यूज़ चैनल में, डेस्क पर समय सीमा का कितना दबाव होता है, ये शायद उस माहौल में दबाव झेल रहे पत्रकार ही बता सकते हैं। इस जबरदस्त दबाव के अलावा, रात और दिन की बदलती शिफ्ट्स, अनियमित खानपान और नौकरी की अनिश्चितता, ज्यादातर पत्रकारों को एक स्टीरियो टाइप, ‘लाइफस्टाइल-बीमारियों’ में जकड लेती हैं. चालीस पार की उम्र के मेरे पूर्व सहयोगी विकास सक्सेना का अचानक चले जाना, एक तरह की ऐसी ही निर्मम ‘प्रेशर डेथ’ है। इस मौत के लिए हम किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते लेकिन बढ़ते ‘वर्क प्रेशर’ में पर हमे चिंतन और उससे कुछ हद तक निजात पाने की बेहद ज़रुरत है।
वर्तमान में ज़ी न्यूज़ में काम कर रहे विकास, आजतक न्यूज़ चैनल में, मेरे 13-14 साल के साथी रहे। वे असाइनमेंट डेस्क के अति ऊर्जावान पत्रकार रहे… और ब्रेकिंग न्यूज़ हैंडल करने में उनका जवाब नहीं था। लेकिन कम उम्र में ही उन्हें ब्लड प्रेशर ने घेर लिया। बावूजूद इस लाइफस्टाइल बीमारी की गिरफ्त के, विकास की पेशेवर चुनौतियाँ और व्यस्तता बढ़ती ही गयीं। इन चुनौतियों का उनकी सेहत पर कितना असर पड़ा और उन्होंने उस पर कितना काबू पाया, इस बात का जिक्र अब बिलकुल निरर्थक है।
आज उनकी अंतिम यात्रा के समय मुझे इतना ही पता चला कि कल रात तक वे फिट थे लेकिन आज तड़के जबरदस्त हार्ट अटैक के कारण घर में ही उनकी मौत हो गयी। विकास, एक बेहद जिंदादिल , हाज़िर जवाब इंसान थे। वे अब नहीं रहे लेकिन उनके जाने के बाद हमे उस दबाव के माहौल, वर्क प्रेशर एनवायरनमेंट, पर विचार करना होगा। और इस विचार को, मुमकिन तौर पर, इस पोस्ट से आगे बढ़ना होगा।
आजतक न्यूज चैनल में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके पत्रकार दीपक शर्मा की एफबी वॉल से.
वे कौन से तनाव-दबाव रहे होंगे जिन्होंने विकास सक्सेना की जान ले ली?
Amitaabh Srivastava : न्यूज़रूम में चीख-चिल्लाहट, भागदौड़ और झल्लाहट के माहौल के बीच सातवें फ्लोर से आउटपुट डेस्क से छठे फ्लोर पर असाइनमेंट डेस्क को फोन जाता था कि ओबी वैन फलां जगह अभी तक क्यों नहीं पहुंची है, रिपोर्टर लाइव चैट के लिए खड़ा क्यों नहीं हुआ है या गेस्ट का फ्रेम क्यों नहीं मिल रहा है और अगर विकास शिफ्ट में होता था तो इनमें से हर मसले पर हर मुमकिन कोशिश करके समाधान निकालने में लग जाता था। नोक-झोंक भी चलती रहती थी और चुहलबाज़ी भी। आउटपुट हल्ला मचाए तो सीधे फोन मिलाकर कहता- सर ये फलाने जी को ज़रा समझाइए, ओबी के लिए लड़ रहे हैं, ब्रेकिंग न्यूज़ कबसे पड़ी हुई है, चलवा नहीं रहे हैं।
बहुत मस्तमौला ज़िंदादिल इन्सान था। भला आदमी। आज तक में हमारा सहयोगी। सीनियर का लिहाज करना और जूनियर को बड़े की तरह समझाना-सिखाना। सबसे शिष्टता से व्यवहार करना। उसके आज अचानक गुज़र जाने की ख़बर ने बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है।
वे कौन से तनाव-दबाव रहे होंगे जिन्होंने जाने कबसे दिल-दिमाग़ पर हथौड़े मार-मार कर उसकी जान ले ली? वो नौकरी की चिंताएं थीं या मध्यमवर्गीय जीवन के घर-परिवार की उलझनें? इन सवालों का जवाब यकीनी तौर पर अब शायद ही मिल पाए। लेकिन चालीस पार की उम्र का हंसता-मुस्कुराता इन्सान बेजान होकर हमारे देखते-देखते राख में सिमट गया।
बहुत तकलीफदेह है।
टीवी पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.