Abhimanyu Shitole राहुल ने आत्महत्या कर ली… ! यह दुखद खबर जब से सुनी है मन उदास है। राहुल और मैं करीब साढ़े तीन-चार साल tv9 में एक साथ रहे। tv9 लॉन्च होने से पहले से वह मेरे साथ टीम में था। बेहद सौम्य, शालीन और अतंरमुखी लड़का। आंखों में हजार सपने पाले हुआ था। बोलता कम था, बस जो काम दो, वह पूरे मन से करता था। वह मेरे साथ प्रोडक्शन में था। कभी डे शिफ्ट, कभी नाइट शिफ्ट, कभी डे-नाइट दोनों एक साथ… नाराज होता था, लेकिन अपनी नाराजगी भी मन में ही दबा कर रखता था।
संजीदा और साफ दिल इतना था कि अगर किसी ने कुछ बोल दिया था तो उसकी आंखों में आंसू आ जाते थे। काम के प्रति जिम्मेदार और कुछ अच्छा करने की ललक उसमें भरी थी। एक दिन राहुल मेरे पास आया बोला, सर मुझे भी स्क्रिप्ट लिखना सिखा दो। उस दिन उसे स्क्रिप्टिंग की कुछ बुनियादी बातें बताई थी। बाद में वह लिखने लगा। उसे स्क्रिप्टिंग में मजा आने लगा। कुछ दिन बाद आकर बोला आपको मेरी लिखी स्क्रिप्ट कैसी लगती है? मैंने कहा टेक्निकली तो ठीक है, लेकिन शब्दों से खेलना भी सीख लो तो मजा आ जाएगा।
स्वर्गीय राहुल शुक्ला
धीरे-धीरे वह शब्दों से खेलना भी सीख गया। अब वह प्रोडक्शन के साथ-साथ स्क्रिप्टिंग भी करने लगा। उसकी लगन ने उसे पर्दे के पीछे से निकाल कर ऑन स्क्रीन कर दिया। हमारा राहुल एंकर भी बन गया। उस दिन मैं बहुत खुश हुआ था। पहली बार जब राहुल ने एंकरिंग की थी मैंने राहुल को उस दिन दिल से बधाई दी थी और कहा था, अब तुम्हारे लिए रास्ता खुल गया है, पीछे मत पलटना… राहुल ने जबाव में इतना ही कहा था, ‘सर! मैं पूरी मेहनत करूंगा।’
सोमवार की सुबह लखनऊ से विनय शुक्ला का फोन आया। विनय भी हमारा tv9 का पुराना साथी है। वह मुझसे राहुल की खबर की पुष्टि करना चाहता था। उसे भी मेरी तरह राहुल की आत्महत्या वाली बात पर भरोसा नहीं हो रहा था। हालांकि वह मुझसे पहले गिरीश गायकवाड से इस खबर की पुष्टि कर चुका था। इस खबर के बाद से मन बिल्कुल खिन्न है। tv9 छोड़ने के कुछ महीनों बाद सबसे संपर्क टूट गया था।
कुछ साथी अब भी फोन करके याद करते हैं, लेकिन राहुल का कभी फोन नहीं आया और अब इसके लिए उसे डांटने या शिकायत करने का मौका भी नहीं है। रविवार को जब से यह मनहूस खबर सुनी है, बारबार राहुल का चेहरा आंखों के सामने आ रहा है। भगवान जाने क्या वजह रही होगी कि उसने खुद को खत्म करने का फैसला लिया। अब तो सिर्फ इतनी ही प्रार्थना है कि हे भगवान उसकी अशांत आत्मा को जरूर-जरूर-जरूर शांति देना। और हाँ एक प्रार्थना और है इस बार उसे इतना कलेजा जरूर देना कि वह अपनी परेशानी से लड़ सके, अपना मन अपने दोस्तों के सामने खोल सके।
लेखक अभिमन शितोले मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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