समाचार पत्र कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेतनमान लागू न किए जाने का उनके जीवन पर कितना बुरा असर पड़ रहा है, इसी के एक उदाहरण हैं मुखी चौधरी। दैनिक जागरण की कानपुर यूनिट में डाइरेक्टर सतीश मिश्रा से मुखी चौधरी मिन्नतें करते रहे, लेकिन उनका दिल नहीं पसीजा और वह धन के अभाव में इलाज न करा पाने के कारण अपनी मां को नहीं बचा पाए। पैसा भी वह अपनी कमाई से अग्रिम धन के रूप में मांग रहे थे। उनके आवेदन पर कई वरिष्ठ प्रबंधकों ने हस्ताक्षर भी कर दिए थे, लेकिन उन्हें धन तो मिला नहीं, उलटे उन्हें नौकरी से भी बेदखल जरूर कर दिया गया।
हैरत की बात यह है कि कानपुर में मुखी को तबादले के बाद से आज तक यह नहीं बताया गया कि उनका एचआरडी कौन है। छुट्टी लेने पर उनसे यह जरूर पूछा जाता था कि अपने एचआरडी को सूचित क्यों नहीं किया, लेकिन यह किसी ने नहीं बताया कि उनका एचआरडी कौन है। इसी एचआरडी के खेल में उन्हें लगातार प्रताडि़त किया गया। भटकते हुए वह सतीश मिश्रा तक पहुंचे तो वहां उन्हें धमका दिया गया और साफ मना कर दिया गया कि नौकरी करना है तो करो, कोई पैसा नहीं मिलेगा। अब कार्यालय भी आने की जरूरत नहीं है। मुखी ने अपनी जरूरत पर जोर दिया तो उनकी पिटाई कर दी गई।
यह वही जागरण प्रबंधन है जो प्रधानमंत्री राहत कोष में धन देने के लिए इन्हीं कर्मचारियों की सैलरी से कटौती करता है और प्रधानमंत्री के साथ फोटो खिंचवाकर अपनी ताकत दिखाने का ढोंग रचता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन लोगों से दूरी न बनाई तो निश्चित ही ये लोग उनकी छवि को मटियामेट कर देंगे। मुखी के आवेदन और प्रधानमंत्री के साथ फोटो नीचे दी जा रही है, जो इनकी चिरकुटाही का जीता जागता नमूना है।
Fourth Pillar एफबी वॉल से