Ajit Anjum : ये साहब बड़े पत्रकार हैं और हमारे 25 साल पुराने मित्र भी… लेकिन कैसे अर्धसत्य परोसकर डॉक्टर पंकज नारंग की हत्या को हिंदू की हत्या बताकर एक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं …सेतिया जी, मारने वालों में भी 5 हिंदू थे.. आप जैसों के लिए ही इलाके की डीसीपी मोनिका भारद्वाज ने ट्वीट करके जानकारी दी है… एक बार पढ़ लीजिए. उसके बाद भी अगर आपकी यही राय रही तो सलाम आपकी मुहिम को.
हकीकत ये है कि मामूली बात पर पहले दो लड़के, फिर उनके बुलाने पर आए 7-8 लोग हिंसक थे.. डॉक्टर पंकज नारंग को उनके 7 साल के बेटे के सामने, परिवार के सामने और छतों से झांक रहे पड़ोसियों के सामने पीट पीटकर मार डाला.. 7 साल का मासूम अपने पिता को बचाने के लिए चिल्लाता रहा लेकिन उन्मादी और क्रूर भीड़ ने एक न सुनी… वो तब तक डॉक्टर नारंग को पीटते रहे, जब तक वो मरणासन्न न हो गए.. पुलिस के पहुँचने तक देर हो चुकी थी… कातिल न हिंदू थे, न मुसलमान थे.. हिंसक, क्रूर और वहशी थे.. जिन पर एक मासूम की चीखों का भी कोई असर नहीं पड़ा… इन सबको सख्त से सख्त सजा मिले..
Sanjaya Kumar Singh : अजय सेतिया (Ajay Setia) पुराने मित्र और पत्रकार हैं। इसीलिए इनकी पोस्ट एक घंटे में 12 लोग शेयर करते हैं और 14 लोग लाइक यानी पसंद करते हैं। इनकी खबर और सूचना गलत हो सकती है। स्रोत गलत हो सकता है। उस पर इनका भरोसा भी गलत हो सकता है। इन्हें इलाके के डीसीपी के ट्वीट पर भरोसा ना हो यह भी संभव है। पर इस चाहत का क्या किया जाए?
क्यों नहीं हत्यारों को हत्यारे की ही तरह देखा जाए। हिन्दू मारे तो क्षम्य और मुसलमान मारे को अक्षम्य – ऐसा क्यों होना चाहिए? अगर किसी मुसलमान के मारे जाने पर ज्यादा शोर मचता है तो आप उसे ऐसे क्यों नहीं देखते हैं कि वे अल्पसंख्यक हैं और उनका ख्याल रखना भी बहुसंख्यकों की जिम्मेदारी है। अगर कोई मुसलमान गलत करता है तो सभी मुसलमान कैसे गलत हो सकते हैं। आप गलत करने वालों को सजा दीजिए पर होता यह है कि गलत करने वाले जो पकड़े या फंसाए जाते हैं वे अदालत से बरी हो जाते हैं। फिर ऐसी सोच और चाहत क्यों? वह भी तब जब मामला हिन्दू मुसलिम झगड़े का ना हो। अगर था भी तो आप आग में पानी डालेंगे या घासलेट?
किसी को भी मार दिया जाना बुरा है। मरने वाला जो हो पीड़ित है। मरने वाला और मारने वाला हिन्दू मुसलमान क्यों होना चाहिए? मारने वाला जो हो हत्यारा है। और अगर आप दोनों मामलों को बराबर कर ही दे रहे हैं तो ये क्यों नहीं समझते कि किसी को घर से खींच कर मार दिए जाने और सड़क पर मारे जाने में अंतर है। योजना बनाकर मारे जाने और संयोग से गुस्से में झगड़े की स्थिति बन जाने में अंतर है। किसी को मारने के लिए गलत अफवाह फैलाना और बेबात ही सही, झगड़ा हो जाने पर मारे जाने में फर्क है। वैसे इनके सवाल का जवाब है, “दादरी में हिन्दुओं ने मुसलमान को योजना बनाकर मारा था यहां डॉक्टर नारंग को योजना बनाकर नहीं मारा गया और मारने वाले सभी मुसलमान नहीं हैं।” होते भी तो सांप्रदायिक सद्भाव के लिए ऐसे सवाल नहीं उठाना चाहिए।
नीचे पत्रकार अजय सेतिया की वो पोस्ट है जिसे शेयर करके पत्रकार अजीत अंजुम और संजय कुमार सिंह ने उपरोक्त बातें लिखी हैं….
Ajay Setia : दादरी में भीड के एक मुसलिम अखलाक को मौत के घाट उतारने पर जो बवाल होता है, वही बवाल भीड के दिल्ली में एक हिंदू डा.पंकज को मार देने पर क्यों नहीं होता.
Pankaj Kumar
April 1, 2016 at 11:06 am
अजय सेतिया, बेहद धार्मिक संकीर्णता वाला व्यक्ति है। फेसबुक पर उसने मुझे सिर्फ इसलिए बलॉक मारा क्योंकि जब वह मुसलमानों के लिए जहर फैलाती बाते लिखता तो मैं हमेशा विरोध करता। काहे का विद्वान जब सोच इतने दोयम दर्जे की है। उत्तराखंड में सत्ता सुख भोगने के बाद इन मोदी के आंखों का सितारा बनने की जुगत में निम्नतम स्तर पर उतर आए सेतिया साहब