Sheetal P Singh : दौसा, राजस्थान से दिल्ली आकर एक किसान ने केजरीवाल की रैली के दौरान पेड़ पर फन्दा डालकर आत्महत्या की कोशिश की। राजस्थान और केन्द्र में पूर्ण बहुमत की बीजेपी की सरकारें हैं पर वहाँ का किसान भी आत्महत्या कर ले तो टीवी चैनल केजरीवाल को कैसे दोषी सिद्ध कर सकते हैं, बीजेपी का नाम भी लिये बिना, यह इस समय देखने लायक है! किसान “आप” की रैली में फाँसी चढ़ा : इसको तो रिपोर्ट करो, गढ़ो, फैलाओ… लेकिन किसान फाँसी क्यों चढ़ा : इसे पूरी तरह गोल कर जाओ… मीडिया के पाखंड का सूक्त…
Ajay Bhattacharya : वो फांसी लगाता रहा और तुम लाइव रिपोर्टिंग में लगे रहे. कैमरा छोड़कर उसे थाम लेते तो एक जिंदगी बच जाती. जो तुम्हारी खबर से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण थी. खुद को मीडिया वाले कहते हो?
Peri Maheshwer : If we are done with AK and AAP, let us come to the brass tacks.
– The farmer is from Rajasthan, a BJP ruled state.
– He was talking about crop failure and no government help.
– He was shouting slogans against Vasundhara Raje.
– He travelled all the way to Delhi to make a point at an AAP rally.
– Modi talks about a help to farmers from crop failures
– Just Vidarbha, BJP ruled, has 600 suicides in 3 months!!!
Any one on policy, governance, promises, responsibility and accountability. Beyond politics please..
Rama Shanker Pandey : दिल्ली में किसान की मौत के जिम्मेदार क्या केवल नेता हैं? जब किसान वहां खुदकुशी कर रहा था तो पत्रकार क्या कर रहे थे? उनकी एक कोशिश तीन बच्चों को अनाथ और एक पत्नी को विधवा होने से बचा सकती थी। लेकिन वो तो ब्रेकिंग न्यूज की तलाश में थे। अब माइक हाथ में लेकर अपना चेहरा चमका रहे हैं। थोड़ी तो शर्म कर लो। अब मौत पर तमाशा हो रहा है। न्यूज चैनल वालों की टीआरपी पर नजर है तो राजनेताओं की किसानों के वोट पर। किसान मरता रहा है और मरता रहेगा। हम सब संवेदनहीन हैं। हम सभी उस किसान की मौत के गुनहगार हैं।
Priyabhanshu Ranjan : BJP ने राजस्थान के रहने वाले किसान की खुदकुशी की खबर आने के बाद आनन-फानन में प्रेस कांफ्रेंस कर AAP पर हमला बोला। बड़ा अच्छा किया। लेकिन संबित पात्रा इस सवाल का जवाब बड़ी खूबसूरती से टाल गए कि केंद्र और राजस्थान में BJP की सरकार होने के बावजूद किसान को खुदकुशी क्यों करनी पड़ी !!!
Surbhi Sondhi : Except one AAP volunteer Joginder who tried to save Farmer, everyone failed! From Police, to Media! Rally continued is shame too! Really SAD.
Qs to MEDIA
a) Who climbed tree to save Farmer?
b) Who took him to Hospital?
c) What were u doing in rally afterwards?
d) What ws Delhi Police doing?
Many tv reporters were also there under the tree reporting with guest teachers, but shameless reporters could not help that farmer, he died.. Media could not reach to farmers who r dying everyday. A farmer came to media and commits suicide in front of media in Delhi. Gajendra’s crop was damaged, govt could not help him. He committed suicide in Delhi in front of media. What a situation, a farmer had to commit suicide in front of media in Delhi so that his voice can be heard by Modi govt. Amazing and shocking…what has happened within one year of BJP rule that farmers are committing suicide in such a large number… Modi jee ne Bihar main rally kiya tha aur BOMB phata tha…ager aisa band hone lagega…..then harek rally main koi sucide karne aa jaayega… Vasundhara raj forced him? to go to kejriwal rally to commit suicide, Gajendra was resident of rajasthan and his voice remain unheard and hence he chose to commits suicide in Delhi in front of cameras.
Jitendra Narayan : संवेदनहीन राजनैतिक नेताओं, शासन व्यवस्था, कॉरपोरेट और मीडिया सहित पूरी दलाल व्यवस्था के गले में फाँसी का फंदा लगाने का वक़्त आ गया है….!!!
Pramod Tambat : राजस्थान के किसान ने केजरीवाल की सभा के दौरान आत्महत्या कर ली। सारे चैनल आम आदमी पार्टी के पीछे लग गए हैं। क्या ऐसा नहीं लग रहा कि भाजपा की सरकारों को बचाने के लिए आप को निशाना बनाया जा रहा है। आखिर किसान ने आत्महत्या क्यों की इसकी खोजबीन क्यों नहीं की जा रही है?
Sudhir Mishra : वो कतई मरने के लिए पेड़ पर नहीं चढ़ा था। अपने जूते उसने पेट में कपड़ों के भीतर घुसा रखे थे। जाहिर है, उसे नीचे आना था। वापस जाना था। चिट्ठी में लिखा था कि वो बहुत गरीब है, खेत में कुछ बचा नहीं, पिता जी ने घर से बाहर कर दिया और उसके तीन बच्चे हैं। वो घर कैसे जाए ? साफ है, वो मरने के इरादे से नहीं बल्कि अपनी परेशानियों पर ध्यान आकृष्ट करना चाह रहा था, फिर क्या हुआ जो उसकी मौत हो गई। वो कौन लोग थे, जो सब देख रहे थे-जरा ठीक से जांच होनी चाहिए। तमाशा बनवाने वालों ने कुछ ज्यादा बड़ी हरकत कर दी है-
Sanjeev Chandan : मर गया नत्था, दिल्ली में हुआ पीपली लाइव…. !
Abdul H Khan : एक न्यूज चैनल पर मौके पर मौजूद एक प्रत्यक्षदर्शी कह रहा है कि वो आदमी नरेंद्र मोदी- वसुंधरा के खिलाफ नारे लगा रहा था, और फिर ये कदम उठाया।
सचिन तिवारी : माफ करना गजेन्द्र, गरीब किसान की इस देश में कौन सुनता है! (बस तुम्हारी मौत न्यूज़ चैनल वालों की टीआरपी बढ़ाने वाली ही न निकले!)
Ankit Kumar : एक किसान मर रहा था और कुछ लोग हंस रहे थे कुछ भाषण दे रहे थे की किसानो का भला कैसे हो और कुछ् कैमरा लेकर उसे न्यूज़ बना रहे थे ताकि किसानो के भले के टीवी पर बुद्धिजीवियों को बिठाकर घंटो “विचार विमर्श” कर सके.. न्यूज़ चैनल को TRP मिल जाएगी … भाषण देने वालो को सहानुभूति … किसानो का क्या होगा पता नहीं …वो किसान मर गया इसकी जिम्मेदारी किसकी बनती है और क्या सजा होनी चाहिए शायद ही हमारा तंत्र ये सोच पाए … राजनीती में जिंदगियों की कीमत नहीं होती.
आशीष सागर : सात राज्यों की सरकार के नेताओं ने कहा कि किसानों ने हमारे यहाँ आत्महत्या नहीं की है. सिर्फ महाराष्ट्र ने स्वीकार किया कि किसान हमारे यहाँ आत्महत्या कर रहा है. उत्तर प्रदेश (समाजवादी सरकार), पंजाब, मध्यप्रदेश (बुंदेलखंड) और अन्य प्रान्त में मरते हुए किसान अगर झूठ बोल रहे हैं, समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रही रोज की खबरें अगर गलत हैं तो केंद्र और राज्य सरकार हम सब पर क़ानूनी कार्यवाही करेl अगर हम सही आप झूठे और मक्कार हों तो अपने नशे में जी रहे नेताओं, अफसरों, लेखपाल को लेकर बेशर्मी से जिंदा रहो क्योंकि लाशों पर शासन अब अधिक साल आप भी नही कर पाओगेl …ये देखिये किसानों की बिटोलियाँ / बेटियां अबकी साल ब्याही नहीं जाएगी. उनके घर शहनाई नहीं बजेगी और उनके हाथ पीले नहीं होंगे. .हम किसानों की आवाजें हैं, सुन रहे हो न. गत 21 अप्रैल को कानपुर जोन -बुंदेलखंड के बाँदा, महोबा,जालौन में सात किसान और आत्महत्या कियेl नामुरादों की सरकार है, मक्कारी का जलवा है… जरा देखो तो इस देश में किसान आत्महत्या का बलवा हैl झूठे बयानों से मौतों को नकारते, सुनयोजित तरीके से किसानों को मारते. इनकी नीयत में अंग्रेजी लगान है, मेरा नेता चोर है – बेईमान हैl
Shubh Narayan Pathak : व्यवस्था हत्यारी क्यों हो रही है? व्यवस्था= सरकार, संसद, राजनेता, मीडिया, पुलिस, नौकरशाह, जज… संदर्भ- बताने की जरुरत महसूस होती नहीं होती। स्पष्टता के लिए तत्कालिक तौर पर दिल्ली सीएम की सभा में राजस्थान के किसान की आत्महत्या को ले सकते हैं।
Naval Kant Sinha : हम सबको बहुत-बहुत मुबारकबाद…. राजस्थान के एक किसान गजेन्द्र ने फसल बर्बाद होने के चलते दिल्ली आकर आम आदमी पार्टी की रैली में पेड़ पर लटककर जान दे दी। उसके तीन बच्चे हैं और आज उसकी चचेरी बहन की शादी है। चलिए अब तो बनी किसान की आत्महत्या, एक खबर…. टीवी चैनल खबर चला रहे हैं और कल हमारे अख़बार वाले साथी भी खबर को पेज वन पर छापने को मजबूर होंगे क्योंकि दिल्ली की भीड़ में हुई है आत्महत्या। राजस्थान की सरकार भी इंकार नहीं कर पायेगी और दे देगी मुआवज़ा। हाँ, इस किसान पर मोटिवेटेड होकर जान देने का आरोप लगाया जा सकता है। नेता किसानों की मौत बेच रहे हैं, इस मौत को भी बेच लेंगे। लेकिन क्या एक किसान को मरने के लिए भी दिल्ली की किसी भीड़ में जाना पड़ेगा, जहाँ वहां प्रेस-मीडिया के कैमरे मौजूद हों? कल भी किसानों का दर्द लिखा था तो किसी साथी ने कहा कि ये मीडिया की कॉर्पोरेट मजबूरी है। सच भी है। किसान न मीडिया की, न सियासत की और न हमारी प्राथमिकता हैं, तो मरेंगे ही। उन बेचारो के पास कोई विकल्प भी तो नहीं। मुआवज़े की उम्मीद के साथ गजेन्द्र को श्रद्धांजलि…
डॉ. अनिल दीक्षित : जंतर-मंतर पर यदि कोई इंसान आत्महत्या कर ले तो सियासत के मुंह पर थूकने का वक़्त है… दिल्ली हमें आज तुझपे शर्म आ रही है। ठगिनी है तू, कितनी उम्मीदों से हम अपना नुमाइंदा चुनकर भेजते हैं और तू उसे हम से ही दूर कर देती है। उसे लोकतंत्र का राजा बनाकर हमें यूं रुलाती है। अनिश्चितकाल के लिए राजकीय शोक होना चाहिए, हमारा अन्नदाता मरा है आज।
Shahnawaz Malik : पेड़ से लटकती गजेंद्र की लाश और उनकी चिट्ठी हंगामा खड़ा कर चुकी है। यही मौका है जब सिंहासनों को हिलाया या ढहाया जा सकता है। आप किसी भी आंदोलन से जुड़े हों, कुछ देर के लिए उसे रोककर आगे आ जाएं। पेड़ से टंगी गजेंद्र की लाश में इस देश के बेबस किसानों की तस्वीर झलकती रही है। यह ख़ुदकुशी दिल्ली में नहीं होती तो हलचल भी नहीं होती। अभी तक एक हज़ार से ज़्यादा किसानों की ख़ुदकुशी का नोटिस किसने लिया? हम गजेंद्र की मौत पर सामने आ सकते हैं, आ जाएं।
Brijesh Kumar Mishra : इन दोगले मीडिया वालों से कोई पूछने की हिम्मत करेगा कि “दूसरों पर चिल्ला चिल्ला कर गजेन्द्र की मौत का तमाशा बना कर अपनी TRP बढाने में लगे हो, क्या तुम लोगों ने वहां मौजूद अपने सैकड़ों पत्रकारों और फोटोग्राफरों से ये पूछा कि उस किसान की मौत की कमेंट्री करने के बजाय उन लोगों ने उसे बचाने की कोशिश क्यों नहीं की?”
Vijay Rana : किसानों की मौत पर राजनीतिक रोटियां मत सेको. आप की रैली में उस अभागे किसान को आत्महत्या करने से रोका जा सकता था. लेकिन उसे समय पर नहीं रोका गया, सब लोग आप नेता, कार्यकर्ता और मीडिया, तमाशा देखते रहे. किसानों का संकट एक राष्ट्रीय संकट है. सभी राजनितिक दलों को इसका मिल कर हल सुझाना चाहिए, जबकि विपक्षी दल किसानो में दहशत फैला रहें हैं. उनकी दुर्दशा का राजनितिक इस्तेमाल कर रहे हैं. ये निहायत शर्मनाक है.
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