Hemant Sharma
तो वही हुआ जिसकी आशंका जताई जा रही थी। एक के बाद एक चौदह महिलाओं द्वारा मोबाशर जावेद अकबर (एमजे अकबर) पर यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाए जाने के बावजूद देश के कई प्रतिष्ठित अखबारों का संपादक रहा यह व्यक्ति भारत सरकार के विदेश राज्यमंत्री के पद पर काबिज़ रहेगा। इन महिलाओं में से कई अकबर से तीस या चालीस साल तक छोटी थीं और एक तो उसके दोस्त की अठारह बरस की बेटी ही थी। बाकी या तो उसकी सहकर्मी रही हैं या वे, जिन्होंने उसे देखकर, उसकी किताबें पढ़कर या उसे आदर्श मानकर पत्रकारिता में कदम रखा था।
कहना मुश्किल है कि वह पत्रकारिता का सबसे घृणित चेहरा है या भारतीय राजनीति का। ‘पार्टी विद डिफरंस’ का डंका बजाने वाली घोर संस्कारवादी पार्टी- जिसकी लोकसभा स्पीकर एक महिला हो और जो देवी अहिल्याबाई होलकर के न्याय की दुहाई देने का कोई मौका न चूकती हों, और जिसका मातृ संगठन भारतीय संस्कृति से आए इस वाक्य का जिक्र, अपने स्वयंसेवकों को तैयार करने में करता हो कि – हमें गर्व है हम ऐसे देश की भूमि पर पैदा हुए, जहां नारी को पूजा जाता हो, उसके कर्ताधर्ता एक ऐसे दंभी, पाखंडी और मक्कार को अपनी सरकार का उप-दूत बनाए रखने पर आमादा हैं, जिसके चारित्रिक पतन के किस्से दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के न्यूजरूम के भीतर और बाहर सैकड़ों लोग सुनाते मिल जाएंगे, जिन्होंने उसे नजदीक से देखा और पहचाना है।
राजनैतिक दृष्टि से देखें तो लगातार लोकप्रियता में नीचे जा रही केंद्र सरकार के लिए यह सुनहरा मौका था महिलाओं को अपने साथ जोड़ने का। जिस मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए पूरी पार्टी अपने अध्यक्ष और प्रधानमंत्री की जय-जयकार कर रही थी, वह देश की आधी आबादी की सहानुभूति बटोरने में क्या सिर्फ इसलिए पिछड़ गई कि आरोपी उन्हीं की पार्टी का एक मंत्री निकला? निर्भया मामले में पार्टी और उससे जुड़े सारे संगठन महिलाओं की सुरक्षा की मांग कर इंडिया गेट पर मोमबत्ती लगाने वाली युवतियों के साथ खड़े थे।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि कुछ साल में वैसे ही आंदोलन को- जिसमें तो सज़ा की भी गुंजाइश बहुत कम है- सत्तारुढ़ भाजपा छूने तक को तैयार नहीं? उलटे, पार्टी की ही कुछ महिला नेत्रियों से उन महिलाओं पर चारित्रिक आक्रमण करवाए जा रहे हैं, जिन्होंने दस या बीस साल तक अपने भीतर मौजूद एक काले अध्याय को पहली बार बाहर निकाला और पूरे पुरुष समाज को कलंकित होने से बचाया।
आरोप सिद्ध होंगे या नहीं होंगे, रपट लिखी जाएगी या नहीं, किसी को सज़ा मिलेगी या नहीं- इन सब बातों से ऊपर जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह यह है कि अब वे महिलाएं चैन से सो सकेंगी। क्या आपको लगता है कि ऐसे विषय पर कोई महिला झूठ बोलेगी? अगर वह बीस साल बाद भी अपने पिता के मित्र या पिता की उम्र के किसी ‘बॉस’ के बारे में इतने विस्तार से कोई बात बता रही है तो इस लावे ने इन दो दशकों में उसकी मन:स्थिति को कितना नुकसान किया होगा इसकी कल्पना से भी सिहरन उठती है।
लेकिन, मोबाशर जावेद अकबर ऐसे भोले भी नहीं हैं। उन्हें पता है कि क्या करना है और कैसे करना है। उन्होंने देश में लौटते ही दिल्ली और मुंबई की जानी-मानी कानूनी सलाहकार फर्म करंजावाला एंड कंपनी से बात की और अपनी पार्टी के चिंतित चेहरों को आश्वस्त किया कि कानूनी रूप से ये चौदह की चौदह महिलाएं कितनी कमजोर हैं। इसके बाद एक आसान केस को चुना और 97 (सत्तानवे) वकीलों की एक पूरी फौज के साथ पटियाला हाउस कोर्ट पहुंचे कि मेरे ‘मान’ की ‘हानि’ हुई है। अब प्रिया रमानी और बाकी तेरह कैसे नहीं डरेंगी?
अकबर साहब! इन्हें डराने की कोशिश मत कीजिए। बिलकुल भी नहीं। आपके इसी गुस्से और ताव के कारण तो ये दो दशक से चुप थीं। यह खेल अब ज्यादा नहीं चलेगा। हो सकता है आपको, आपकी पार्टी बचा ले। मंत्री पद भी नहीं छीने। लेकिन लोगों और समाज की नजरों में आपका जो पतन इन चौदह कहानियों से हुआ है, उसके बाद विदेश मंत्रालय में तो भले ही आपको बैठने की कुर्सी मिल जाए, लेकिन यकीन मानिए, किसी भारतीय परिवार में आपको बैठने की जगह मिलना मुश्किल होगी। और हां, मंगलवार से विदेश मंत्रालय में आपके साथ काम करने वाली देश की बहू-बेटियों से अब जब आप नज़रें मिलाएंगे तो गौर से देखिएगा कि, क्या उनकी आंखों में अब भी आपके प्रति वही श्रद्धा, विश्वास और सम्मान का भाव मौजूद है? ‘मीटू’ की सीख भी यही है और आपकी सज़ा भी…।
उपरोक्त विशेष संपादकीय इंदौर से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘प्रजातंत्र’ में प्रकाशित हुआ है जिसे इस अखबार के प्रधान सम्पादक लेखक हेमंत शर्मा ने लिखा है.