संजय कुमार सिंह-
बच्चे को बच्चों से पिटवाने वाली शिक्षिका का ‘माफीनामा’ आ गया है। वे खुद को विकलांग (दिव्यांग) बता रही हैं और इसलिये बच्चों को बच्चों से पिटवाने का काम करती थीं। उनके अनुसार, वीडियो संपादित भी है।
‘सरकार’ को एतराज है कि बच्चे की पहचान उजागर हो जा रही है। शिक्षक के समर्थक और प्रचारक कह रहे हैं कि पहले भी वे ऐसा करती रही हैं। पर पहले वाले बच्चे का इस्तेमाल Victimhood के लिए नहीं हो सकता है। इसलिए मामला खत्म कर दिया जाये।
तो हुआ यह कि जिसे जेल में होना चाहिये था उसे बचा लिया गया। पहचान उजागर होने के नाम पर वीडियो का फैलना रुक गया और कोई शिकायत नहीं दर्ज हुई क्योंकि पुलिस और कोर्ट के चक्कर में कौन पड़े। यही है डबल इंजन वाला राम राज्य। राम नाम सत्य है।
महेंद्र यादव-
तृप्ता त्यागी के मकान और स्कूल की इमारत पर बुलडोजर कब चलेगा? मुजफ्फरनगर के मंसूरपुर थाना क्षेत्र खुब्बापुर गांव की तृप्ता त्यागी को तुरंत अरेस्ट किया जाए। तृप्ता ने अब तक पढ़ाई के नाम पर जिन बच्चों के मन में जहर भरा है, उनकी काउंसिलिंग की जाए। सारा खर्चा तृप्ता त्यागी से वसूल किया जाए!!
अरुणेश सी दवे-
तृप्ता त्यागी को दोषी मानने, दंड देने का कोई मतलब नहीं है। ये नफ़रत बतौर राष्ट्र हमने अपने नागरिकों में भरी है। भारत की न्यायपालिका संस्थागत तरीके से फैलाई जा रही नफ़रत पर मौन रही। भारत की कार्यपालिका, मीडिया इसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल थी। भारत के पढ़े-लिखे नागरिक डाक्टर, इंजीनियर, शिक्षाविद जैसे तमाम वो लोग जिन्हें इस देश ने अपने पैसों से पढ़ाया था इस नफ़रत के प्रसार के भागीदार हैं।
अब समय फसल काटने का आ गया है। पढ़ें लिखे अल्पसंख्यक नौजवान विदेशों का रूख करेंगे। अमीर अल्पसंख्यक अपनी संपत्ति बेच दूसरे देशों में नागरिकता लेने लगेंगे। पैसों के पलायन से अर्थव्यवस्था डगमगाने लगेगी। आइसिस, अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठन नौजवानों को भड़का आतंकवादी गतिविधियों को सरअंजाम देंगे। लंबी फेहरिस्त है, हमारे बगल के देश में यह सब कुछ घट चुका है। धार्मिक राष्ट्रवाद एक ऐसा वायरस है जो देश को अंदर ही अंदर खोखला करता जाता है।
संपूर्ण फिसलन से हम महज एक चुनाव दूर हैं और वो चुनाव भी विपक्षी गठबंधन जीत पाए इसकी संभावना नगण्य है। धन, सत्ता और नफ़रत इन तीनों के गठजोड़ की ताकत असीम होती है। जब तुर्की जैसा संपन्न देश अपने को नहीं बचा पाया तो भारत के लिए उम्मीद रखना बेमानी है।