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उत्तर प्रदेश

यूपी में आरटीआई के तहत मांगी जानकारी तो देना पड़ेगा जुर्माना

अगर आप उत्तर प्रदेश में आरटीआई ऐक्ट (सूचना के अधिकार) के तहत जानकारी हासिल करने की सोच रहे हैं तो सावधानी के साथ कदम बढ़ाएं। अगर राज्य सूचना आयोग की चली तो वह आपको दंडित कर सकता है और आपको उस सरकारी विभाग को मुआवजा देने के लिए कह सकता है, जिससे आपने सूचना मांगी है। इससे भी परेशान करने वाली बात यह है कि आपको किस आधार पर मुआवजा देने को कहा जाएगा, यह भी पूरी तरह से सूचना आयोग की मर्जी पर निर्भर करेगा।

<p>अगर आप उत्तर प्रदेश में आरटीआई ऐक्ट (सूचना के अधिकार) के तहत जानकारी हासिल करने की सोच रहे हैं तो सावधानी के साथ कदम बढ़ाएं। अगर राज्य सूचना आयोग की चली तो वह आपको दंडित कर सकता है और आपको उस सरकारी विभाग को मुआवजा देने के लिए कह सकता है, जिससे आपने सूचना मांगी है। इससे भी परेशान करने वाली बात यह है कि आपको किस आधार पर मुआवजा देने को कहा जाएगा, यह भी पूरी तरह से सूचना आयोग की मर्जी पर निर्भर करेगा।</p>

अगर आप उत्तर प्रदेश में आरटीआई ऐक्ट (सूचना के अधिकार) के तहत जानकारी हासिल करने की सोच रहे हैं तो सावधानी के साथ कदम बढ़ाएं। अगर राज्य सूचना आयोग की चली तो वह आपको दंडित कर सकता है और आपको उस सरकारी विभाग को मुआवजा देने के लिए कह सकता है, जिससे आपने सूचना मांगी है। इससे भी परेशान करने वाली बात यह है कि आपको किस आधार पर मुआवजा देने को कहा जाएगा, यह भी पूरी तरह से सूचना आयोग की मर्जी पर निर्भर करेगा।

ये सारी चीजें उत्तर प्रदेश सूचना आयोग द्वारा तैयार किए गए आरटीआई रूल्स में शामिल हैं। ड्राफ्ट रूल्स के क्लॉज 10 में ‘अवॉर्ड ऑफ कंपनसेशन पर कहा गया है, ‘किसी शिकायत या अपील की सुनवाई के दौरान, कमिशन ऐसी दूसरी कॉस्ट वसूल सकता है और सही पक्षों को ऐसा मुआवजा दे सकता है। केस में तथ्य और स्थिति पर विचार किया जाएगा।’ 

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आरटीआई कार्यकर्ताओं ने प्रावधान को लेकर नाराजगी जताई है। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव्स के आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक का कहना है, ‘यह आरटीआई ऐक्ट का उल्लंघन है। भला किसी आवेदक को कैसे दंडित किया जा सकता है? आवेदक पर किस आधार पर ऐसा मुआवजा या कॉस्ट लगाई जा रही है, इसका ब्योरा न दिया जाना समझ से परे है। अगर आवेदक अपने केस की सुनवाई स्थगित करने की मांग करता है तो इस आधार पर भी उसे कॉस्ट देने को कहा जाएगा।’ उन्होंने बताया कि क्लॉज 9 में जिक्र है, ‘आयोग को अगर यह लगता है कि सुनवाई स्थगित करने का कारण सही और पर्याप्त है तो वह रीजनबल कॉस्ट के भुगतान पर मामले के स्थगन की अनुमति दे सकता है।’ 

उत्तर प्रदेश सरकार ने फिलहाल ड्राफ्ट रूल्स को आम लोगों के बीच रखा है और शुक्रवार तक इस पर राय मांगी गई है। इसमें किसी अपील को वापस लेने को भी कानूनी बनाया गया है। नायक ने बताया, ‘हालिया मामलों में हमने देखा है कि कैसे आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले हुए हैं और यहां तक उनकी हत्या भी हुई है। उत्तर प्रदेश के ड्राफ्ट रूल्स आवेदक की मृत्यु होने की स्थिति में कमीशन को अपील या शिकायत को बंद करने की ताकत देते हैं। साथ ही इसमें कहा गया है कि किसी भी शिकायत को वापस भी लिया जा सकता है।’ 

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राज्य सूचना आयोग ने किसी आवेदक की अर्जी खारिज करने में कुछ नए आधार जोड़े हैं। ड्राफ्ट रूल्स में कहा गया है कि मांगी गई जानकारी गैर-उपलब्ध आंकड़ों का नए सिरे से कलेक्शन नहीं होना चाहिए। यह पूरी तरह से आईटीआई ऐक्ट के विपरीत है। सूचना से राहत की आस लगाने वाले आवेदकों के लिए ड्राफ्ट रूल्स में कागजी कार्रवाई को और बढ़ा दिया गया है।

नवभारत टाइम्स से साभार निधि शर्मा की रिपोर्ट

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