अमेरिका की उन्नति का मूल कारण है वहां की सामाजिक जागरूकता। इसी के चलते वहां की सरकार हो या फिर कोई व्यावसायिक संस्थान, अपनी मनमानी लोगों पर नहीं थोप सकती। वहां नागरिक अधिकारों को लेकर लोग सदैव सजग रहते हैं। वहां संरक्षणवाद के विपरीत प्रतिस्पर्द्धा को महत्व दिया जाता है। अमेरिका में एकाधिकार के ख़िलाफ़ कानून बने हुए हैं और यदि यह साबित हो जाये कि कोई कंपनी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर एकाधिकार को बढ़ावा दे रही है तो उसे भारी भरकम आर्थिक दंड देना पड़ता है या यदि सरकार चाहे तो उस कंपनी को दो-फाड़ भी कर सकती है। जबकि भारत में संभवतः ऐसा कोई कानून नहीं है। इसीलिए गोलवलकर के चेलों द्वारा सत्ता में आने के बाद भारतीय उद्योग और व्यापार को बहुत तेजी और योजनाबद्ध रूप से अंबानी और अडाणी के हवाले किया जा रहा है।
उधर अमेरिका में गूगल, ऐप्पल, फेसबुक और अमेजॉन के विशाल आकार और बाजार पर उनके बढ़ते हुए एकाधिकार को लेकर सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि ये दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनियां प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी कार्यों में संलग्न हैं जिसके परिणामस्वरूप ये बहुत विशाल हो गई हैं। इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा घट रही है। इसीलिए अमेरिकी कांग्रेस की अविश्वास उप-समिति के सामने गूगल, ऐप्पल, फेसबुक और अमेजॉन (GAFA) की स्पष्टीकरण देने के लिए बुधवार रात को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये पेशी हुई। जिसमें उनसे पूछा गया कि क्या उनकी कंपनियां बाजार में अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल करती हैं? कैम्ब्रिज एनेलेटिका वाले प्रकरण में हम यह देख चुके हैं कि फेसबुक के माध्यम से भारत जैसे विकासशील देशो में जनमत निर्माण में ये अपनी भूमिका किस तरह निभाते हैं।
दुनिया ने बुधवार रात को पहली बार वह ऐतिहासिक मौका देखा जब गूगल, फेसबुक, अमेजॉन और ऐप्पल जैसी दिग्गज टेलिकॉम कंपनियों के सीईओ को कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सफाई देनी पड़ी। इन सभी कंपनियों के सीईओ की अविश्वास (एंटीट्रस्ट ट्रायल) के मुद्दे पर अमेरिकी कांग्रेस में डेमोक्रैट्स और रिपब्लिकन सांसदों के सामने पेशी हुई और सासदों ने अलग-अलग सवालों के जरिये उन्हें घेरा। यह 1998 के बाद अब तक की सबसे बड़ी सुनवाई है।
अमेरिकी अविश्वास उप-समिति के चेयरमैन डेविड एन सिसिलाइन की अध्यक्षता में हुए इस परीक्षण के दौरान गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग, अमेजॉन के सीईओ जेफ बेजोस और ऐप्पल के सीईओ टिम कुक ने सच कहने की शपथ लेकर अपना-अपना पक्ष रखा।
पूछा गया कि वे प्रतिद्वंद्वियों को खत्म करना चाहते हैं?
इस दौरान सांसदों को अलग-अलग मुद्दों पर सम्बंधित सीईओ से सवाल पूछने का मौका दिया गया। जांच के दौरान इकट्ठे किए गए सबूतों और गवाहों से बातचीत के आधार पर भी इन से सवाल पूछे गए और आरोप लगाये गये कि क्या वे प्रतिद्वंद्वियों को खत्म करना चाहते हैं? जबकि कई बार सांसदों ने अपने सवालों से इन कंपनियों के दिग्गज अधिकारियों को चुप करा दिया या फिर बोलने का मौका ही नहीं दिया। अमेरिकी सांसद इन प्रमुख अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों की एक साल से जांच कर रहे हैं।
समिति के चेयरमैन डेविड एन सिसिलाइन ने इस परीक्षण के सम्बंध में कहा कि अमेरिकी लोगों के जीवन में इन कंपनियों के सीईओ की केंद्रीय भूमिका को देखते हुए इनसे पूछताछ महत्वपूर्ण है।
पिछले साल जून में जांच शुरू करने के समय सिसिलाइन ने कहा था, “हमारी अर्थव्यवस्था में एकाधिकारवादी शक्ति का विकास आज हमारे सामने आने वाली सबसे अधिक आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों में से एक है जो डिजिटल संस्थानों में बाजार की ताकत का एक नया रूप प्रस्तुत करती है।” समिति यह भी आकलन करना चाहती है कि क्या अमरीका में मौजूदा अविश्वास कानून, प्रतिस्पर्धी नीतियों और मौजूदा प्रवर्तन स्तर उन मुद्दों को निपटाने के लिए पर्याप्त हैं या नहीं, जिन्होंने हाल ही में इन सैक्टर्स में अपना प्रभुत्व कायम कर लिया है।
कोविड-19 महामारी के दौर में इन टेक्नोलॉजी कंपनियों की ताकत में हुई वृद्धि
कोरोना के इस वैश्विक संकट के दौर में जहां पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था गोते खा रही है लेकिन इन कंपनियों के मालिकों की सम्पत्ति में बेतहाशा इजाफा हो रहा है और इनके शेयर नित नई ऊंचाईया छू रहे हैं। इसीलिए GAFA की भूमिका को हमें ध्यान से देखना होगा। गूगल व फेसबुक एक ओर कोविड के भय को बेतहाशा बढ़ाने वाली सामग्री लोगों को परोस रहे हैं तो दूसरी तरफ इसके पैनिक को कम करने वाली सामग्री को दबाया जा रहा है। यह सब वैज्ञानिक सोच के प्रचार-प्रसार के नाम पर किया जा रहा है। दुनिया के सूचना-तंत्र के लगभग 95 फीसदी हिस्से को गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक और ट्विटर कंट्रोल कर रहे हैं, जो कि बहुत खतरनाक है। इसी प्रवृत्ति पर अमेरिकी कांग्रेस में जांच-पड़ताल की गई है। भारत में तो आप मुकेश अंबानी या गौतम अडानी को संसदीय समिति के सामने बुलाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। जबकि टेलीकॉम और पैट्रोकैमिकल में अंबानी का और पोर्ट्स, एयरपोर्ट, पॉवर, खाद्य तेल जैसे क्षेत्रों में अडानी का एकाधिकार है। जांच अभी पूरी नहीं हुई है।
लेखक श्याम सिंह रावत उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट हैं.