दिनेश पाठक-
मेरे बेटे के पेट में असहनीय दर्द उठा। ग्रेटर नोएडा स्थित यथार्थ अस्पताल लेकर भागा। इमरजेंसी में मौजूद स्टाफ ने फटाफट कुछ बोतलें आदि लगा दी। दो घण्टे बाद दर्द कम हुआ और मैं वापस घर आ गया। यह किस्सा एक मार्च दिन का है। शाम को उल्टियाँ शुरू हुईं। वह पानी भी नहीं पचा पा रहा था। इसी के साथ पेट में दर्द फिर शुरू हो गया।
बेटे को लेकर फिर यथार्थ अस्पताल पहुँच गया
इस बार इमरजेंसी में मौजूद टीम ने फटाफट भर्ती करके अनेक जाँचें करवाकर वार्ड में शिफ्ट कर दिया। अगली सुबह सिटी स्कैन की फ़िल्म आ गयी। डॉक्टर आये और उन्होंने कहा कि पेशाब की नली में पत्थर है। उन्होंने रिपोर्ट आने के बाद ही आगे का प्लान तय करने को कहा और जब रिपोर्ट आई तो वे अस्पताल में उपलब्ध नहीं थे।
ध्यान रहे कि एक मार्च शाम को हुई सीटी स्कैन की रिपोर्ट 24 घण्टे बाद शाम को आयी। तीन मार्च की सुबह तक मुझे यह नहीं पता चल सका कि आगे की प्रक्रिया क्या होगी? नर्सिंग स्टाफ ने बताया कि संडे की वजह से आज किसी डॉक्टर के आने पर संशय है। इस बीच बेटे को पेन किलर दिया जाता रहा। हर पाँच-छह घण्टे पर पेन किलर देते देख मुझे चिंता हुई। क्योंकि स्टोन को निकलवाने को अस्पताल में भर्ती हुआ था और तीन दिन बाद तक हमें आगे का प्रोग्राम बताने वाला कोई नहीं था। तब यथार्थ अस्पताल मैनेजमेंट तक मैंने अपनी बात पहुँचाई। असर यह हुआ कि रूम की सफाई हुई। चद्दर बदल दी गयी। टेबल साफ हुआ।
अचानक अलग अलग लोग आकर हाल पूछने लगे लेकिन डॉक्टर से मुलाकात नहीं हुई। हाँ, शाम को मुझे यह बताया गया कि कल सुबह ऑपरेशन के माध्यम से स्टोन निकाल दिया जाएगा। रात 12 बजे के बाद कुछ भी न खाने-पीने का सुझाव भी दिया गया। चार मार्च को सुबह मरीज को ओटी में ले जाया गया। करीब 10 बजे डॉक्टर ने बताया कि किडनी में इंफेक्शन की वजह से पत्थर निकालना संभव नहीं है। दर्द न होने पाए इसलिए स्टोन को वापस किडनी में पहुँचा दिया गया है। स्टेंट डाल दिया है। अब पहले किडनी को इंफेक्शन से मुक्त करेंगे। हफ़्ते भर बाद दोबारा भर्ती होना होगा। फिर स्टोन निकाल दिया जायेगा।
मैं क्या ही करता? वापस वार्ड में लेकर आ गया
5 मार्च को डॉक्टर ने कहा कि रिपोर्ट ठीक है। छह मार्च को सुबह डिस्चार्ज कर देंगे। मैं छह मार्च को सुबह से यह जानने की कोशिश करता रहा कि कब तक हम अस्पताल से निकलेंगे? जिससे पूछा सबने कहा कि बस थोड़ी देर में। 12 बजे मैं 15वें फ्लोर की नर्सिंग टीम से पूछा तो उन्होंने कहा कि तीन बजे डिस्चार्ज हो जाएंगे। यह विलंब इसलिए क्योंकि इंश्योरेंस की अप्रूवल आना है। चार बजे दोबारा पहुँचा तो पता चला कि अभी कम से कम दो घण्टे लगेंगे क्योंकि फाइल 3.30 बजे ही प्रॉसेस करने को भेजी गई है। अनेक प्रयास, सिफारिश के बाद छह बजे शाम को ही अस्पताल की सुबह हो सकी और मैं घर लौट पाया।
हासिल-हिसाब यह है कि पूरे छह दिन अस्पताल में रहने के बाद स्टोन अपनी जगह पर मस्त पड़ा हुआ है। हमें दोबारा उसे निकलवाने के लिए किसी न किसी अस्पताल में जाना ही होगा लेकिन यथार्थ में नहीं।
खास बात यह है कि छह मार्च तक रोकने का फैसला अस्पताल ने एक मार्च को ही कर लिया था। इंश्योरेंश कम्पनी की एप में हमें दिखाई दे रहा था कि अस्पताल ने छह मार्च का डिस्चार्ज लिखा हुआ है।
कुल मिलाकर अस्पताल ने केवल बिल बढ़ाने का काम किया और मरीज को दोबारा भर्ती करने के इरादे से छह दिन बाद छोड़ दिया। पूरे अस्पताल में व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। मरीज भगवान भरोसे हैं। मरीज या तीमारदार की शिकायत सुनने वाला कोई काउंटर कहीं है तो मुझे पता नहीं चला। इस तरह मैं कह सकता हूँ कि यह अस्पताल सिर्फ लूट का अड्डा है। यहाँ मरीज केवल पैसे बनाने की मशीन के अलावा कुछ नहीं है।