पूरे उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा शासनकाल का रिकार्ड तोड़ते हुये अफसरशाही, पुलिस विभाग और आबकारी से लेकर सारे विकास प्राधिकरण अंधाधुंध धनउगाही में लगे हुये हैं। शिक्षा से लेकर कोई ऐसा सरकारी महकमा नहीं है, जहाँ खुलेआम वसूली न हो रही हो। आबकारी महकमा तो अपने जन्म से ही उगाही महकमें के रूप में जाना जाता है। उत्तरप्रदेश में जहरीली शराब से मौत पर फांसी कि सज़ा देने के प्रावधान के बाद भी जहरीली शराब का धंधा पुलिस और आबकारी महकमें को सुविधाशुल्क देकर बदस्तूर चल रहा है। भ्रष्ट व्यवस्था के कारण ज्यादा गम्भीर बात यह हो गयी है कि शराब लाबी अब जहरीली या मिलावटी शराब सरकारी ठेके से बेचने का दुस्साहस कर रही है।
बाराबंकी जिले के रामनगर क्षेत्र में ज़हरीली शराब पीने से अबतक 20 लोगों की मौत हो चुकी है। ज्यादा गम्भीर बात यह है कि यह है कि यह जहरीली शराब किसी निजी वेंडर से नहीं बल्कि सरकारी ठेके से खरीदकर लोगों ने पीया था। योगी सरकार में अवैध शराब से मौत की 8वीं बड़ी घटना है। जहरीली शराब से 10 मार्च 2019 को कानपुर के घाटमपुर में 6 की मौत. 9 फरवरी 2019 को कुशीनगर में 8 लोगों की मौत, 8 फरवरी 2019 को सहारनपुर में 80 लोगों की मौत,20 मई 2018 को कानपुर देहात के रूरा में 9 लोगों की मौत, 19 मई 2018 को कानपुर नगर के सचेंडी में 7 लोगों की मौत,12 जनवरी 2018को बाराबंकी में 9 लोगों की मौत, 2017में आजमगढ़ में 25 लोगों की मौत की बड़ी घटनाएँ हो चुकी हैं।
लाख कोशिशों के बाद भी अवैध शराब के धंधे पर लगाम न लग पाने के कारण अब सख्त कानून का सहारा लेने की कवायद शुरू की गई है।तब भी सारे सरकारी महकमें के आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे रहने के कारण इस पर कोई प्रभावी अंकुश नहीं लग सका है। जहरीली शराब पीने से मौत की घटनाओं में आबकारी ऐक्ट की धारा 60 ‘क’ के तहत मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान है,जिसमें यह धंधा कर रहे लोगों को मृत्युदंड मिल सकता है। सरकार ने जिलाधिकारियों व पुलिस कप्तानों को आबकारी ऐक्ट की इस नई धारा के तहत मुकदमे दर्ज कर कार्रवाई करने का निर्देश फरवरी 19 में दिया था।
दरअसल, प्रदेश सरकार ने पिछले वर्ष ही आबकारी अधिनियम में यह नई धारा60 ‘क’ जोड़ी थी।इसके तहत यदि जहरीली शराब से बड़े पैमाने पर मौतें हुईं तो ऐसी शराब बनाने और बेचने वाले दोनों को ही फांसी की सजा तक हो सकती है। प्रदेश में अवैध शराब के इस्तेमाल से मौतें होने या स्थाई अपंगता (आंखें चली जाने, विकलांग होने) आदि पर ऐसी त्रासदी के जिम्मेदारों को आजीवन कारावास या फिर दस लाख रुपये तक का आर्थिक दण्ड या फिर दोनों अथवा मृत्युदंड देने का प्रावधान किया गया है।
गौरतलब है कि भारत में कोई भी राष्ट्रीय आबकारी नीति नहीं है। आजादी के बाद अबतक केंद्र सरकार ने इस पर कोई काम नहीं किया है, जबकि शराब पीकर मरने वाले लोगों में बड़ी संख्या में गरीब आदमी शामिल होते हैं। इसके लिए बस सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय ने एक एल्कोहल एंड ड्रग डिमांड रिडक्सन एंड प्रिवेंशन पॉलिसी बना रखी है।तंबाकू और ड्रग्स को लेकर राष्ट्रीय नीति हैं,लेकिन शराब का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्यों के जिम्मे हैं।
भारत में शराब को लेकर हर राज्य के पास अपना कानून है। इन कानूनों में कोई भी समानता नहीं हैं। नॉर्मली सभी राज्यों में आपको शराब बेचने के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है। हालांकि उम्र से लेकर बाकी हर सुविधाएं राज्यों ने अपने हिसाब से तय की है।कुछ राज्यों में शराब पीने की उम्र 18 साल तय है। इसमें अंडमान निकोबार, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, पुडुचेरी, राजस्थान, सिक्किम शामिल हैं। इसी तरह कुछ राज्यों में यह सीमा 21 साल है। इसमें आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, दादरा नगर हवेली, गोवा, दमन दीव, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल शामिल हैं। केरल में शराब पीने की उम्र 23 साल है तो कुछ राज्यों में यह सीमा 25 साल है। इसमें चडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, मेघालय, पंजाब, महाराष्ट्र शामिल हैं। जबकि बिहार, गुजरात, लक्षद्वीप, मणिपुर, नगालैंड जैसे राज्यों में शराब पूरी तरह से बैन है।
शराब पीना मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आता है। उच्चतम न्यायालय , बॉम्बे हाई कोर्ट और केरल हाईकोर्ट ने अपने विभिन्न फैसलों में यह साफ किया है कि भारत में शराब पीना मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आता है।
बाराबंकी की घटना में योगी सरकार ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये देने की घोषणा की है। मामले की जांच के लिए समिति बनाई गई है, जिसके सदस्यों में कमिश्नर, अयोध्या के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) और आबकारी विभाग के आयुक्त शामिल हैं। समिति अगले 48 घंटे में जांच रिपोर्ट देगी।देशी शराब के ठेकेदार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।
आबकारी विभाग समय-समय पर सरकारी ठेकेदारों के यहां जांच करवाता रहता है ताकि शराब में किसी भी तरह की मिलावट ना होने पाए। ऐसे में यह मामला बेहद गंभीर है। दरअसल जहरीली शराब से मौत के मामले वक्त के साथ दफन हो जाते हैं। अगर हादसा बड़ा होता है तो कुछ कार्रवाई की जाती है और अवैध शराब कारोबारियों के खिलाफ अभियान भी चलाया जाता है लेकिन बड़ी कार्रवाई अब तक नहीं हुई है। दोषी लोग अक्सर या तो हल्की-फुल्की सजा पाकर बच जाते हैं या फिर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। अब तक ऐसे मामले में किसी भी दोषी को कोई बड़ी सजा नहीं दी गई है और यही वजह है कि ऐसी घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। खुले में शीरे और पुराने गुड़ आदि में केमिकल और नशे के लिए सल्फास मिलाकर बनाई जाने वाली शराब में अनुपात बिगड़ जाने से तैयार शराब जहरीली हो जाती हैं, जिसे पीने से इस तरह के हादसे होते हैं। इसका व्यापार करने वालों के निशाने पर गांव के साथ शहरी क्षेत्र के गरीब लोग भी रहते हैं।
पिछले साल बाराबंकी में जहरीली शराब पीने से नौ लोगों की मौत के मामले में मामला रफा दफा कर दिया गया था। इस मामले में इंस्पेक्टर को सस्पेंड किया गया था। जबकि शासन स्तर पर तर्क दिया गया कि मौत स्प्रिट पीने से हुई, न कि अवैध शराब पीने से।अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। इसी तरह आजमगढ़ में अवैध शराब पीने से 25 लोगों की जान गई थी। इस मामले में भी यह कहकर अधिकारियों को बख्श दिया गया था कि जिले में उनकी नियुक्ति कुछ दिन पूर्व की गई थी। कानपुर की घटना में कुछ बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई जरूर हुई थी, मगर आंच लखनऊ तक नहीं पहुंच सकी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ के मुताबिक शराब के कारण हर साल 2.6 लाख भारतीयों की मौत हो रही है। भारत में पिछले 10 साल में शराब की खपत दोगुनी से ज्यादा बढ़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2005 में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 2.4 लीटर थी, जो 2016 में बढ़कर 5.7 लीटर हो गई। 2025 तक 7.9 लीटर हो जाने की संभावना है।
इलाहाबाद से वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.