Nadeem : तो हारो न खुद को तुम… आज एक नामचीन शायर ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की। प्रधानमंत्री से मुलाक़ात में कोई बुराई नहीं, बस उनकी मुलाकात इस लिये थोड़ा खटकी कि बिहार चुनाव के मौके पर उन्हें सबने टीवी के पर्दे पर देश में बढ़ती अहिष्णुता पर फूट फूट कर रोते देखा था। वह जेब में अपना पुरस्कार और पुरस्कार की राशि लेकर आये थे और उसे टीवी चैनल के जरिये वापस कर गए थे। सुना आज जब वो मोदी जी से मिले तो उनके कंधे पर सर रख कर खूब फफक फफक के रोये गोया बचपन के बिछड़े भाई मिले हों।
नाराजगी होना और उसके दूर हो जाने में भी किसी को कोई एतराज नहीं हो सकता, मुझे भी नहीं है लेकिन यह मुलाकात ऐसे वक्त पर हुई है जब यूपी में उर्दू अकादमी, हज कमेटी, अल्पसंख्यक आयोग जैसी संस्थाओं के चेयरमैन बनने हैं, ऐसे में उस नामचीन शायर को लेकर कयास का दौर शुरू हो गया है। सवाल लाजिमी भी है यह मुलाकात तभी कयूं जब यूपी में बीजेपी की सरकार बन गयी, मोदी जी तो 2014 से प्रधानमंत्री हैं, उससे पहले मुलाकात कयूं नही हुई?
अचानक यह लिखने का मन इसलिये कर गया कि अंदर नाराजगी खौलने लगी थी। वो इस वजह से जो लोग समाज को रास्ता दिखाने वाले होते हैं अगर वो ही रीढ़ विहीन दिखने लगे तो फिर गुस्सा स्वाभाविक हो जाता है। ऐसे लोगों के लिए निदा फाज़ली का यह शेर और बात खत्म:
दुनिया न जीत पाओ, तो हारो न खुद को तुम।
थोड़ी बहुत तो नाराजगी जेहन में रहनी चाहिए।।
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मुनव्वर राना साहब ने कभी सोनिया गांधी की तरफ से सोनिया गांधी के लिए बहुत लंबी रचना रची थी। सवाल उठा था किसी राजनितिक शख्सियत पर एक नामचीन शायर का इस तरह कलम तोड़ लिखने की वजह क्या हो सकती है? कुछ लोगों ने कहा वो राज्यसभा जाना चाहते है। खैर वजह जो भी रही हो, अब बड़ा सवाल यह कि कितनी जल्दी वह मोदी जी पर लिखते है?खैर जब तक नहीं लिखते तब तक आप लोग सोनिया गांधी पर लिखी उनकी यह रचना पढ़ते रहिये:
मैं सोनिया गांधी
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मैं तो भारत में मोहब्बत के लिए आयी थी,
कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी.
नफ़रतों ने मेरे चेहरे का उजाला छीना,
जो मेरे पास था वो चाहने वाला छीना.
सर से बच्चों के मेरे बाप का साया छीना,
मैं वो बेवा हूं जो इटली भी नहीं जा सकती.
आग नफ़रत की भला मुझको जलाने से रही,
छोड़कर सबको मुसीबत में तो जाने से रही,
ये सियासत मुझे इस घर से भगाने से रही.
उठके इस मिट्टी से, ये मिट्टी भी तो जाने से रही.
सब मेरे बाग के बुलबुल की तरह लगते हैं,
सारे बच्चे मुझे राहुल की तरह लगते हैं.
अपने घर में ये बहुत देर कहां रहती है,
घर वही होता है औरत जहां रहती है.
कब किसी घर में सियासत की दुकान रहती है,
मेरे दरवाज़े पर लिख दो यहां मां रहती है.
हीरे-मोती के मकानों में नहीं जाती है,
मां कभी छोड़कर बच्चों को कहां जाती है?
हर दुःखी दिल से मुहब्बत है बहू का जिम्मा,
हर बड़े-बूढ़े से मोहब्बत है बहू का जिम्मा
अपने मंदिर में इबादत है बहू का जिम्मा.
मैं जिस देश आयी थी वही याद रहा,
हो के बेवा भी मुझे अपना पति याद रहा.
मेरे चेहरे की शराफ़त में यहां की मिट्टी,
मेरे आंखों की लज़ाजत में यहां की मिट्टी.
टूटी-फूटी सी इक औरत में यहां की मिट्टी.
कोख में रखके ये मिट्टी इसे धनवान किया,
मैंन प्रियंका और राहुल को भी इंसान किया.
सिख हैं, हिन्दू हैं मुलसमान हैं, ईसाई भी हैं,
ये पड़ोसी भी हमारे हैं, यही भाई भी हैं.
भाई-बहनों से किसी को कभी डर लगता है,
सच बताओ कभी अपनों से भी डर लगता है.
हर इक बहन मुझे अपनी बहन समझती है,
मैं आबरु हूं तुम्हारी, तुम ऐतबार करो,
मुझे बहू नहीं बेटी समझ के प्यार करो।।
नवभारत टाइम्स दिल्ली के पोलिटिकल एडिटर नदीम की एफबी वॉल से.
उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं…
Jyotiswaroop Pandey अवार्ड वापसी से .. वापसी तक
Anuj Mishra सर आज आपकी बात पढ़ी। इस पर मुन्नवर राना साहब का ही एक शेर है
बुलंदी देर तक भला किस शख्स के हिस्से में रहती है।
बड़ी ऊँची ईमारत हर घड़ी खतरे में रहती है।।
Mohd Nadeem Siddiqui यह वही हैं जो छाती पीट कर कहते थे कि बस इतनी सी बात पर हमें बलवाई लिखा है , हमारे घर के बर्तनों पर आईएसआई लिखा है।
Sultan Khan ये कैसी सियासत!
बशीर बद्र याद आते है —
दुश्मनी लाख सही खत्म ना करिये रिश्ता
दिल मिले ना मिले हाथ मिलाये रखिये!!
Ghanshyam Dubey शायरी मोदी जी के चरणों मे झुक गयी । आदमी और उसकी फितरतों के पाखण्ड का एक नायाब नमूना!!
Durga Sharan Verma मतलबी चापलूस
Anand K. Bajpai सबसे बड़ा कमीना इन्सान
Abhinya Singh कविता ने फोटो के मायने स्पष्ट कर दिए। …. बेहतरीन जोड़ी।
Mohan Rajput आखिर शायर का भी तो व्यकिगत जीवन होता है। मेरा मानना है कि उसके रचना-कर्म व व्यक्तिगत जीवन को एक ही चश्मे से देखना उचित नहीं है। अभी किसी संपादक, आईएएस या आईपीएस की ऐसी फोटो पोस्ट होती तो बधाइयों का तांता लग गया होता…। क्षमा याचना के साथ!!!
Rohit Ramwapuri दरबारों की मेहरबानियां जड़ भी चतुर सुजान हो गए।
जुगनी भी रुदवालियां गाकर साहित्यिक दिनमान हो गए।
Pravesh Yadav रायबरेली के है न सर तो थोड़ा बहुत लगाव रहा होगा। लेकिन वहां से सेटिंग नहीं बन पाई होगी क्योंकि परिवार में एक भाईसाहेब सपा की तो एक भाईसाहेब बसपा की राजनीति करते हैं। आग लगाने वालों की कमी थोड़ी न है। जब आप कांग्रेस का झंडा नहीं उठावोंगे तो कैसे आपको राज्यसभा तक जाने देंगे कांग्रेसी। वह भी रायबरेली के कांग्रेसी जो कि बिना दाम के फोन तक नहीं करते हैं।
Ashutosh Dwivedi मेरे और उनके ताल्लुकात जब मैं जागरण lko में था तब से थे। मैं और मेरा परिवार उनको धरती के देवता की तरह मानता था। मगर पुरस्कार वाली घटना के बाद से मन खट्टा होने लगा था। उनका विरोध नही होना चाहिए था मगर सियासी इवेंट के इस तरीके के जरिये नहीं।
Humayun Choudhary मौक़ा परस्ती कमज़रफी की पहचान ।
Ankur K Singh नया वर्जन : मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
मोदी से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ :p
Pravin Rai वह सत्ता के साथ रहना पंसद करते है।
Kishor Jha मोदी का विरोध और असहिष्णुता पर विलाप करने वाले कई लोग वस्तुतः मौकापरस्त हैं। पहले भाजपा विरोधी मजबूत थे और सत्ता में रहकर मलाई चटाने में सक्षम थे, तो धर्मनिरपेक्षता के समर्थन और हिंदू कट्टरता के खिलाफ झंडा उठाए चलते थे। अब भाजपा की अजेय सी स्थिति देखकर वही लोग भगवा ध्वज के वाहक बनकर फिर मलाई चाटने की कोशिश में हैं। ऐसे बेशर्म लोगों का कभी किसी धर्म, ईमान, सिद्धांत से न पहले कोई लेना-देना था, न अब है और न आगे रहेगा।
Sandeep Dwivedi आप जो लिखते हैं उसमे इतना दम रहता है की बस यही कहना पड़ता है की…. की अब इसके आगे क्या कहें.. आपके लेख़न को देख कर कई बार यही लगता है की ये जो साहित्य की संस्था का नाम आपने लिया अगर आप उसके अधक्ष्य बन जायें तो मुझे लगता है की ऊर्दू के क्षेत्र में एक नये युग का सुत्रपात हो जाये और रही बात अल्प संख्यकों की तो उसे जो प्रगती के सोपान की ज़रूरत है वो आपसे बेहतर मुझे लगता है वो क्या समझेंगे ज़िन्हे बस मौके की नजाकत पर बस राजनीती करनी ही आती है. आप के लेख पर आपको सत सत नमन… और माँझी की भाषा में शानदार, जबर्दस्त, ज़िंदाबाद…
Amrish Shukla बिलकुल सटीक बात सर। ऐसे लोग मौकापरस्त होते हैं। उनका हर स्टेप अपने स्वार्थ में उठता है। सही अवसर को चुनना सबका हक़ है लेकिन यहाँ ध्यान यह भी रहना चाहिए कि आपके उस कदम से समाज को नुकसान न हो। मुझे याद है किस तरह से मोदी जी को लेकर अल्पसंख्यकों में यही लोग भय भर रहे थे। लेकिन आखिर कबतक?? सच्चाई कबतक छिपाई जा सकती है।
Kr Ashok S Rajput मौकापरस्त नामचीन शायर
Ashish Misra हुकूमत मुँह-भराई के हुनर से ख़ूब वाक़िफ़ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है
Alok Pathak क्या बात कही है आशीष भाई .. ये हर कुत्ते के आगे शाही टूकडा डाल देती है . वाह
Amit Pandey बहुत बारीक नजर सर। छीला भी महीन से। गजब।
Rajeev Awasthi यही लोकतत्र के असली बहुरूपिये हैं
Shailendra Shukla खरी खरी बात बधाई के पात्र हैं आप।
लखन मिश्र राय साहब नमस्कार , हमारे नदीम भाई नहीं लिखना चाहते हैं उनका नाम पर मैं लिख देता हूँ जिनके शहर की नालियों में राजनीति बहती है वो हैं प्रख्यात शायर मुन्नवर राणा !
Nadeem लखन जी, राय साहब को नाम मालूम न हो, यह मुमकिन ही नही। सब पर नज़र रखते हैं राय साहब। मुलाकात के साथ ही सरकारी , गैर सरकारी एजेंसीज से फोटो जारी हो गया था।।।
लखन मिश्र नदीम भाई नमस्कार , हम भी राय साहब से परिचित हैं बहुत खुशमिजाज भी हैं हमने भी बस आपके व्यंग में कुछ रंग भर दिए हैं
Rishi Mishra राणा साहब का एक शेर, दूसरों की पकाई नहीं खाते हम आम के मौसम में मिठाई नहीं खाते
Deepak KS गुरूजी , क्यों बेआबरू कर रहे हैं उन्हें ।
Umair Hashmi सर गॉड गिफ्ट जिसको बोलते है उस अतुल्य चीज़ नवाज़ा है आपको. आपकी लेखनी का जवाब नहीं.
Pawan Upadhyay समाज असलियत में इसी लिए पंगु है कि ओज के माइक तोड़ते कवि दम कब और कहाँ तोड़ दें देखते ही बनता है ।।
Nadeem Khan मौका परसत लोग किसी को भी मां बाप कह कर अपना काम निकाल लेते हैं।।।।नो टेंशन ।।।।
Brijendra Kumar Singh बहुत सुन्दर नदीम भैया मुनव्वर राना बहुत बडा़ नाम है अब देश मे बहुत कुछ टूट छूट औऱ बदल रहा है ऐसे में क्या क्या औऱ कौन कौन बदल जायेगा बस हम आप जैसे लोग की सोच अगर बची रहे तो
Shamik Sharma क्या इसे ह्रदय परिवर्तन नहीं कह सकते।हम नकारात्मक ही क्यों सोचें। अच्छा है अगर ऐसे ही बहुतेरों के ह्रदय परिवर्तन होते रहें तो वोट बैंक की राजनीति ही समाप्त हो जायेगी।फिर वास्तविक मुद्दे सामने आएंगे।
Abhishek Sharma इब्ने मरियम हुआ करे कोई। उस शायर की दवा करे कोई। 😉
Sanjeev Pathak आदत हो चुकी है शायरों, कलाकारों और पत्रकारिता से जुड़े लोगों को सत्ता सुख लेने की नदीम भाई।राज्यसभा, निगम, अकादमी और आयोगों के लिये ये सब काम करने पड़ते हैं
Onkar Tiwari समय का फेर है सर … बेचारे जाते भी तो कहां
Ram Krishna Shukla वो जो हमको जीने का सलीका बताते थे, ईमान आज वो अपना कौड़ियों के भाव बेच आएं है…
Kalyan Kumar यही सच्चाई है नदीम भाई… मेरे भी कई साथी कतार में खड़े हो चुके है़ं..
A R Ushmani Journalist हम आपकी इस अदा के कायल हैं भाई
Nirankar Singh Chauhan Nirankar एक प्रगतिवादी लेखक ही शालीनता के साथ स्नेहपूर्ण कटाक्ष कर सकता है। Sir we have always great respect for you.
Sushil Singh सर जी अगर कोई काम सिर्फ प्रसिद्धि पाने की चाहत के लिये किया जाये तो फिर स्तरहीनता दिखाई ही दे जाती है
Ajai Kumar जब जब बहै बयार पीठ तब तैसी कीजै।
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