दिनेशराय द्विवेदी : एबीपी न्यूज के लाइव शो में भाजपा, संघ और सरकार के प्रतिनिधियों ने अपने व्यवहार से सिद्ध कर दिया कि साहित्यकारों द्वारा अकादमी पुरस्कार लौटाना इस वक्त की सख्त जरूरत थी।
Ankur Pandey : सरकार और उसके समर्थक पत्रकार साहित्यकारों के लिए जिस तरह की भाषा सार्वजानिक मंच पर बोलते हैं, सुन के ऐसा लगता है कि साहित्य को भी अपनी राजनीति जैसा निम्न स्तर का मानते हैं।
Sandip Naik : सम्बित पात्रा जैसे मूर्ख लोग संस्कृति और बहुमत के प्रतिनिधि हो तो देश का कबाड़ा निश्चित ही होगा और जल्दी होगा। मुन्नवर राणा जिंदाबाद। आप अवाम के शायर हो कहाँ इन टुच्ची सरकारों के लोगों को उठा रहे हो कांग्रेस हो या भाजपा सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे है और ऊपर से सम्बित जैसे अधकचरे और गंवार लोग! उफ़!
Ramprakash Anant : लेखकों के साहित्य अकादमी पुरुस्कार लौटाने के पीछे देश में फासीवादी माहौल बन जाना है। यही वजह है कि उदय प्रकाश के बाद लेखकों ने उस पर ध्यान नहीं दिया और दादरी की घटना के बाद उसने आंदोलन का रूप ले लिया। शालीनतावश लेखक असली वजहें जिस भाषा में नहीं गिना पा रहे थे मुनव्वर राणा ने उन्हें सीधी भाषा में बता दिया कि लोगों को इस तरह घेर के मारना आतंकवाद नहीं है तो और क्या है। उसके बाद राकेश सिन्हा तो एकदम आपा खो बैठे और बजरंगी जैसा व्यवहार करने लगे।
Samar Anarya : मुनव्वर राणा ने साहित्य अकादमी लौटाया- देर से सही यूएन के लिये रवाना हुए पर न पहुँचे कौम के ठेकेदारों के गाल पर झन्नाटेदार झापड़। मुनव्वर राणा के सदमे से सरकार उबर ना पायी थी कि तेलगू लेखिका कात्यायनी विदमाहे ने अपना साहित्य अकादमी उसके मुँह पर दे मारा। मने क़लम वाले क़त्ल वालों को दौड़ाए हुए हैं। Munawwar Rana returns his Sahitya Akademi.. A late but laudable slap on the face of wholesalers of the Qaum… After Munawwar Rana, Telugu writer Katyayani Vidmahe returns her Sahitya Akademi… Writers heat it up for the rioters…
Mohammad Anas : अब जिधर आवाम जाएगी उधर सब जाएंगे। मुनव्वर राना साहब सलाम आपके जज्बे को जो आपने तमाम स्टंट और साहित्य अकादमी लौटाने वालों का विरोध करने के बाद जनता के दबाव में अपना साहित्य अकादमी अवार्ड मय एक लाख चेक के साथ लौटा दिया। तेलगू लेखिका कात्यायनी विदमाहे ने भी अपना साहित्य अकादमी अवार्ड वापस कर दिया। कट्टरपंथियों पर लगाम लगाइए। यह गुजरात नहीं, हिंदुस्तान है मोदी जी।
Sanjaya Kumar Singh : किसी को पूरी तरह सुने-जाने बगैर उसके बारे में कोई राय नहीं बनाना चाहिए। मैं शुरू से इसमें यकीन करता था मुनव्वर राणा साब ने आज साबित कर दिया। सलाम उनको, सलाम उनकी भावनाओं को। उन्होंने एक लाख रुपए का ब्लैंक चेक एबीपी न्यूज को थमा दिया। किसी उपयोगी काम में लगाने के लिए।
Mukesh Yadav : फासीवादी निजाम और उसके पितामह आरएसएस की राष्ट्रविरोधी, अमानवीय नीतियों के विरोध में लेखक समुदाय ने आगे बढ़कर प्रतिरोध दर्ज कराया है. अब पत्रकारों और छात्रों को भी आगे आकर अपने अपने ढंग से विरोध करना चाहिए. अगर उसके बावजूद भी यह अधिनायकवादी सरकार अपनी उत्पीड़क भुजाओं को काबू नहीं करती तो पत्रकारों, छात्रों, शिक्षकों समेत समाज के दूसरे प्रबुद्ध वर्गों को आगे बढ़ते हुए अपनी उपाधियाँ लौटाकर सशक्त विरोध दर्ज कराना चाहिए.
सन्देश साफ़ है भारत को पाकिस्तान का जिरोक्स नहीं बनने दिया जाएगा. न ही भारत को जर्मनी के नाजियों और इटली के फ़ासीवादियों की राष्ट्रवादी अवधारणा की प्रयोगशाला बनने दिया जाएगा. रचनात्मक और अहिंसात्मक ढंग से सशक्त विरोध होना ही चाहिए.
Wasim Akram Tyagi : दो दिन पहले मैंने मुनव्वर राणा साहब के बारे में लिखा था कि वे अपना आवार्ड आखिर क्यों नहीं लौटा रहे हैं, क्यों वे इस तरह की टीका टिप्पणी कर रहे हैं कि साहित्यकार थक चुके हैं, उनको अपनी कलम पर भरौसा नहीं रहा। इस पर अगले दिन मेरे पास मुनव्वर राणा का साहब का फोन आया, किसी वजह से मैं कॉल रिसीव नहीं कर पाया, तो उनका मैसेज आया कि
दर पर्दा जफाओं को अगर जान गये हम
तुम ये न समझना कि बुरा मान गये हम।
मैंने राना साहब को फोन किया, तो उन्होंने मुझसे बात करते हुए कहा कि मैं अपना साहित्य अकादमी आवार्ड लौटाने के लिये अकादमी नहीं जाऊंगा, मेरे घर के पास लखनऊ में गौमती नदी बहती है उसमें बहा दुंगा इस आवार्ड को, मैं वो एक लाख रुपये की रकम भी साहित्य अकादमी को नहीं लौटाऊंगा, मैं जिस शहर में रहता हूं उसमें बहुत से गरीब हैं वह रकम उनको दे दुंगा। राणा ने आजा आवार्ड वापस करके सांप्रदायिक ताकतों के मुंह पर कालिख पौत दी है। मुनव्वर राणा की कलम से एसे दर्जनों शेर हैं जो बताते हैं कि मुनव्वर नाम के आगे राणा क्यों लगाते हैं। उन्हीं का एक शेर याद आ रहा है
मैं हर ऐज़ाज़ को अपने हुनर से कम समझता हूँ
हुक़ुमत भीख देने को भी भरपाई समझती है
Shashi Bhooshan Dwivedi : पांचजन्य के नए अंक में दादरी हत्याकांड के समर्थन में कवर स्टोरी लिखने वाले तुफैल चतुर्वेदी के बारे में मुझे कभी कोई गलतफहमी नहीं रही. मैंने एक बार एक महान पाकिस्तानी लेखक की किताब के उनके लिप्यांतरण पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि तुफैल साहब ने भूमिका में अपनी पत्नी को आशीर्वाद देते हुए लिखा है कि उनका सुहाग बना रहे. इस पर वे भड़क गए और अपने चेलों को गाली गलौज में लगा दिया. फिर अगले दिन फोन पर मुझे धमकी देते हुए कहा कि 2020 में हिंदू राष्ट्र बनेगा तो आप जैसों को देख लेंगे. उन्होंने मुझसे मेरा पता भी मांगा था और मैंने दे दिया. लेकिन अभी तक राष्ट्रवादी मुझे मारने नहीं आए. शायद 2020 का इंतजार कर रहे हों.
फेसबुक से.
Amit
October 18, 2015 at 11:04 am
Public Declaration:
I am so much disturbed by what is happening in India today that I am returning the 1st prize tiffin box won by me in the spoon-lemon competition in the 4th standard in my school. (Of course I will not return the Rs. 100/- cash I got- because I already spent that.)
Plz don’t ask me about the all the religious riots,1984 Sikh massacre, Godhra train arson, Mumbai Blasts, Kashmiri Pandit holocaust, 26/11 Mumbai attack etc. that happened since I won the prize…
TODAY I badly need publicity as the new generation doesn’t know me ( ….and I don’t need the tiffin box anyway)
Any journalist or TV channel wants to take my interview, plz Whatsapp your cell no….. I will contact them asap….
Deepak Tiwari
October 18, 2015 at 2:14 pm
जब गोधरा में 56 हिन्दुओ को मुसलमानो ने ट्रेन में पेट्रोल डाल कर जला डाला गया, तभी किसी हरामी #मुनावर राणा ने आवाज़ नहीं उठाई!!!!!!!!!