-शिशिर सोनी-
तभी तो भाजपा है… लालू यादव की मांद में राजद को शिकस्त देने वाले राजीव प्रताप रूढ़ी की पहले मोदी मंत्रिमंडल से विदाई हुई। फिर उन्हें ऐसा बर्फ पे लगाया गया कि आज तक ठिठुर रहे हैं। पर सार्वजनिक रूप से उफ तक नहीं कर रहे। सांसद तो हैं पर पैदल हैं। जिस संसदीय समिति का बतौर अध्यक्ष उन्हें काम दिया गया था वो भी पार्टी ने छीन लिया। फिर भी चुप हैं।
पायलट है सो खुद को व्यस्त रखने और लाइसेंस जिंदा रखने को आजकल इंडिगो उड़ा रहे हैं।
वाजपेयी सरकार में केंद्र में मंत्री रहे। भाजपा के कभी मुस्लिम चेहरा रहे शाहनवाज हुसैन का भागलपुर से टिकट काट दिया गया। बेटिकट कर दिया गया। संगठन में प्रवक्ता के लिए भी कभी कभी काम दिया गया। लंबे समय तक बेरोजगार रहे। राज्यसभा नहीं मिली। उफ तक नहीं किया। कभी सार्वजनिक बयानबाजी नेतृत्व के खिलाफ नहीं की।
जमाना बीतने के बाद अब जम्मू कश्मीर में कुछ काम दिया गया।
बिहार में उप मुख्यमंत्री रहे सुशील मोदी। बिहार भाजपा के बड़े नेता। नितीश की नई सरकार से नेतृत्व ने पैदल कर दिया। बिहार से भी पैदल कर दिल्ली बुला लिया गया। राज्यसभा में रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई सीट उन्हें दे दी गई। एक तरह से लोजपा का जूठन उन्हें परोसा गया। पर उफ तक नहीं किया। किसी तरह की कोई कसक नहीं दिखाई।
दिल्ली रहेंगे। मोदी मंत्रिमंडल में वो जगह बना पाएंगे ? रुचि अब इसमें है!
बिहार भाजपा के दूसरे कद्दावर नेता नंदकिशोर यादव। लगातार जीत के बावजूद उन्हें इस बार नितीश मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई। माना जा रहा था कि उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाया जायेगा पर उनकी जगह अपेक्षाकृत जूनियर विजय सिन्हा को पार्टी ने ये जिम्मेदारी दी। विधायक दल का नेता भी उनसे जूनियर को बनाया गया। उफ तक नहीं की। सार्वजनिक रूप से तनाव भी नहीं दिखाया।
अभी वे साधारण विधायक रहेंगे। पार्टी भविष्य में उनका क्या उपयोग करेगी, कुछ पता नहीं।
ये सब मोदी काल के भाजपा में ही हो सकता है। इतना कुछ कांग्रेस नेतृत्व एक तो करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। किसी तरह से कुछ करने की कोशिश भी होती है तो पार्टी में सार्वजनिक रूप से बगावत हो जाती है। बगावत भाजपा में भी एक समय होती थी। उमा भारती, कल्याण सिंह, मदन लाल खुराना कई उदाहरण हैं, जो बिदके थे। बिदके। उछले। कूदे। खत्म हो गए। जब समझ गए पार्टी के बिना उनका कोई अस्तित्व नहीं, लौट के घर को आये।
संगठन की ऐसी ताकत से ही भाजपा, भाजपा है। भाजपा है तो मोदी हैं। शाह हैं। कई और मोदी, शाह बनाये जाने की प्रक्रिया चल रही है। हर दिन मेहनत करते बड़े छोटे नेता दिख रहे हैं। अभी से अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी है। कांग्रेस नेतृत्व को इनसे सीखनी चाहिए। न नेतृत्व दिखाई दे रहा है। न नेता। न कोई योजना दिख रही है। न चेतना। न NSUI दिख रही है। न युवक कांग्रेस। न महिला कांग्रेस दिख रही है। न सेवा दल। राजनीतिक रूप से महामारी का शिकार हो गई, लुँजपुंज पड़ी देश की सबसे पुरानी पार्टी, कांग्रेस को सियासी च्यवनप्राश की सख्त जरूरत है। स्वस्थ रहने के लिए भाजपा की कड़ाही से भी दो चम्मच च्यवनप्राश चुरानी पड़े तो चुरानी चाहिए। छोटे, बड़े, ऊंच नीच का भेद छोड़ सब से समय समय पर सीखना चाहिए।