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आखिर कामगार आयुक्त कार्यालय ने लिखित रूप से माना कि उनके पास नहीं है समाचार पत्र प्रष्ठिानों का टर्नओवर

मजिठिया वेज बोर्ड मामले में मुंबई शहर के सभी समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के वर्ष २००७ -८, २००८-९ और २००९-१० के सकल राजस्व को दर्शाने वाले टर्नओवर के मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है। मुंबई शहर के राज्य जन माहिती अधिकारी ने मुंबई के निर्भीक पत्रकार शशिकांत सिंह को एक पत्र लिखकर खुद बताया है कि उनके कार्यालय में समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के टनओवर जतन नहीं किये जाते हैं।  पत्रकार शशिकांत सिंह ने आरटीआई के जरिये जानकारी मांगी थी कि मुंबई शहर के सभी समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के वर्ष २००७-८, २००८-९ और २००९-१० के सकल राजस्व को दर्शाने वाले टर्नओवर दिये जायें। इसके बाद राज्य जनमाहिती अधिकारी ने इस बारे में पहले कोई भी जानकारी नहीं दी। 

पत्रकार शशिकांत सिंह ने जब इस मामले में अपील दायर किया तो राज्य जनमाहिती अधिकारी इस सुनवाई के दौरान नदारत रहे। बाद में जब चार दिसंबर को इस मामले में दूसरी अपील राज्य सूचना आयुक्त के पास की गयी तो कामगार आयुक्त कार्यालय के राज्य जनमाहिती अधिकारी मुंबई शहर ने आखिर यह मान ही लिया कि उनके कार्यालय में समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के टर्नओवर जतन नहीं किये जाते हैं। अब सवाल यह उठता है कि अगर कामगार आयुक्त कार्यालय ने वर्ष २००७-८, २००८-९ और २००९-१० के सकल राजस्व को दर्शाने वाले टर्नओवर को देखा ही नहीं तो किस आधार पर माननीय सुप्रीम कोर्ट को रिर्पोट बनाकर भेज दिया कि कहां कहां मजिठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन दिया जा रहा है और कहां नहीं।

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१० दिसंबर को भेजे गये राज्य जनमाहिती अधिकारी के पत्र में कई और चौकाने वाले खुलासे किये गये हैं। राज्य जनमाहिती अधिकारी मुंबई शहर ने शशिकांत सिंह को लिखे पत्र में साफ लिखा है कि प्रथम अपील पर सुनवाई के दौरान १६ नवंबर २०१५ को अपील अधिकारी द्वारा आदेश दिया गया कि आपको १० दिनों के अंदर सूचना उपलब्ध कराई जाये। यह आदेश मुझे ९ दिसंबर २०१५ को प्राप्त हुआ। मजे की बात यह है कि राज्य जनमाहिती अधिकारी (मुंबई शहर) और अपील अधिकारी (मुंबई शहर) का कार्यालय एक ही इमारत में है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो पत्र सिर्फ चंद मिनट में एक दुसरे तक पहुंच सकते थे उसे पहुंचने में तीन सप्ताह से ज्यादा समय क्यो लगे।

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जाहिर सी बात है अपना गला फंसता देख मुंबई के कामगार आयुक्त कार्यालय ने बाल एक दुसरे की तरफ फेंकी और जब शशिकांत सिंह ने राज्य सूचना आयुक्त के पास गुहार लगाकर माहिती अधिकारी के खिलाफ २५० रुपये जुर्माना लगाने की फरीयाद की तो आनन फानन में ही सही लेकिन अंत में राज्य जनमाहिती अधिकारी ने लिखित रुप से यह मानही लिया कि उनके कार्यालय में समाचार पत्रों के टर्नओवर एकत्र नहीं किये जाते हैं। दूसरा सवाल यह उठता है कि क्या यह मानकर चला जाये कि कामगार आयुक्त ने समाचार पत्र प्रबंधन से मिलकर  माननीय सुप्रीमकोर्ट की भी आंखों में धुल झोंक दिया है । फिलहाल शशिकांत सिंह ने साफ कहा है कि वे इस लड़ाई से तब तक पीछे नहीं हटेंगे जबतक उन्हे समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के वर्ष २००७ -८,२००८-९ और २००९-१० के सकल राजस्व को दर्शाने वाले टर्नओवर नहीं मिल जाते हैं। शशिकांत सिंह ने यह भी संकेत दिया है कि वे बहुत जल्द इस मामले को और आगे तक लेजायेगे और अपने आगे की रणनिती की घोषणा जल्द करेंगे।

पत्रकार शशिकांत सिंह से संपर्क 9322411335 के जरिए किया जा सकता है.

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