रवीश कुमार-
डाउन टू अर्थ का यह अंक ख़रीद कर रख लीजिए। पहले पन्ने से लेकर आख़िरी पन्ने तक जलवायु परिवर्तन की रिपोर्ट के विस्तार से बताया गया है। इस विषय को प्रस्तुत करने का अनुभव इनकी ही टीम के पास है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट बता रही है कि इस वक्त दुनिया में और आपके ठीक पड़ोस में जो तबाही आ रही है उससे भी भयंकर रुप देखने को मिल सकता है।
हर साल अलग अलग जगहों के लोग बाढ़ से विस्थापित हो रहे हैं। संपत्तियों का नुक़सान पहुँच रहा है। जीवन भर की कमाई ख़त्म हो जा रही है। इस तबाही की चपेट में सब आ रहे हैं। इन मुद्दों के बारे में गंभीरता और प्राथमिकता से सोचिए। कब तक जाति के नाम पर पहचान की राजनीति करेंगे। इस राजनीति से दस लोगों का भला होता है।
मूर्ति, स्मारक, जयंती और पुण्यतिथि के नाम पर कुछ लोगों का गिरोह बनता है और फिर यही सब होता रहता है। अगर आप व्यापक नज़रिए से देखेंगे तो पता चलेगा कि अस्मिता की राजनीति राजनीति का जलवायु संकट है। जो मानव कल्याण के बड़े मुद्दों को डुबोए जा रहा है। हर जाति के लाखों लोग परेशान है। जब तक सिस्टम का पुनर्निर्माण नहीं होगा तब तक इन सब मुद्दों से किसी का भला नहीं होगा। कुछ लोगों के अहं का भला ज़रूर होगा।
आप हिन्दी के घटिया अख़बारों पर नियमित रूप से पैसा बर्बाद करते हैं। उसकी जगह हिन्दी में डाउन टू अर्थ पढ़िए। इसमें एक से एक पत्रकार काम करते हैं। आप सपोर्ट करेंगे तो इनकी सैलरी अच्छी होगी। ये अपना काम और बेहतर तरीक़े से करेंगे। रिपोर्टिंग का बजट भी थोड़ा बढ़ेगा।
lav kumar singh
September 10, 2021 at 7:15 pm
मैं यह कहूंगा कि इसे भी पढ़ना चाहिये और अखबारों को भी पढ़ना चाहिये। हर पक्ष को जानना चाहिये। रवीश कुमार का भी और सुधीर चौधरी का भी। पाठक/दर्शक के रूप में असंतुलित और पक्षपाती पत्रकारिता के बीच संतुलन बनाने के लिये यह बेहद जरूरी है।
एक बार पढ़ें…. पाठक/दर्शक के रूप में असंतुलित और पक्षपाती पत्रकारिता के बीच कैसे संतुलन बनाएं?
https://stotybylavkumar.blogspot.com/2020/03/How-to-balance-between-unbalanced-and-biased-journalism-as-a-reader-and-viewer.html