मजीठिया वेज बोर्ड नवंबर 2011 से, न्यूज़ एजेंसियों पर लागू। सोने की चाबी रखने वाली न्यूज़ एजेंसियां, अपने कर्मचारीओ को करीब 6 वर्ष से, इस मजीठिया वेज बोर्ड के तहत दिए जाने वाले वेतन, ग्रेड, प्रमोशन से महरूम रखे हुए हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय की महानता देखिये कि इन कानून के अपराधियों को एक मौका और 07/02/2014 को दे दिया कि वे 4 किश्तों में 8 नवम्बर 2011 से सभी कर्मचारीओ को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन राशि व लाभ एक वर्ष में दे दें। परन्तु कहावत है – सांप केंचुली तो छोड़ देता है , मगर विष नहीं छोड़ता। यही हुआ अभी तक भी मजीठिया आयोग के तहत लाभ पाने से कर्मचारी महरूम हैं।
देश के श्रम विभाग की, भीरुता देखिये कि रिकवरी प्रार्थना पत्र, सम्बंधित प्रांतो के श्रमायुक्तों को प्राप्त होने पर भी , अभी तक रिकवरी के लिए सम्बंधित जिलाधीशों को , एल.आर. एक्ट के तहत नहीं भेजे गए हैं। भीरुता शब्द इसलिए प्रयुक्त किया गया है कि, प्राप्त जानकारी के अनुसार 1946 से केंद्रीय क़ानून बनने के बाद , हर संस्था को जिसमे 100 से अधिक कर्मचारी कार्य करते हैं- स्टैंडिंग ऑर्डर्स बनाकर, श्रमायुक्त से प्रमाणित करवाने होते हैं। इन्हें न बनाने पर श्रम विभाग , नियोक्ता के विरूद्ध प्रॉसिक्यूशन कर सकते हैं परन्तु अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रांतो के श्रमायुक्तों ने न्यूज़ एजेंसियों को, स्टैंडिंग ऑर्डर्स न बनाने पर प्रॉसिक्यूशन तो दूर, उन्हें पत्र भी नहीं लिखे हैं।
14/03/2016 सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट मास्टर ने 28/04/2015 के भुगतान देने के आदेशों की पालना न करने पर 05/07/2016 तक , मुख्य सचिवों को रिपोर्ट देने के लिए लिखा है, इसमें असफल होने पर 19/07/2016 को व्यक्तिगत रूप में कोर्ट में उपस्थित होने को कहा है। 14/03/2016 के आदेश में लिखा है:-
Interlocutory applications that have been filed alleging wrongful termination of services and fraudulent surrender of the rights under wage board recommendations to avoid liabilities in terms of the order of the court. ………………… We therefore direct the Labour commissioner of the each of the states to look into all the grievances & on determination of the same till necessary reports before the court before 12 July 2016.
इन कानून ही नहीं , निर्णयों की भी पालना न करने वालो के खिलाफ श्रम विभाग ने प्रॉसिक्यूशन क्यों नहीं किया ? जिन्हे कारावास में होना चाहिए , श्रम विभाग के कवच से बचे हुए हैं। इन न्यूज़ एजेंसियों से नवम्बर 2011 से न केवल , मजीठिया बोर्ड के अनुसार , मय ब्याज के पैसा वसूला जाये बल्कि ब्याज राशि पर चक्रवृद्धि ब्याज भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति श्री दलवीर भंडारी व एच एल दत्तू जी के 2011 के निर्णय को नज़ीर मानते हुए वसूला जाए। 6 वर्ष से मजीठिया बोर्ड का लाभ न मिलने पर , इन कर्मचारीओ ने साँसों के धागो से अपने जख्मो को पिरोया है।
“ये जो चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे
मजीठिया बोर्ड का लाभ, 2011 में दे सकते थे।
परन्तु ये तो ठहरे, झील के पानी की तरह
दरिया बनते तो, दूर तक निकल सकते थे ”।।
बृजेंद्र बिहारी शर्मा
जिला उपाध्यक्ष बी.एम.एस.
भरतपुर, राजस्थान
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