Nirala Bidesia-
आज अल्ताफ भइया चले गये. असमय. अचानक. सुबह से उनका चेहरा जेहन में घूम रहा है. हमेशा हंसता हुआ चेहरा. हमेशा बनठन के रहनेवाले स्मार्ट व्यक्ति, जो कलम को जिंस के पॉकेट में नहीं, बेल्ट में लगाते थे. कभी बहुत टेंशन में नहीं देखा उन्हें. प्रभात खबर के वे सक्रिय सदस्य थे. जब प्रभात खबर-रांची से जुड़ा, तब उनसे परिचय हुआ.
उनकी और राकेशजी की दोस्ती को देख हैरत में रहता था. दोनों साथ में ही दोपहर का लंच करते थे आफिस में. रोजे का दिन आता तो राकेशजी भी रोजा रखते महीने भर का. इसलिए कि उनके दोस्त अल्ताफ भइया उतने दिन उपवास में रहेंगे तो वे क्योंकर खायेंगे. प्रभात खबर में ही काम करते हुए अल्ताफ भइया से परिचय हुआ. परिचय आत्मीय रिश्ते में बदला. बाद में अधिकार का रिश्ता बन गया. महीने में एक बार बात हो ही जाती थी. वे हिंदी में कभी बात नहीं करते थे हमसे.
उनको शुरू के दिनों में कहा था कि आप नागपुरी सिखा दीजिए मुझे बोलना. तब से अब तक वह हमेशा मुझसे नागपुरी में बोले बतियाये. इस लिहाज से नागपुरी सिखानेवाले वे गुरु सरीखे भी थे. प्रभात खबर में काम करते हुए जब सफरनामा किताब संपादित कर रहा था तो अल्ताफ भइया से एक लेख लिखवाया था. उनके अनुभवों पर आधारित.
अजीब जुनून के साथ काम करते थे. एक दफा प्रभात खबर के सामने अखबार निकालने की चुनौती आयी.कुछ तकनीकि परेशानी. अल्ताफ भइया आठ घंटे तक एक लगातार बैठकर टाइपिंग करते रहे.
वे न्यूज सेक्शन के आदमी नहीं थे लेकिन न्यूज टाइप करने में लग गये. ऐसे अनेक किस्से थे उनके सफर में. उन्हें और करीब से जाना प्रभात खबर के पूर्व प्रधान संपादक हरिवंशजी के जरिये. हरिवंशजी का उनसे अथाह विश्वास का रिश्ता रहा.लेकिन इन सबसे बड़ा परिचय यह कि वे एक ऐसे जिंदादिल इंसान थे, जो हमेशा मुस्कुराते रहते थे. उपरी तौर पर नहीं, अंतर्मन से. जिसकी जितनी मदद संभव हो, वे सिर्फ तैयार नहीं रहते थे, आगे बढ़कर करते थे.
अलविदा अल्ताफ भइया. मन उदास है.