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ओम थानवी ने भी कह दिया- केजरीवाल अहंकारी

आशुतोष की किताब के आयोजन में केजरीवाल का अहंकार देखकर मैं दंग रह गया था। न राजदीप-शेखर गुप्ता के सवालों का जवाब उन्होंने जिम्मेदारी से दिया, न हॉल में बड़ी संख्या में मौजूद बुद्धिजीवियों का लिहाज किया। उनका कहना था – बस मैं जैसा हूँ, लोग इससे खुश हैं। भावार्थ यह निकलता था कि मैं बाकी सबको ठेंगे पर रखता हूँ। मीडिया की ओर साफ इशारा भी कर दिया था।

आशुतोष की किताब के आयोजन में केजरीवाल का अहंकार देखकर मैं दंग रह गया था। न राजदीप-शेखर गुप्ता के सवालों का जवाब उन्होंने जिम्मेदारी से दिया, न हॉल में बड़ी संख्या में मौजूद बुद्धिजीवियों का लिहाज किया। उनका कहना था – बस मैं जैसा हूँ, लोग इससे खुश हैं। भावार्थ यह निकलता था कि मैं बाकी सबको ठेंगे पर रखता हूँ। मीडिया की ओर साफ इशारा भी कर दिया था।

आज वे किसानों के नाम से जंतर-मंतर पर थे। राजस्थान के जिस शख्स ने आत्महत्या की, वह उनकी सभा में शिरकत कर रहा था। पर उसकी व्यथा का केजरीवाल या दिल्ली सरकार से शायद ही कोई लेनादेना रहा हो। फिर भी सहज मानवीय संवेदना के नाते सभा टालने की घोषणा कर किसानों के लिए अपने सरोकार और संघर्ष को जारी रखने की बात कहते हुए वे मंच से उतर आ सकते थे। अब उनकी चौतरफा थू-थू हो रही है। पर वे शायद अब भी कहें – फिक्र नहीं, दिल्ली का मतदाता तो मुझसे खुश है। यह गलतफहमी किसानों के लिए स्थगित ही रख लेते भगवन, जब उनके नाम पर मंच पर चढ़ ही गए थे! लगता है जिस अहंकार से छुटकारे की नसीहत शपथ ग्रहण के वक्त पार्टी वालों को बांटी, वह उनके अपने अहं का फंदा बन चला है।

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सभा अनवरत जारी रख संवेदनहीनता केजरीवाल ने जरूर दिखाई, जिस पर मैं पहले कह चुका। लेकिन सभा में किसान की खुदकुशी के गुनहगार न केजरीवाल हो सकते हैं, न उनकी पार्टी। सच्चाई यह है कि निष्क्रिय खड़ी दिल्ली पुलिस पेड़ पर मरते किसान को बचा न सकी; भाजपा की प्रादेशिक सत्ता ने उसे आर्थिक सुरक्षा नहीं दी, केंद्र की सत्ता ने अपने भूमि कब्जाकरण बिल से किसान से जैसे जीने का आधार ही छीन लिया। दिल्ली में केजरीवाल की सभा में गजेन्द्र सिंह अपना प्रतिरोध आप पार्टी के प्रति नहीं, उनके खिलाफ प्रकट करने आया था जिनसे उसे ‘किसान’ होने के नाते शिकायत थी और जिनसे वह खुद को (या बिरादरी को) सीधा आहत समझता था (कोई किसान दूसरों के सर पर पगड़ियाँ बाँधने का ‘धंधा’ शौक से नहीं करेगा।) उसके खुदकुशी के कागज को गौर से पढ़ना चाहिए। भाजपा का अपराध-बोध क्या इसमें जाहिर नहीं कि इस खुदकुशी में भी वह षड़यंत्र खोज रही है। क्या भाजपा दौर में हुई यह कोई पहली खुदकुशी है?

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जनसत्ता के संपादक ओम थानवी के एफबी वॉल से

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