ख़ुशदीप सहगल-
टेलीविजन पर सरकारी माध्यम से हट कर पहली बार स्वतंत्र समाचार या इंडिपेंडेंट न्यूज़ का स्वाद दिवंगत सुरेंद्र प्रताप सिंह (एसपी) ने 27 साल पहले देश को चखाया. तारीख़ थी 17 जुलाई 1995. दिलचस्प है कि एसपी सिंह ने महज़ आधे घंटे के न्यूज़ कैप्सूल से ये सिलसिला शुरू किया तो प्लेटफार्म सरकारी स्वामित्त्व वाला दूरदर्शन मेट्रो (डीडी 2) ही था.
दरअसल, तब सरकारी भाषा और बंदिशों से इतर पहली बार आम बोलचाल की हिन्दी में एसपी से समाचार सुनने-देखने को मिले. लोगों ने इसे हाथों-हाथ लिया. इस कनेक्ट ने जल्दी ही रंग दिखाया. देश में सैटेलाइट के ज़रिए प्राइवेट न्यूज़ चैनल्स के धड़ाधड़ खुलने का रास्ता खुल गया.
ज़ाहिर है यह टीवी समाचार के तेवर और कलेवर में बड़ा बदलाव था. दूरदर्शन न्यूज़ की मोनोपली के दिनों की तरह सरकार के लिए अब किसी ख़बर को अधिक दिन तक पर्दे में रखना मुमकिन नहीं रहा था. लेकिन आज ढाई दशक बाद हम इन प्राइवेट न्यूज़ चैनल्स की दशा और दिशा पर नज़र डालें तो अधिकतर एक राजनीतिक लाइन विशेष की ओर झुके नज़र आते हैं. अब ये मनी मैटर है या ऊपर का दबाव, ये तो वही जानें, लेकिन ये साफ़ है कि निष्पक्ष और सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने का जो दावा इन प्राईवेट चैनल्स की ओर से किया जाता था वो अब गंभीर सवालों के घेरे में हैं. साथ ही ये विश्वसनीयता का भी संकट है.
क्या इसी वजह से अब लोगों का रूझान यूटयूब चैनल्स की ओर बढ़ने लगा है. कई नामचीन पत्रकारों ने भी स्वतंत्र पहचान के साथ यूट्यूब को अपनी बात कहने का हाल फिलहाल में माध्यम बनाया है.
इस कड़ी में नया नाम चर्चित एंकर-पत्रकार रवीश कुमार का है. क्या ये नया परिदृश्य एक बार फिर देश में ऑडियो-विज़ुअल न्यूज़ का फोकस शिफ्ट होने का इशारा नहीं कर रहा? दूरदर्शन न्यूज़ ने जो प्राइवेट न्यूज़ चैनल्स के उदय से भुगता, क्या वही कहानी यूट्यूब की ओर से इन चैनल्स के साथ दोहराई जाने वाली है?
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