निवेशकों के बाद अब कर्मचारियों / भूतपूर्व कर्मचारियों को बेवकूफ बना रहा है सहारा प्रबंधन। अपने मुखिया सुब्रतो राय के धरे जाने के बाद कथित रूप से आर्थिक तंगी झेल रहे समूह ने बचे खुचे कर्मचारियों से “पिंड” छुडाने के लिए सेल्फ या सेफ ऐक्जिट प्लान लाने की घोषणा की, और उसे दो चरणों में ले आए। हो सकता है कि उसका तीसरा चरण भी शीघ्र आये। याद रहे कि प्लान हमेशा सामान्य से बेहतर होता है।
क्या है प्लान
सेफ एक्जिट प्लान क्यों लाया गया, किसकी अनुमति/एप्रूवल से लाया गया? कुछ सरकारी / गैर सरकारी संस्थान कर्मचारियों की छंटनी का तोहमत न लगे, इसलिए इस तरह की योजनाएं समय समय पर ले आते हैं। कुछ साल पहले बैंक भी इस तरह का प्लान लेकर आए थे। हिन्दुस्तान समाचार पत्र ने भी अपने कर्मचारियों को समय से पहले सेवानिवृत्त का प्रस्ताव रखा और लोगों ने स्वीकार भी किया। बैंक ने तो स्वैच्छिक सेवानिवृत में वापसी की भी सुविधा रखी। सहारा खुद को एक परिवार बताता आ रहा है। इस पारिवारिक संस्था का एक्जिट प्लान दे (अभी दिया की बात नहीं कर रहा हूं) क्या रहा है, सिर्फ बकाया सैलरी ही न? या और कुछ? पीएफ और ग्रच्यूटी तो देनी ही देनी है, तो फिर प्लान कैसा? इसे कहते हैं कद्दू में तीर मारना। बकाया वेतन, पीएफ और ग्रच्युटी तो हर कर्मचारी का हक है, उसके लिए कृपा की जरूरत नहीं।
पेशा है सब्जबाग दिखाना
सहारा इंडिया चूंकि मूलतः चिटफंड कंपनी है इसलिए सब्जबाग दिखाना इनका पेशा है और कामयाब पेशेवर वही है जो पेशागत चीजों को अपनी आदत बना ले। अब कामयाब सब्जबागी ही कामयाब चिटफंडी हो सकता है और ये कामयाब चिटफंडी हैं। ये हर निवेशक को ही नहीं अपने कर्मचारियों को जनता का जमा धन और उस पर देय अर्जित ब्याज देने का सब्जबाग दिखाते हैं। १९९२ में इन हाउस बैठकों में मुझे भी दिखाया था। अपने तथाकथित / क्रांतिकारी एक्जिट प्लान में परम आदरणीय प्रात: स्मरणीय उपेंद्र राय जी ने भी सहारा के मीडिया कर्मियों को दिखाया कि एकमुश्त सभी बकाये तय समय के भीतर मिल जाएंगे।
निकाले गए किसी भी नहीं मिला बकाया
मीडिया प्रमुख बने उपेन्द् राय ने आते ही पुराने कर्मचारियों को निकालने के लिए एक्जिट प्लान रूपी चोर रास्ता अपनाया। प्लान के पहले चरण वाले एक भी कर्मचारी को उसका पूरा बकाया नहीं दिया गया। लखनऊ जैसी बड़ी यूनिट में पहले चरण में प्रिंट मीडिया से यूनिट के संपादक (कर्मचारियों के हित में किसी का नाम नहीं ले रहा हूं) सहित आधे दर्जन से अधिक कर्मचारियों ने प्लान लिया, उन्हें सिर्फ बकाया वेतन ही मिला है। इसके पहले नौकरी छोडने वाले एक भी कर्मचारी को फंड का पूरा पैसा नहीं मिला। सूत्रों का कहना है कि सहारा ने मार्च २०१३ के बाद किसी को पीएफ के मद का पैसा नहीं दिया है। बताते चलें कि सहारा ट्रस्ट के माध्यम से पीएफ का पैसा अभी तक रखती रही है। सरकार की कड़ाई के बाद उसने यह व्यवस्था समाप्त तो कर दी लेकिन पैसा जमा किया नहीं। जून १५ में नौकरी छोडने वाले रामकृष्ण वाजपेयी को अभी तक पूरा बकाया नहीं मिला है। इसके पहले रेखा सिन्हा ने नौकरी छोडी थी उन्हें भी पूरा बकाया नहीं मिला। हद तो यह है कि एक्जिट प्लान के दूसरे चरण में नौकरी छोडने वाले उप समाचार संपादक राष्ट्रीय सहारा देहरादून सुरेश कुमार का इस्तीफा न मिलने की बात प्रबंधन कह रहा है जबकि उन्होंने अपना त्यागपत्र मुख्यालय मेल कर उसे कार्यरत यूनिट को फारवर्ड कर दिया था।
घर में नहीं दाने अम्मा चलीं भुनाने
एक तरफ प्रबंधन अपने मुखिया को जेल से जमानत दिलाने के लिए छोटे छोटे मदों मसलन पेपर के बिल का भुगतान रोक दिया है। वहीं दूसरी मुंबई संस्करण निकलने की घोषणा ही नहीं कर दी बल्कि संभावित संपादक की फोटो भी छाप दी। गौरतलब है कि इन दिनों प्रबंधन कांख कांख कर खर्च कर रहा है। फालतू खर्च पर रोक लगा दी है। जिस महीने सुब्रतो राय गिरफ्तार हुए उसके बाद के महीने से ही संस्थान अपने समाचार कर्मियों को पेपर का भुगतान रोक दिया। किसी को फेस्टिवल एडवांस नहीं दिया गया। दो साल से किसी को बोनस नहीं दिया गया। यही नहीं, नाइट शिफ्ट में उतने ही हिस्से की लाइट जलती है जितने में काम होता रहता है।
प्रसंगवश… मीडिया प्रमुख श्री राय ने अपने पहले कार्यकाल में मीडियाकर्मियों की रिटायरमेंट की आयु ६० से ६५ की थी किंतु दूसरे कार्यकाल में आते ही ६० साल से ऊपर वाले लगभग ८८ कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया क्यों?
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.